परिवार में बेनाम से मधुर रिश्ते- 2 (Family Group Sex Kahani)

फैमिली ग्रुप सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैं, मेरे भाई, मेरी भानजी और भानजे हम चारों के बीच चुदाई हो चुकी थी. मगर इस राज में जल्द ही एक और व्यक्ति भी शामिल हो गया.

यह कहानी सुनें.

दोस्तो, मैं कविता तिवारी अन्तर्वासना पर आप सबका फिर से एक बार स्वागत करती हूं. मैं अपने भाई शिवम, अपने बड़े पिताजी की लड़की के बेटे विवेक और बेटी लूसी के साथ घटित सेक्स कहानी आप लोगों को बता रही थी।

आज मैं इस फैमिली ग्रुप सेक्स कहानी का दूसरा पाठ प्रस्तुत कर रही हूं. पिछले भाग
परिवार में बेनाम से मधुर रिश्ते
में आप लोगों ने पढ़ा कि मैं, मेरा भाई शिवम, विवेक और लूसी एक दूसरे के साथ हुए सेक्स के बारे में जान चुके थे. विवेक और लूसी मेरे भानजा भानजी लगते हैं.

मैं और लूसी अब दोस्त बन चुके थे. मेरा भाई शिवम और विवेक भी अब दोस्त बन चुके थे. अब हर रात हम चारों लोग चुदाई करने लगे थे.
पढ़ाई का बहाना बनाकर हम छत पर चले जाते थे और चुदाई का मजा लेते थे।

हम लोगों के बीच में जो भी शर्म थी वो खत्म हो चुकी थी। भाई बहन जैसा कोई रिश्ता नहीं बचा था हमारे बीच।

एक दिन विवेक और शिवम दोनों ने प्लान बनाया- क्यों न हम दोनों अपनी अपनी बहन को चोदें?

शिवम बोला- बहन मान जाएगी?
विवेक बोला- तुम लूसी को तैयार करो, मैं कविता को तैयार करता हूं.
यहीं से जिस्मों की हवस का रिश्ता बन गया. विवेक, शिवम, लूसी और मैं एक दूसरे को अपनाने के लिए तैयार हो चुके थे.

अब हम उस रिश्ते में जा रहे थे जो हमने कल्पना में भी नहीं सोचा था. मगर एक खुशी भी थी मुझे कि मेरा भाई मेरी चूत का प्यासा होगा।

विवेक इतना मादरचोद निकलेगा मुझे अंदाजा नहीं था। वो अपनी बहन की चूत का स्वाद लेने के लिए तैयार था।

एक दिन घर पर कोई नहीं था और हमने उसी रात को चुदाई का प्लान बनाया।

शाम को खाना खाने के बाद विवेक और लूसी अपने नाना नानी से कह आये कि हम वहीं पढ़कर सो जाएंगे.

फिर रात को शिवम मेरे पास आकर बोला- आज भाई बहन के रिश्ते को साबित करना है हमें!
वो मेरी चूचियों को दबाते हुए बोल रहा था और कह रहा था- विवेक ने इनको दबा दबाकर बहुत बड़ा कर दिया है।

विवेक भी हंसते हुए बोला- तुम भी तो मेरी बहन की चूचियों को रोज दबाते हो. उसकी चूत को सुजा देते हो.
फिर हम चारों हंसने लगे.

अब विवेक लूसी को नंगी करने लगा. फिर शिवम भी शुरू हो गया. उसने मेरी चूचियों को नंगी कर दिया और मुंह में लेकर पीने लगा. वो एक हाथ से मेरी चूत में उंगली डालकर चला रहा था।

वो मेरी चूत में उंगली करते हुए बोला- दीदी, ये तो गुफा हो गयी है।
मैं बोली- हां, तेरे जीजा विवेक ने गुफा बना दिया है इसे।
विवेक बोला- साले, तूने भी तो मेरी बहन की चूत को गुफा बना दिया है, देख, चारों उंगलियां अंदर आराम से ले रही है ये।

शिवम बोला- दोनों का हिसाब बराबर हो गया.
फिर उसने धीरे धीरे मेरे बदन को चूमते हुए अपना मुंह मेरी चूत में लगा दिया और वो मेरी चूत को चाटने लगा.
मैं पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी.

विवेक लूसी को गर्म करने में लगा था.
लूसी भी एक मंझी हुई चुदक्कड़ की तरह अपने भाई से चूत को चटवा रही थी.

15-20 मिनट तक वो दोनों हमारी चूत को ही चाटते रहे.

फिर शिवम ने अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और झटके मारने लगा.

मुझे चोदते हुए वो बोला- दीदी, आपकी गांड तो बहुत बड़ी हो गयी है. इतनी बड़ी गांड तो मां की भी नहीं है।
मैं बोली- तू मां की गांड भी देखता है क्या?
वो बोला- हां, देखने में क्या है?

मैं बोली- तो फिर चोदने में क्या है?
वो बोला- तो दिला दे, अगर मां की गांड चोदने को मिल गयी तो मुझे जन्नत मिल जायेगी।
मैंने कहा- मेरी चुदाई में मजा नहीं आ रहा है क्या?

तभी विवेक बोला- नानी की चुदाई का मजा अलग है।
लूसी बोली- नानी में ऐसा क्या है?
शिवम बोला- अब तुम लोग मेरी मां चोदने में क्यों लगे हो …
लूसी बोली- मामा तो रोज ही चोदते हैं.

शिवम बोला- मैं कब चोदता हूं?
लूसी बोली- मैं आपकी बात नहीं कर रही, अनिकेत मामा की बात कर रही हूं.
शिवम बोला- उनके बारे में बाद में सोचेंगे, पहले अपना काम पूरा करते हैं.

ये बोलकर शिवम ने चूत में झटके लगाने तेज कर दिये. मुझे भी मजा आने लगा. फिर उसने मुझे अपने ऊपर कर लिया और बोला कि अब तुम खुद झटके मारो।

मैं उसके लंड पर झटके देने लगी और खुद ही अपनी चूत को चुदवाने लगी.
भाई का लंड लेकर मुझे बहुत मजा आ रहा था.

विवेक के लंड से बहुत बार चुदने के बाद आज मुझे अपने ही भाई का लंड मिला था. उसका मजा बहुत अलग था.

फिर मैं शिवम के होंठों को चूसने लगी और तेजी से अपनी चूत को उसके लंड पर पटकने लगी.
वो भी मेरी चूचियों को जोर जोर से भींच रहा था और मेरी आहें बहुत तेज तेज आवाज में बाहर आने लगी थी.

इधर मैं अपनी चूत को चुदवाते हुए भूल ही गयी थी कि विवेक और लूसी क्या कर रहे हैं.
मैंने शिवम के लंड पर कूदते हुए उन दोनों की तरफ देखा तो विवेक ने लूसी को घोड़ी बनाया हुआ था और उसके ऊपर चढ़ा हुआ था.

वो अपनी बहन की चुदाई में इतना खो गया था कि हमारी तरफ मुड़कर भी नहीं देख रहा था.
उधर लूसी भी एक प्रोफेशनल रंडी की तरह अपनी गांड को गोल गोल चलाते हुए विवेक के लंड को अपनी चूत में ले रही थी.

वो अपनी गांड को ऐसे चला रही थी जैसे विवेक के लंड पर दाल दल रही हो.
विवेक भी उसकी चुदाई की तकनीक देखकर हैरान था और मजे से उसकी चूत की चटनी बनाने में लगा हुआ था.

हम चारों की चुदाई लगभग 20 मिनट तक चलती रही. उसके बाद शिवम ने मुझे नीचे पीठ के बल पटका और मेरी एक टांग उठाकर अपना लंड मेरी चूत में फिर से घुसा दिया.
वो अपनी गांड को आगे पीछे करते हुए फिर से मेरी चूत में धक्के लगाने लगा.

अब मैं मेरी फुटबाल की तरह उछलती चूचियों को हाथों से दबाते हुए उनको संभाल रही थी.
लूसी की सिसकारियां अब मुझे भी झड़ने पर मजबूर कर रही थीं.

मेरे भाई शिवम का लंड मेरी चूत में इतना मजा दे रहा था कि दो मिनट बाद ही मेरा बदन एकदम से अकड़ गया और मैंने शिवम की गांड पकड़ ली और चूत को उसके लंड पर सटा दिया.

उसका लंड मेरी चूत में पूरा समाया हुआ था.
और तभी मेरी चूत से मेरा गर्म गर्म पानी छूट गया.
मैं उससे लिपट गयी और झटके देकर शांत हो गयी.

अब मैं फिर से नीचे लेटी और एक बार फिर से शिवम मेरी चूत में धक्के लगाने लगा.
चुदाई के दौरान पच पच की आवाज हो रही थी.

उधर लूसी भी झड़ गयी थी और अब उसकी सिसकारियां बंद हो गयी थीं.
वो दर्द में सिसकार रही थी.

दोनों भाई हम दोनों बहनों की चूत को रौंद रहे थे.

फिर एकाएक शिवम के धक्के तेज हो गये और फिर वो भी मेरी चूत में झड़ता चला गया.
उधर विवेक ने भी लूसी की चूत में माल भर दिया और हम चारों शांत हो गये.

इस तरह से उस रात हमने तीन बार मजे लिये.
हमारा रिश्ता अब और गहरा हो गया था. हम दोनों उनसे चुदती रहीं और एक बार तो दोनों को बच्चा भी ठहर गया था लेकिन दवाई खाकर हमने वो गिरा दिया.

एक दिन की बात है कि मैं और विवेक घर के पीछे बने बाथरूम में एक साथ मस्ती कर रहे थे.
हमने ध्यान नहीं दिया कि छत के ऊपर हमारे बड़े पिताजी के बेटे अनिकेत भैया ऊपर से हम लोगों को देख रहे थे.

उनको शक हो गया कि बाथरूम में कविता पहले से थी तो विवेक क्यों गया? भैया जब तक नीचे आते विवेक जा चुका था लेकिन भैया को शक हो गया था. वह हमारे ऊपर निगाह रखे हुए थे.

इस सब से हम दोनों अनजान थे लेकिन एक सप्ताह ही बीता होगा कि एक दिन विवेक ने दोपहर को मुझे इशारा करके पीछे जाने को कहा.

मैं पीछे जाने लगी तो विवेक भी पीछे आ गया.
इतने में हम दोनों चिपक कर बाथरूम में चले गए.

अनिकेत भैया बाथरूम के गेट पर आकर खड़े हो गए और दरवाजे को खटखटाने लगे.
हम दोनों डर गए थे.

अनिकेत भैया दरवाजे को और तेज खटखटाने लगे. अनिकेत भैया ने कहा- विवेक, दरवाजा खोल साले. मुझे पता है तू अंदर ही है.

अब हम दोनों बहुत डर गये. मगर विवेक कुछ सोचने लगा.
फिर उसने दरवाजा खोल दिया.

मैंने नजर नीचे झुका ली और अनिकेत भैया भी अंदर आ गये.
वो बोले- साले हरामी, ये क्या कर रहा है?
विवेक बोला- क्या कर रहा हूं, वही कर रहा हूं जो आप करते हो?
अनिकेत भैया- मैं क्या करता हूं?

विवेक- आप भी तो नानी के साथ करते हैं.
अनिकेत- क्या बकवास कर रहा है तू?
विवेक- मेरे पास फोटो भी है, अगर कहो तो अभी दिखाऊं?

अनिकेत ने मेरी तरफ देखा और फिर बोला- नहीं, रहने दे. मगर ये सब तुम दोनों का नहीं चलेगा. या तो मुझे भी अपने साथ शामिल करो या फिर मैं इस बात को ऐसे नहीं चलने दूंगा.
विवेक बोला- तो फिर पहले आप ही कर लो और मैं बाहर चला जाता हूं. मगर ये बात कहीं और नहीं जानी चाहिए.

मैं विवेक को हैरानी से देख रही थी. वो अनिकेत भैया से मेरी चूत चुदवाना चाह रहा था.

फिर विवेक बाहर चला गया और अनिकेत भैया ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

मैं थोड़़ी घबरा गयी. मैंने अनिकेत के बारे में कभी ऐसा नहीं सोचा था.

वो मुझे बांहों में लेकर मेरे ऊपर टूट पड़ा.
मैं पहले ना ना करती रही लेकिन मेरा मन भी अंदर से अनिकेत के खड़े लंड को पाने के लिए बेताब था. जिस लंड से मेरी मां चुद रही थी मैं भी देखना चाहती थी कि उस लंड में ऐसी क्या खास बात है?

अनिकेत भैया ने मेरी चूचियों को नंगी कर दिया और उन पर होंठ लगाकर पीने लगा.
मुझे अच्छा लगने लगा लेकिन मैं ज्यादा दिखा नहीं रही थी कि मुझे मजा आ रहा है.
वो बहुत मस्त तरीके से मेरी चूचियों को पी रहे थे.

मैं जोर जोर से सिसकारने लगी.
तभी विवेक भी अंदर आ गया.
मैंने विवेक से कहा- ये बहुत जोर से कर रहे हैं.
वो बोला- कोई बात नहीं, इनको भी मजा लेने दो.

अनिकेत बोला- कविता, मैंने तुझे गोद में लेकर खिलाया है. जब तू बच्ची थी तो मेरी गोद में खेलती थी. आज एक बार फिर मैं तुझे गोद में लेने वाला हूं लेकिन आज तुझे खिलाऊंगा नहीं बल्कि तुझे अपने लंड पर झुलाऊंगा.

इतना बोलकर वो मेरी चूत को जोर जोर से मसलने लगे. उन्होंने मेरा हाथ अपने लंड पर रखवा दिया.
मैं भी गर्म हो चुकी थी तो मैंने उनका लंड पकड़ लिया. अनिकेत का लंड बहुत लम्बा और मोटा था. मगर अभी वो पैंट के अंदर ही था.

फिर उसने मेरी चूत में उंगली दे दी तो मैं उचक गयी. वो तेजी से मेरी चूत में उंगली चलाने लगा.

अब मैं उससे लिपट गयी और उंगली को बर्दाश्त करने लगी. उसने एक हाथ पीछे ले जाकर मेरी गांड में भी उंगली दे दी.

मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं था. आगे से मेरी चूत में उंगली जा रही थी और पीछे से मेरी गांड में। ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने दोनों ही हाथ मेरे अंदर घुसा देगा.

फिर उसने उंगली निकाल ली और साथ ही अपनी पैंट भी खोल ली.
वो नीचे से अब अंडरवियर में था और उसकी पैंट नीचे गिर गयी थी.
उसने पैंट निकाल दी और केवल अंडरवियर में रह गया.
ऊपर उसने टीशर्ट पहनी हुई थी.

अब उसने मुझे अपनी गोद में उठाया और मेरी चूत में लंड घुसा दिया.
मैं एकदम से उचक गयी.

और तभी उसने मुझे अपने लंड पर उछालना शुरू कर दिया.
मैं उससे चिपक गयी और उसके लंड पर कूदने लगी.

उसका लंड नीचे ही नीचे मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था.
ऐसा लग रहा कि लंड मेरे पेट में टकरा रहा है. मैं भी उसको पूरा जड़ तक घुसवा रही थी. ऐसे ही मजा आ रहा था.

विवेक वहीं खड़ा होकर मजे ले रहा था. वो मेरी गांड को छेड़ रहा था. उधर अनिकेत तेजी से मुझे अपने लंड पर उछाल रहा था.

पांच मिनट की चुदाई के बाद मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया और मैं बेहाल हो गयी.

अभी भी अनिकेत के लंड के धक्के रुक नहीं रहे थे. अब बाथरूम में पच पच की आवाज होने लगी.

कुछ देर के बाद अनिकेत भी एकदम से शांत होता चला गया. उसका वीर्य मेरी चूत में निकल गया था.

इस तरह से अब विवेक और अनिकेत दोनों ने कई बार मिलकर मुझे चोदा.

अब विवेक मेरी मम्मी की चुदाई करने का प्लान कर रहा था और वो इस प्लान को अनिकेत के साथ बना रहा था।

शिवम और लूसी को इस बारे में नहीं पता था.

एक बार ऐसा हुआ कि शिवम ने मुझे चोदने का बोला.
उस दिन दोपहर में मम्मी मार्केट चली गयी.

शिवम मुझे बाथरूम में लेकर घुस गया और मेरी चूचियों को नंगी करके पीने लगा.
कुछ ही देर के बाद उसका लंड मेरी चूत में था. हम दोनों ने चुदाई की और शिवम मेरी चूत में खाली हो गया.
जब हमने बाथरूम का दरवाजा खोला तो बाहर अनिकेत भैया खड़े थे.

अनिकेत हम दोनों को देखकर मुस्कराने लगे लेकिन शिवम की तो जैसे हवा ही निकल गयी.
वो कुछ नहीं बोल सका.

अनिकेत बोले- क्यों रे … अपनी ही सगी बहन के साथ?
मैंने शिवम का चेहरा देखा तो वो लाल हो गया था.

अनिकेत ने कहा- डरो नहीं, विवेक ने मुझे सब पहले से ही बता दिया था.
फिर शिवम थोड़ा नॉर्मल हो गया.

अनिकेत भैया ने मुझे गोद में उठा लिया और बोले- तुमने तो पूरे घर में चुदाई का माहौल बना दिया है.

मैंने कहा- शुरूआत भी तो आपने ही की थी. मां को अपनी रखैल बना लिया आपने!
अनिकेत बोले- मैं लूसी को भी चोदना चाहता हूं.

शिवम ने कहा- लेकिन विवेक मानेगा?
अनिकेत- उसको मनाना मेरा काम है. वो तुम्हारी मां को चोदना चाहता है.

शिवम- वो तो मैं भी चोदना चाहता हूं. करो कुछ प्लान फिर तो!
अनिकेत- इतना आसान नहीं है उसे चोदना. तुम लोग अभी छोटे हो. उसको चोदने में टाइम लगेगा.
शिवम- कोई छोटा नहीं है. सब बड़े हो गये हैं. आप प्लान करो।
अनिकेत- ठीक है, आज रात को कुछ करते हैं. सभी मिलकर मस्ती करेंगे.

अब हमारी पूरी तैयारी हो गयी थी.

अनिकेत भैया, विवेक और लूसी पिछले दरवाजे से घर में लगभग 10:30 बजे अंदर आए.
आज अनिकेत भैया के नए रिश्ते के साथ अंदर का माहौल गर्म था.

अनिकेत भैया ने लूसी को अपनी बांहों में ले लिया और उसकी चूचियों को दबाने लगे.
लूसी को शर्म आ रही थी. वो पहली बार अनिकेत से चुदवाने जा रही थी.

शिवम बोला- अनिकेत भैया, आप मां को कब से चोद रहे हैं?
अनिकेत भैया बोले- बहुत लंबी कहानी है. 10 साल से ऊपर हो गये हैं. तब से ही चोद रहा हूं. बताने बैठूंगा तो 2 घंटे लग जाएंगे.

मैं बोली- आप शॉर्ट में बताइए.
अनिकेत भैया- काम करने दो ना पहले, अभी तो हम मजा लेंगे।
मगर हम जिद करने लगे तो भैया बताने लगे.

अनिकेत भैया बोले- तब मैं 19 साल का था. चाची का तुम्हारे बड़े मामा के बड़े लड़के सुनील से संबंध था. वो उसको बराबर आकर चोदता था. मुझे एक दिन शक हो गया और मैं पीछा करने लगा.
एक दिन मेरा काम बन गया. उस दिन सुनील आया हुआ था. मैं एकदम से अंदर चला गया तो देखा कि चाची बेड पर नंगी पड़ी हुई थी. घर में कोई नहीं था. मुझे देखकर सुनील चौंक गया.
चाची ने अपना चेहरा छुपा लिया. सुनील जल्दी से उठकर कपड़े पहनने लगा और चाची भी खुद को ढकने लगी. वो अपनी चूचियों और चूतड़ों को ढकने की कोशिश कर रही थी.
सुनील वहां से भाग गया लेकिन मैंने चाची को वहीं पकड़ लिया.
उस दिन मैंने चाची को कहा कि ये सब कब से चल रहा है तो उसने मुझे पूरी बात बताई. उसकी चुदाई की कहानी सुनकर मेरा भी लंड खड़ा हो चुका था.

अनिकेत भैया आगे बोले- सुनील और चाची की चुदाई मैंने बीच में ही खराब कर दी थी. उस वक्त मैं भी गर्म था और चाची भी अधूरी थी. मैंने चाची को नीचे बेड पर गिरा लिया और उसके ऊपर चढ़ गया.
मैंने उसको चूसा और फिर उसको नंगी करके अपनी पैंट भी निकाल दी. मैंने चूत में लंड लगाया और उसको चोदने लगा. चाची भी लंड लेना चाहती थी इसलिए पूरा साथ देने लगी.
कुछ देर की चुदाई के बाद मैं चाची की चूत में झड़ गया. वो खुश हो गयी और मैं भी खुश हो गया. उस दिन मैंने पहली बार चाची को चोदा था. तब से ही हमारा रिश्ता चला आ रहा है.

ये सब बताने के बाद अनिकेत ने लूसी की चूत में लंड पेल दिया और उसको चोदने लगा.
लूसी पहली बार अनिकेत का लंड ले रही थी और उसको दर्द भी हो रहा था.
मगर वो धीरे धीरे फिर चुदाई का पूरा मजा लेने लगी और आराम से चुदते हुए अनिकेत का साथ देने लगी.

उसको चुदते हुए देखकर अब विवेक और शिवम भी नहीं रुक पाये.
विवेक और शिवम भी मुझे पर टूट पड़े. वो दोनों मेरी चूत और गांड को सहलाने लगे.

और कुछ देर बाद ही दोनों के लंड मेरे दोनों ही छेदों में थे.
लूसी अनिकेत से चुद रही थी और मैं विवेक और शिवम से.

पूरे रूम में चुदाई की आवाजें गूंज उठीं.
सब लोग सिसकार रहे थे. बहुत मजा आ रहा था.

ग्रुप सेक्स में चुदते हुए मैं तो बहुत जल्दी झड़ गयी.
पहली बार इतना मजा आया.

कुछ देर में ही अनिकेत ने भी लूसी की चूत में अपना माल गिरा दिया. फिर वो अलग हो गया और शिवम और विवेक ने लूसी को पकड़ लिया.

उन दोनों ने लूसी को भी आगे और पीछे दोनों तरफ से चोदा.

विवेक ने अपनी बहन लूसी की गांड चुदाई की और शिवम ने उसकी चूत मारी. लूसी ने उन दोनों के लंड के माल को अपनी चूत में ही लिया.
मैं भी हैरान थी कि वो इतनी बड़ी चुदक्कड़ हो गयी थी.

पहले उसने अनिकेत का लंड लिया और फिर शिवम और विवेक का लंड भी ले गयी. उसकी चूत उन तीनों के माल से पूरी तरह से भर गयी थी.
उसकी चूत में से सफेद गाढ़ा माल बहुत देर तक बाहर गिरता रहा जिसको वो अपनी चूत पर रगड़ती रही और मुस्कराती रही.

उस रात हम दोनों ही कई बार चुदी.
फिर सब शांत हो गये.

इस तरह उस दिन हम पांचों ने मिलकर चुदाई का मजा लिया.
मगर मम्मी की चुदाई उनके बेटे से होनी बाकी थी.

इससे आगे की कहानी मैं आपको फिर कभी बताऊंगी. आपको ये फैमिली ग्रुप सेक्स कहानी कैसी लगी इस बारे में अपना सुझाव और अपने विचार जरूर लिखें.
[email protected]

फैमिली ग्रुप सेक्स कहानी का अगला भाग: परिवार में बेनाम से मधुर रिश्ते- 3

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