कमसिन कुंवारी लड़की की बुर का मजा- 5

सेक्सी लड़की चुदाई कहानी मेरी कामवाली की टीनएज बेटी की चुदाई की है. मैंने उसकी बुर की सील खोली, खूब चोदा उसे … फिर उसकी शादी हो गयी तो शादी के बाद भी …

दोस्तो, मैं विभोर देव पुन: आपकी सेवा में अपनी सेक्स कहानी के साथ हाजिर हूँ.
कहानी के पिछले भाग
कमसिन कुंवारी लड़की की बुर
में अब तक आपने पढ़ा था कि गुनगुन दूसरी बार चुदाने आई तो अपनी चूत की झांटें साफ़ करके आई थी. जिससे मैं पूरे मन से उसकी चूत में लंड पेल दिया था और वो तड़फ उठी थी.

अब आगे सेक्सी लड़की चुदाई कहानी:

“बस हो गया मेरी जान … थोड़ी हिम्मत रखो, तू तो बहादुर गुड़िया है न!” मैंने उसका सिर सहलाते हुए गाल चूमकर उसे पुचकारा.

“जलन सी हो रही है साब … लगता है दूसरी बार फिर से फाड़ दी आपने!”
वो अपने दोनों पांव दाएं बाएं ऐसे फैलाती हुई बोली जैसे वो चूत को रिलैक्स दे रही हो.

“गुनगुन मेरी जान, चूत एक ही बार फटती है. आज दूसरी बार तेरी चूत में लंड गया है न … इसलिए तुझे दर्द लग रहा है. बस एक दो मिनट सब्र कर ले, फिर देखना इसी लंड का मज़ा.”
मैंने उसे दिलासा दी और उसके ऊपर लेटा यूं ही उसके जिस्म से खेलता रहा.

कुछ ही देर में मुझे लगा कि उसकी चूत का गीलापन बढ़ गया था.
फिर उसने मुझे अपनी बांहों में जोर से भींच लिया, मेरी कमर में अपनी टांगें कस कर लपेट दीं और मेरा गाल चूम लिया.

“गुनगुन, अपने पांव नीचे कर और अब मुझे चोदने दे.” मैं गाल चूम कर दूध दबाते हुए बोला.

“उऊं हूं … कुछ मत करो … बस ऐसे ही लेटे रहो साबजी … आपका वो मेरे अन्दर बहुत अच्छा लग रहा है … निकाल मत लेना कहीं!” वो मेरी पीठ सहलाते हए बोली.

उसके मनोभाव समझते हुए मैं उसके ऊपर यूं ही निश्चेष्ट सा लेटा रहा और उसकी चूत की गर्मी, उसकी कसावट, उसकी ग्रिप को अपने सख्त लंड पर फील करता रहा.

आह … क्या मस्त फीलिंग आ रही थी.
वो सब वर्णन करने में मैं असमर्थ हूं.

कुछ ही देर बाद गुनगुन ने अपने पांव मेरी कमर पर से अनलॉक कर दिए और कमर उठा कर मुझे चोदने के लिए उकसाया.
बस फिर क्या था … मैंने भी उसकी दोनों हाथों की उंगलियां अपनी उगलियों में फंसा लीं और थोड़ा ऊपर की तरफ हो कर उसे पूरी तबियत से चोदने लगा.

पहले धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता से फिर स्पीड से … और फिर पूरी बेदर्दी पूरी बेरहमी से मैं उसकी चूत को कुचलने लगा.
मेरे आड़े तिरछे गहरे शॉट्स उसे सहन नहीं हुए, तो उसने मुझे धीरे धीरे करने को कहा.

मैं खुद पर काबू रख उसे चोदता रहा.

कुछ देर बाद वो भी मस्ता गयी और मुझे चूम चूम कर कमर उठा उठा कर चूत देने लगी- “साब जी … हां …. ऐसे ही और तेज और तेज करिए ना …. फाड़ दो साब आज तो इसको!
वो भयंकर चुदासी होकर बड़बड़ा रही थी और अपनी कमर को अनियंत्रित रूप से लगातार उछाले जा रही थी जैसे उसे कोई दौरा पड़ गया हो.

मुझे पता था कि जब कमसिन जवानी अपनी पर आती है, तो ऐसे ही लंड खाती है अपनी चूत में.
अठारह उन्नीस साला छोकरी को चोदने का मज़ा सबसे निराला होता है.

चुदते टाइम शुरू के दो तीन मिनट तो इनके नखरे चलते हैं कि मर गयी, दर्द हो रहा, निकाल लो ये वो … इत्यादि. पर वो नाज नखरे वाला एट्टीट्यूड जल्दी ही गायब हो जाता है और जो रह जाता है, वो कुछ शर्म, कुछ हया साथ में बेशर्म होकर चूत उठा उठा कर चुदवाने और फिर मूसलाधार झड़ने की चाहत.

उसके कोमल गालों को चूम चूम कर मैं उसकी चूत पूरे दम से मारने में लगा था उसकी चूत भी खूब गीली हो होकर फचफच फचाफच की साउंड निकालने लगी थी.

गुनगुन ऐसे ही लगभग आठ दस मिनट ही चुदी होगी कि उसकी बॉडी लैंग्वेज बताने लगी कि वो झड़ने के बिल्कुल ही करीब है.

जल्दी जल्दी कमर चलाने से उसकी सांसें फूल गयी थीं.

“साबजी, मेरा तो हो गया … पकड़ लो मुझे …. आआह आआ आअ.”
वो बोलने लगी और उसने अपने नाखून मेरी पीठ में जोर से गड़ा दिए.
फिर पूरी ताकत से मुझसे लिपट गयी और ऑक्टोपस की तरह उसने मुझे अपनी बांहों और पैरों से जकड़ लिया.

उसके कड़े निप्प्ल्स मेरी छाती में हल्के से चुभने लगे थे.
उसकी चूत से भलाभल पानी छूट रहा था. मेरी झांटें तक सराबोर भीग चुकी थीं.

कुछ देर वो मुझसे यूं ही चिपटी रही.
फिर मैंने उसे जैसे तैसे अपने से अलग किया और उसके दोनों बूब्स पकड़ कर चुदाई की रेल चला दी.
फिर मेरे लंड ने भी पानी फेंक दिया.

मेरे झड़ते ही उसकी चूत सिकुड़ने फैलने लगी, जैसे मेरे लंड को निचोड़ रही हो.

उसकी चूत की मसल्स मेरे लंड को शिकंजे में जकड़ भींच भींच कर वीर्य की एक एक बूँद दबा दबा कर निचोड़ रही थीं, जैसे चूत न हो कोई गन्ना पेरने की मशीन हो.

वो क्या मस्त फीलिंग थी … उसके बारे में कुछ भी लिखना संभव नहीं.
इसके बाद हम निढाल होकर हांफते हुए से अगल बगल में चित जा पड़े.

तो मित्रो, अब यह सत्य कथा समाप्ति की ओर है. बीसियों बार चुदने के बाद गुनगुन को चुदाई के इस सनातन खेल में पूरी महारत हासिल हो चुकी थी.

वो कमसिन छुईमुई सी छोरी अब मेरे ऊपर सवार होकर मेरा लंड अपनी चूत में लील कर खूब मजे से उछल उछल कर चुदती, फिर थक कर कहती कि साबजी मेरा तो हो गया. अब जैसे आपको करना हो, कर लो.
मैंने उसे हर तरह से हर आसन में चोदा, डॉगी स्टाइल में, किचन में उसका एक पैर ऊपर रख कर, डाइनिंग टेबल पर, वाशरूम में नहाते हुए.

कुल मिला कर मैंने अपने सारी की सारी कलाबाजियां उसके संग खेल लीं.
बस उसकी गांड मारने की एक ही हसरत बची थी, जो उसने पूरी नहीं होने दी.

एक बात और … एक बार ऐसा भी मौका आया कि उसकी मां रती लगातार पन्द्रह बीस दिनों तक काम करने आती रही और गुनगुन को आकर चुदने का मौका ही नहीं मिला, तो उसने मुझे दोपहर में ही फोन करके बुलाया कि मम्मी दो तीन घंटे के लिए कहीं गयी हैं. आप मेरे ही घर आ जाओ.
मैंने फ़ौरन अपना लैपटॉप बंद किया और बॉस से बहाना बना कर बाइक लेकर गुनगुन को चोदने उड़ चला.

उस दिन मेरे पास वो वाली गोली तो थी नहीं सो मैंने कंडोम खरीद लिए और उसकी गली के मुहाने पर मैंने बाइक एक तरह लावारिस सी खड़ी कर दी.
सबकी नज़रों से छुपता बचता हुआ गुनगुन के घर में घुस गया.

इतने दिनों तक बिना चुदाई के रहने से मुझे देखते ही वो चुदासी मुझसे कसके लिपट गयी. फिर चूमाचाटी करते करते कब हमारे कपड़े उतर कर फर्श पर जा गिरे, इसका तो होश ही नहीं रहा.

फिर मैंने उसे लिटा कर उसकी टांगें उठा दीं और लंड को कंडोम पहना कर मैंने लंड को उसकी चूत में पेल दिया.

बारह पंद्रह मिनट की घनघोर चुदाई के बाद मैं कंडोम में ही झड़ कर उससे अलग होकर अपनी सांसें थामने लगा.

गुनगुन मेरे बाजू में लेटी मेरे बालों में उगलियों से कंघी सी करने लगी थी.
फिर मुझे याद आया कि मैं अपना काम छोड़ कर ऑफिस से निकला हूं तो मैं उठ कर बैठ गया.

“गुनगुन मेरी जान, आज बहुत दिनों बाद तुझे प्यार करके मजा आ गया. अब मैं चलता हूं ऑफिस में काम छोड़ कर आया हूं.” मैंने कहा और बिस्तर से नीचे उतरने लगा.

“नहीं जाने दूंगी अभी, एक बार और कर दो न साब जी, मन नहीं भरा.” वो मेरी पीठ से लिपटते हुए बोली.

“क्यों आज क्या हुआ, इतनी देर से तो चोद रहा हूं तुझे?”
“साबजी, इस कंडोम से तो मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगा. बस एक बार और बिना कंडोम के करो न … फिर चले जाना.”

मेरी पीठ से लिपटे हुए उसने अपना हाथ आगे लाकर मेरा लंड सहलाया.

“पर …. ” मेरे मुँह से निकला.
पर उसने आगे बोलने ही नहीं दिया.
“पर-वर कुछ नहीं … आप चिंता मत करो मैं अभी वो गोली लाकर खा लूंगी, आप तो ऑफिस फोन करके कोई बहाना बना दो.” वो अनुराग भरे स्वर में बोली.

सच कहूं तो जो मज़ा नंगा लंड चूत में पेल कर चोदने में आता है, वो कंडोम से आता ही नहीं है.
सो मेरा मन भी ललचा गया कि चलो एक राउंड और खेल लेते हैं.

“चल ठीक है.”
मैंने बोला और ऑफिस फोन करके कल जल्दी आने का बोल बहाना बना दिया.

तब मैंने दीवार से टिक कर अपने पैर फैला दिए. गुनगुन तुरंत मेरे पावों के बीच औंधी लेट गयी और मेरा मुरझाया लंड चाटने लगी.
अपने मुँह में भर कर उसे चुसक कर जैसे उसे पुनर्जीवित करने लगी.

फिर मैंने कुछ सोचते हुए उससे बात करना शुरू किया- अच्छा गुनगुन, एक बात बता तेरी मम्मी रती की उम्र कितनी होगी?
मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया.

“क्यों पूछ रहो साब जी?” गुनगुन मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल कर मेरी ओर देखती हुई बोली.
“अरे बस यूं ही, तेरी मम्मी देखने में तेरी बड़ी बहन सी लगती है ना, इसलिए पूछ लिया.”

“हां साब, मम्मी की शादी गांव के रिवाज के हिसाब से पंद्रह साल की उम्र में ही हो गयी थी और जब मेरा जन्म हुआ तो वो सत्रह साल की थी.”
वो बोली और उसने पुनः मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.

“ह्म्म्म … मतलब, तू अभी उन्नीस साल की होने वाली है तो रती पैंतीस छत्तीस की होगी … है न?”
मैंने कुछ सोचते हुए पूछा.

“हां, साबजी. पर आप ये सब पूछ क्यों रहे हो?” वो अपने मुँह से मेरा लंड निकाल कर अचरज से बोली और फिर से लंड मुँह में भर कर तन्मयता से चूसने लगी.

“कुछ ख़ास नहीं, सोच रहा था कि तेरी मां तेरे पापा के बिना इस उम्र में कैसे रातें काटती होगी, कोई दोस्त तो होगा उसका न?”
मैंने उसे कुरेदा.

“साब जी रहने दो ये सब बातें. मम्मी का कोई दोस्त-वोस्त नहीं है.”
“रहने दे … क्या अब तू मुझसे झूठ भी बोलने लगी है.” मैंने कहा.

“सच्ची साब जी, कोई नहीं है.”
गुनगुन पूरे आत्मविश्वास से बोली.

“ठीक है रहने दे, जब तेरी मम्मी की उसमें खुजली मचती होगी तो …?”
मैंने बात अधूरी छोड़ कर उसके मन की थाह लेने की सोची.

“साबजी, हां, मम्मी कर लेती है कभी कच्चा केला, कभी बैंगन कभी मूली.” वो शर्माती हुई बोली.

“तुझे कैसे पता, ठीक से बता न?” मैंने उसे फिर से कुरेदा.

“साबजी पापा के जाने के बाद मम्मी मुझे अपने साथ सुलाने लगी, मैं रात में कई बार महसूस करती कि पलंग हिल रहा है. धीरे धीरे मैंने वो सब देखा. मम्मी ने अपने दोनों पांव ऊपर उठा रखे थे और … जाने दो साबजी अब बस!”

“पूरी बात बता न!” मैंने फिर से उससे पूछा.

“आप भी न? साबजी मैं कई बार जल्दी पांच बजे ही उठ जाती तो देखती कि मम्मी खूब गहरी नींद में सोई पड़ी है और उनका इस्तेमाल किया हुआ गीला केला करेला वगैरह उनके सिरहाने रखा है. बस अब कुछ मत पूछना साब.” वो हाथ जोड़ कर बोली.

“चल ठीक है, पर मुझे अभी सूसू लग रही है, करके आता हूं.”
मैं बोला और बाथरूम में घुस गया.

सूसू करके वापिस लौटने को हुआ तो देखा कि कोने में रती की साड़ी धुलने वाले कपड़ों के ढेर पर पड़ी है.

मैंने तुरंत सोचा कि उसकी ब्रा भी साड़ी के नीचे जरूर होगी, तो मैंने उत्सुकता से उसकी साड़ी को उठाया तो नीचे उसकी काली ब्रा और पैंटी रखी थी.

रती की ब्रा के कप काफी बड़े से थे और उसकी चड्डी भी उसके गदराये बदन के हिसाब से ही लग रही थी.

मैंने अनचाहे ही रती की ब्रा को मसल डाला और उसकी पैंटी का सामने वाला हिस्सा जहां चूत होती है, वहां आंख मूंद कर सूंघने लगा.
फिर एक शैतानी आईडिया मेरे दिमाग में आया और मैं वो ब्रा पैंटी बाहर लाकर गुनगुन के सामने लहराने लगा.

“साबजी, वो मम्मी के कपड़े हैं, धुलना है. आप क्यों उठा लाए?” गुनगुन मुझे देख अचकचा कर बोली.

“हां, तो? चल ये ब्रा पैंटी तू पहन कर दिखा ना!” मैंने शरारत से कहा.

“नहीं साबजी, मम्मी की ब्रा पैंटी नहीं …. ऐसे ही कर लो आप तो.” वो बोली और मेरे हाथ से ब्रा पैंटी को छोड़ने की कहने लगी.

“अरे यार पहन तो सही!”
मैंने जोर देकर कहा.

तो गुनगुन ने बेमन से अपनी मां की ब्रा अपनी कमर में लपेटी, फिर हुक बंद करके, ब्रा घुमा कर अपने दूध ब्रा के कप्स में घुसा कर स्ट्रेप्स अपने कन्धों पर चढ़ा लिए.
फिर पैंटी भी पहन ली.

ब्रा पैंटी दोनों गुनगुन के हिसाब से ढीली ढाली लग रही थीं.

“लो अब कर लो जल्दी से.” गुनगुन ने मेरा हाथ पकड़ अपने ऊपर खींच लिया.

रती की ब्रा पैंटी में गुनगुन को देखकर मेरा लंड एकदम से ताव खा गया.
और मैंने पैंटी को एक साइड थोड़ा सा सरका कर गुनगुन की चूत के छेद पर लंड सटा दिया; फिर एकदम से भीतर धकेल दिया. साथ ही ब्रा के कप दबोच कर गुनगुन को बेदर्दी से चोदने लगा.

उस टाइम मुझे यही लग रहा था कि मेरे नीचे रती ही चुद रही है.
और चुदते चुदते जैसे बड़बड़ा रही है- आह साबजी. चोद दो और जोर से चोदो, ढाई साल से तरस रही थी लंड के लिए, चीर फाड़ दो इस मुई चूत को … जब देखो तब ये बहुत खुजलाती ही रहती है.

इस तरह मैं रती को चोदने के ख्यालों में खोया उसकी बिटिया गुनगुन को पूरे दम से चोदे जा रहा था.
लड़की को उसकी मां के कपड़े पहना कर उसे चोदना कितना लुत्फ़ दे जाता है, ये मैंने उस दिन जाना.

तो इस तरह चुदाई करके गुनगुन की चूत में झड़ने के बाद मैंने रती की चड्डी से लंड को पौंछा और वहां से निकल लिया.

इस तरह गुनगुन के संग मेरे सम्बन्ध कोई साल भर तक चलते रहे.

फिर उसकी मां रती के पास गुनगुन की शादी का कोई रिश्ता आ गया.
रती भी शादी के लिए मान गयी.

जब बात मुझ तक पहुंची तो मैंने रती को समझाया कि गुनगुन तो अभी बच्ची है. ऐसी कच्ची उम्र में उसे ब्याहना ठीक नहीं.
पर रती की अलग ही चिंताएं थीं, वो बोली- साब जी ज़माना ख़राब है, कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो?

फिर वो समय भी आया जब गुनगुन का विवाह पास ही के गांव के एक लड़के से तय हो गया.
उसका होने वाला दूल्हा एक सरकारी दफ्तर में चपरासी था.

मेरे लिए यह सन्तोष की बात थी कि चलो इसके पति की सरकारी नौकरी है तो जिंदगी अच्छे से कट जाएगी.

बिटिया की शादी में खर्चे को लेकर रती बहुत परेशान थी.
एक दिन अपना सब काम खत्म करके मुझसे बोली- साबजी, गुनगुन के ससुराल वालों की दहेज़ की तो कोई मांग नहीं है, पर नाते रिश्तेदारों के मुँह कौन बंद कर सकता है. बिटिया को दहेज़ कुछ तो देना ही पड़ेगा ताकि ससुराल में उसकी इज्जत बनी रहे. हमारे घर की हालत कैसी है … ये तो आप सब जानते ही हो साब!

वो मेरे सामने फर्श पर बैठ कर दुखी मन से बोल रही थी.

“तेरी बात सही है रती, इकलौती बिटिया को यूं खाली हाथ विदा कर देना भी ठीक नहीं. तू टेंशन मत ले. मैं सब इंतजाम कर दूंगा.”
मैंने उसे आश्वासन दिया.

“नहीं साबजी, आप तो सरकारी अधिकारी हो, बस दहेज़ का कुछ जरूरी सामान उधार दिलवा दो. मैं धीरे धीरे सब चुका दूंगी.”
वो बोली मगर मैंने उसे आश्वासन दे दिया.

इस तरह मैंने काफी कुछ अपनी तरफ से थोड़ा बहुत बाज़ार से खरीदारी करवा दी.
गुनगुन शादी होकर विदा हो ससुराल चली गयी.

मेरी जिंदगी पहले की ही तरह चलने लगी.
इसी बीच एक डेवलपमेंट और हुआ वो ये कि मेरी धर्मपत्नी भी गर्भवती हो गयी.

शुरुआत के दो महीने तो मैं छुट्टी में जाता और धीरे धीरे बीवी को चोद लेता.
फिर उसने भी ना कह दी कि डॉक्टर ने मना किया है.
जिंदगी फिर उसी मोड़ पर आ गयी कि अपना हाथ जगन्नाथ.

गुनगुन की शादी के तीन चार महीने बाद की बात है.
उसकी शादी के बाद की पहली होली थी, वो अपने मां के पास आई हुई थी.

होली के शायद तीन चार दिन बाद वो मेरे घर आई.
उस दिन उसे मैंने साड़ी में पहली बार देखा.
सुहागन के वेश में वो बेहद खूबसूरत लग रही थी.
डार्क ग्रीन कलर की साड़ी के साथ हरे रंग का ही ब्लाउज पहन रखा था उसने … गले में पहना हुआ मंगलसूत्र उसके उन्नत वक्षस्थल पर बहुत ही लुभावना लग रहा था.

गुनगुन के उन स्तनों को मैं न जाने कितनी बार मसल मीढ़ कर उसके यौवन को रौंद चुका था.
पर उस दिन उसमें कुछ खास ही नज़र आ रहा था.

उसे देखते ही उसके साथ बिताये वो पल स्वतः ही स्मरण हो उठे.
फिर मैंने अपनी बांहें गुनगुन के स्वागत में फैला दीं, वो भी बिना किसी संकोच के मेरी बांहों में आ गयी.

अपनी चूचियां मेरी छाती में अड़ा कर उसने अपनी बांहों का हार मेरे गले में पहना दिया और मुझसे आलिंगनबद्ध हो गयी.

कपड़े उतरने के बाद मैं उसका नंगा जिस्म चूम चूम कर उसे दुलार रहा था.
गुनगुन उस दिन अपनी चूत भी चिकनी करके चुदने आई थी और उसने अपनी कांख के बाल भी साफ किए हुए थे.

मैं उसकी चूचियां मसलता उसकी कांख में मुँह घुसाए चाटता रहा.

फिर चुदाई का एक फटाफट वाला राउंड चलने के बाद अंत में हम दोनों के मादरजात नंगे बदन एक दूजे में गुत्थमगुत्था हुए अपनी अपनी सांसों को काबू करने लगे थे.

“तू अपने दूल्हे से खुश तो है न?” मैंने उसके नंगे बदन को सहलाते हुए पूछा.
“हां साबजी, सब ठीक चल रहा है पर वो कंडोम लगा कर करते हैं, तो मुझे बिल्कुल मजा ही नहीं आता.” वो मायूसी से बोली.

“अरे तो तू उसे अपने मन की बात बता न और बोल दे कि बिना कंडोम के करे!” मैंने कहा.
“नहीं साब जी, मुझे शर्म आती है उनसे कैसे कहूं … कहीं वो मुझ पर शक न करने लगें? मैं तो बस चुपचाप उनके नीचे पड़ी आपके ही बारे में सोचती रहती हूं.”

वो जैसे तैसे बोली तो मैंने उससे कहा- तेरे पति को अभी बाप नहीं बनना होगा शायद, थोड़े दिनों के बाद वो खुद कंडोम नहीं लगाएगा.
ये कह कर मैंने उसे दिलासा दी.

“यही तो मेरे दिन हैं जो फिर लौट कर नहीं आएंगे. उसे बाप नहीं बनना है तो कोई दूसरा तरीका अपना ले न!”
वो कड़वाहट भरे स्वर में बोली, जैसे अपनी भड़ास निकाल दी हो.

अब मैं बोलता भी क्या सो चुप ही रहा.

“तेरी सास ससुर को तो कोई शिकायत नहीं है न किसी तरह की?”
“नहीं साबजी, कोई नहीं सब भले लोग हैं!” गुनगुन मेरे मुरझाये लंड को फिर से जगाती हुई बोली.

इतनी बातों के बाद हमने एक धुआंधार पारी और खेल ली.
गुनगुन अब जब भी तीन चार महीनों में आती है, तो मुझसे मिलने जरूर ही आती है और सेक्सी लड़की चुदाई करने को मिल जाती है.

गुनगुन के चले जाने के बाद मुझे चूत की कमी फिर से अखरने लगती, उधर मेरी बीवी प्रेग्नेंट थी.
इसी बीच मेरा मन बार बार रती की ओर जाता कि इसका गदराया बदन चोदने को मिल जाए तो क्या बात है.

दिल में तरह तरह की उमंगें उठतीं कि गुनगुन तो पहले ही चुद चुकी है. उसकी मां भी एक बार चुद जाए और फिर एक दिन वो भी आये कि मैं इन मां बेटी दोनों के नंगे जिस्मों के बीच सैंडविच बन जाऊं.

बस अभी तो मुंगेरीलाल के ऐसे ही हसीन सपने देख देख कर दिन कट रहे हैं.

तो मित्रो, यह सेक्स कहानी बस यहीं समाप्त होती है.
आपकी सकारात्मक प्रतिकिया मुझे और कुछ लिखने के लिए अवश्य ही प्रेरित करेगी.
आप चाहें तो इस सेक्सी लड़की चुदाई कहानी पर मेरी मेल आईडी पर भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं.
धन्यवाद
विभोर देव
[email protected]

About Abhilasha Bakshi

Check Also

Sali aur uski saheli

Sali aur uski saheli

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *