देसी मेड सेक्स स्टोरी में मैंने घरेलू नौकरानी को अपनी मालिश के लिए बुलाया. मुझे पता लग चुका था कि वह मेरे माम की निजी रखैल है. मैं उसके गदराये बदन का मजा लेना चाहता था.
सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार!
आज़ मैं फ़िर एक कहानी के साथ हाज़िर हूँ आपके हवस की प्यास को और बढ़ाने!
आशा है कि आपको मेरी यह कहानी भी उतनी ही पसंद आएगी.
सबसे पहले तो मैं आप सबका आभारी हूँ कि आपने मेरी पिछली कहानी
पुश्तैनी गाँव में चुदाई का मजा
को इतना प्यार दिया.
मैं जानता हूँ कि आप सब यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि उसके आगे क्या हुआ.
तो दोस्तो, वही बताने के लिए मैं यह देसी मेड सेक्स स्टोरी लेकर आया हूँ आज!
जैसे आपने पिछली कहानी में पढ़ा कि सक्कू को अपनी रंडी बनाकर ज़ब मैं उसकी भोसड़ी को पेल रहा था तो हमारा ख़ेल शोभा काकी मज़े से देख कर अपनी चूत सहला रही थी.
आंखें बंद होने के कारण उसे पता ही नहीं चला कि कब हम दोनों उसके क़रीब आकर उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे.
सक्कू ने मुझे आँख मारते हुए चुप रहने का इशारा किया, आगे बढ़ते हुए शोभा काकी के साड़ी में अपना हाथ घुसाया और काकी की चूत थपथपाई.
अचानक हुए हमले से शोभा काकी डर के मारे चिल्ला दी.
हमें देख कर सकपकाते हुए उसने अपना हाथ साड़ी से बाहर निकाला और अपना पल्लू संभालते हुए गर्दन झुका कर वहां से जाने लगी.
सक्कू ने झट से काकी का हाथ पकड़ते हुए उसे रोका.
तो काकी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.
लज्ज़ा से अपनी गर्दन झुकाते हुए वह सक्कू और मुझे चोर आँखों से देखने लगी.
उसकी लाल आँखें देख कर मैं समझ गया कि काकी हमारी चुदाई देख कर गर्म हो चुकी थी.
वैसे तो मैं शोभा काकी को कई वर्षों से जानता था, बाकी मजदूरों की तरह वह भी खेतों में काम करने आती थी.
पर आज पहली बार मेरी नजर में उसके लिए वासना के भाव थे.
आंखें बंद करते हुए जब वह अपनी चूत रगड़ रही थी तो उसकी साड़ी का पल्लू नीचे ढल चुका था, उसकी मादक चूचियां और नंगी जांघें आज पहली बार मैं देख रहा था.
शोभा काकी शायद 45-46 साल की औरत थी, जवानी के ख़ुलके मज़े ले लेकर उसका बदन ज़बरदस्त गदराया हुआ था.
40 इंच के लगभग फ़ूली हुई चूचियाँ, हल्का सा फुला हुआ पेट और चरबी से भरी हुई उसकी वो जांघें देख कर मैं क्या कोई भी मर्द उसको अपने नीचे लेने के लिए तरस जाए.
सक्कू के साथ साथ मैंने भी उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी तऱफ खींचते हुए अपनी बाहों में भर लिया.
पर लोक-लज्ज़ा के कारण वह डर कर मुझसे दूर जाने लगी.
सक्कू ने शोभा काकी का हाथ मरोड़कर उसे डाँटते हुए कहा- यहाँ क्या करने आयी थी तू रंडी? साली अब इतना क्यों शरमा रही है कुतिया, सब देख लिया हमने कैसे भोसड़ा रगड़ रही थी तू भोसड़ी की!
शोभा काकी ने सक्कू की डाँट से डरते हुए मेरी तरफ करुणा से देखा और बोली- नहीं नहीं छोटे मालिक, मुझे मत मैला करो, मैं क़सम खाती हूँ मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी. पर मुझे छोड़ दो!
काकी की इस बात से जोर जोर से हंसती हुई सक्कू बोली- हाहा हाहा हा … रंडी नखरे तो ऐसे कर रही है जैसे कोई सती सावित्री है. पर मुझे सब पता है कि तू कितनी बड़ी रांड है.
सक्कू के अपमानजनक शब्द सुनकर काकी ग़ुस्से में बोली- क्या बकवास कर रही हो सक्कू बाई? तेरे जैसी समझ रखा है क्या मुझे? ख़ुद मुँह काला करवा लिया और मुझे रंडी बोल रही है तू हरामण!
शोभा काकी के ग़ुस्से से सक्कू और ज़्यादा भड़क गयी और बोली- लगता है तू ऐसे नहीं मानेगी मादरचोद, तो सुन कुतिया, अभी बताती हूँ कि मुझे क्या क्या पता है!
काकी को मेरे से दूर करते हुए सक्कू ने उसका गला पकड़ते हुए बोली- आप भी सुनो छोटे मालिक, इस रंडी की सच्चाई मैं बताती हूँ आपको! बड़ी सती सावित्री बन कर घूमती है. पर इससे बड़ी रांड औरत पूरे गाँव में और कोई नहीं!
अब काकी का ग़ुस्सा और बढ़ने लगा तो उसने सक्कू का हाथ अपने गले से झिड़कते हुए कहा- तू क्या बताएगी रंडी, मुझे भी सब पता है तेरे बारे में! लेकिन ऐसी घटियाँ बातें सिर्फ तेरे जैसी दो कौड़ी की सड़क छाप औरत ही कर सकती है!
शोभा काकी की इस बात पर सक्कू ने भी अपनी आवाज़ बढ़ाते हुए कहा- अच्छा? तो यह बता कुतिया, रोज़ रात को क्या अपनी माँ चुदवाने जाती है बलवंत जी के घर? भोसड़ी की … मैंने अपनी आँखों से देखा है तुझे उनके लौड़े की रखैल बन कर चुदवाती हुई को! और मुझे यह भी पता है कि तनया तेरे पति की नहीं बल्कि बलवंत जी के लौड़े की नाजायज पैदाइश है.
सक्कू की बातें सुनकर मुझे 440 वाल्ट से भी ज़्यादा झटका लगा और मैं बिना कुछ बोले आश्चर्य से उन दोनों को देखता रह गया.
अपनी भड़ास निकालते हुए सक्कू ने शोभा काकी की असलियत दिखा दी.
शोभा काकी भी अपना राज़ खुल जाने से सक्कू को हैरान होकर देख रही थी.
काकी के चेहरे का डर और सक्कू की बातों से साफ़ लग रहा था कि शोभा काकी पूरे गाँव के सामने तो बड़ी भोली-भाली औरत का पर्दा लेकर घूम रही थी.
सक्कू ने तो ऐसे ऐसे किस्से बताए कि शोभा काकी बिल्कुल बुत बनकर खड़ी रही, अपनी पोल ख़ुलते देख वो शर्म से अपनी गर्दन नीचे कर चुपचाप सुनती रही.
दोस्तो, वैसे मैं बताना चाहूंगा कि बलवंत कोई और नहीं बल्कि मेरे सगे मामाजी हैं जो यहीं हमारे गाँव में ही रहते हैं.
देश सेवा के उद्देश्य से वे कई साल तक फ़ौज में अपना कर्तव्य बजा चुके थे.
देशप्रेम के चलते मेरे मामाजी ने शादी भी नहीं की थी.
अभी कुछ साल पहले ही वे फ़ौज से निवृत होकर फिर से गाँव में ही रहने लगे थे.
पर जब मुझे पता चला कि शोभा काकी मेरे मामाजी की रखैल है और तनया मेरे मामाजी की औलाद है तो मेरे तो होश उड़ गए और मैं काकी को आश्चर्य से देखने लगा.
शोभा काकी हाथ छोड़कर मैंने उनसे कहा- काकी? क्या ये सक्कू सच बोल रही है? क्या सच में आप और मामाजी?
मैंने बस इतना ही कहकर अपनी बात रोक ली.
काकी ने भी हिम्मत कर के अपना सर उठाया और मुझे देख कर बोली- जी छोटे मालिक! पर दया करो मालिक, किसी को कुछ मत कहना वरना मेरा घर बरबाद हो जाएगा, मैं किसी को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहूंगी मालिक! दया करो!
शोभा काकी ने जब अपने मुँह से सब क़बूल कर ही लिया तो मुझे भी अब उनको चोदने की और मेरे लौड़े की हवस मिटाने का इसमें एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा.
पर मुझे पता था कि यह इतने आसानी से मेरे हाथ नहीं आने वाली!
और अगर शोभा काकी का रस पीना है तो मुझे उसको अपने दबाव में लेना पड़ेगा ताकि वह ज़्यादा विरोध ना कर सके.
जान बूझकर मैंने डांटते हुए कहा- शर्म आनी चाहिए शोभा तुझे! पराए आदमीं से चुदवाकर बच्चा भी पैदा कर दिया तूने? तू तो सच में इस सक्कू से भी बड़ी वाली रंडी निकली.
आज तक जिसे मैं काकी कहकर पुकारता था, आज उसे ही मैंने रंडी बोल दिया और यह बात शोभा काकी को भी थोड़ी ख़टक गयी.
पर वह चुपचाप गर्दन झुकाये खड़ी रही.
मुझे यह बात अच्छे से पता चल चुकी थी कि अगर मुझे शोभा काकी जैसी अधेड़ उम्र की औरत का जिस्म नौचने का मज़ा लेना है तो उसको डराना ज़रूरी था.
हाथ आये इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए मैंने भी उनको खरी-खोटी सुनाते हुए और चार पांच बार उनको रंडी का क़िताब दे दिया.
वह भी बार बार मुझ से माफ़ी मांगती हुई अपनी ग़लती क़बूल कर रही थी.
सक्कू तो उसे और ज़लील करते हुए कुलटा, बाजारू रंडी, रखैल और ना जाने क्या क्या बोल कर अपमानित कर रही थी.
पर तभी मुझे कमरे की खिड़की से खेतों में मजदूर आते हुए दिखाई देने लगे.
तो मैंने शोभा काकी से कहा- तुझे अभी तो छोड़ रहा हूँ. पर साली, मेरे लौड़े के नीचे आने के लिए तैयार हो जा तू भी, चल जा काम कर अब अपना!
शोभा काकी बिना कुछ बोले वैसे ही पलटी और मुड़कर खेतों की तरफ जाने लगी.
सक्कू के वज़ह से मुझे आज और एक चूत नसीब होने वाली थी.
और इसी ख़ुशी में मैंने सक्कू को चूमते हुए उसका धन्यवाद किया.
सक्कू की गांड मसलते हुए मैं बोला- तू भी जा रंडी और बात कर शोभा रंडी से! आज शोभा को मेरे लौड़े के नीचे लिटाने का काम तेरा, समझ गयी?
तब सक्कू ने भी मेरे लौड़े को पतलून के ऊपर से मसलते हुए कहा- बिल्कुल छोटे मालिक, आज रात शोभा आपके लौड़े की इबादत करने आ जायेगी.
सक्कू के जाने के बाद मैं सारे मज़दूरों की गिनती करते हुए उनको काम बांटकर खाना खाने हवेली पर आ गया.
दोपहर की लम्बी चुदाई की वजह से और भर पेट खाना खाने से मुझे नींद तो आ रही थी पर मेरा बदन भी थोड़ा दर्द दे रहा था.
मैंने अपने नौक़र हरिया को बुलाकर मालिश के लिए पूछा.
संयोग से उसने शोभा काकी का ही नाम आगे किया तो मेरी थकान मानो अपने आप ही दूर हो गयी.
मैं तो अपनी क़िस्मत पर ख़ुश था कि कैसे आज मेरी सारी चाहतें अपने आप ही मेरे झोली में आकर गिर रही थी.
सक्कू के बाद अब शोभा का बदन मेरे जवान बदन में आग लगा चुका था.
बिस्तर पर लेट कर मैं शोभा के बारे में सोच ही रहा था कि उतने मे हरिया ने आवाज़ देकर कहा- अंदर आ जाऊँ छोटे मालिक?
मैंने उसे आने की अनुमति दी तो वह और शोभा काकी कमरे में दाखिल हुए.
शोभा काकी शर्म और डर से अभी भी कुछ बोल नहीं पा रही थी.
मैंने कमरे की ख़ामोशी तोड़ते हुए कहाँ- क्यूँ रे हरिया, ये ठीक से कर लेगी ना मालिश?
हरिया ने भी शोभा काकी की तारीफ़ करते हुए कहा- बिल्कुल मालिक, शोभा तो इस क़ाम में माहिर है. वैसे फ़ौजी साहब भी इसी से मालिश करवाते हैं.
मेरे मामाजी को पूरा गाँव ‘फ़ौजी साहब’ से बुलाता है.
हरिया के मुँह से उनका नाम सुनते ही शोभा काकी डर के मुझे देखने लगी.
उसे लगा कि कहीं मैं उसका राज हरिया को ना बता दूँ.
पर मैं इतना मूर्ख नहीं था कि हाथ लगे माल को यूँ ही जाने दूँ.
मैं बिस्तर पर बैठते हुए बोला- ठीक है, तू जा अब और ख़ेत का ध्यान रख़. मालिश के बाद मैं सोऊँगा तो किसी को यहाँ मत भेजना. समझा?
हरिया ने मुंडी हिला दी और बोला- ठीक है मालिक, और कुछ चाहिए तो आवाज़ दे देना!
इतना बोलकर वो कमरें से बाहर ज़ाने लगा तो मैंने उसे रोकते हुए कहा- अरे सुन, वो अपने दामू की लुगाई है ना सक्कू उसको भेज ज़रा, कल का हिसाब बाक़ी है उसका!
मेरा आदेश लेकर हरिया जैसे ही कमरे से बाहर गया तो मैंने ख़ुद जाकर दरवाजा बंद किया और शोभा के पास जाकर खड़ा हो गया.
डर के कारण शोभा काकी अपनी गर्दन झुकाए खड़ी रही.
मुझे पता था कि अगर उसे अपने वश में करना है तो इसका डर भी क़म करना होगा.
इसलिए मैं उसका हाथ पकड़कर उसे देख कर मुस्कुराया, हाथ से खींचते हुए मैंने उसको मेरे बिस्तर के करीब ले आया.
मैंने एक बात देखी कि इस बार काकी ने मेरे से हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की, वह बस मुझे देखते हुए अपनी आँखों से एक अनुरोध कर रही थी.
उसकी पीठ सहलाते हुए मैंने उसको बिस्तर पर बिठाया और खुद उसके बगल में बैठ गया.
मेरे हाथ के स्पर्श से काकी शरमा रही थी, उसके बदन की थरथराहट मुझे साफ़ अनुभवित हो रही थी और मुझे लगा अगर इसको खोलना है तो इसको थोड़ा प्यार से ही खोलना पड़ेगा.
उसका डर भगाने के लिए मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए कहाँ- इतना क्यूँ डर रही है शोभा, मैं कौन सा तुमको ख़ाने वाला हूँ? बस मालिश ही तो करनी है!
सिर्फ मालिश सुनके उसने अपनी गर्दन उठाई और बोली- ठीक है मालिक, सिर्फ मालिश करनी है तो मैं कर दूंगी पर आप और कुछ तो नहीं कराओगे ना?
मैंने हसते हुए कहा- क्यों, तेरा मन है क्या कुछ और करने का? अगर तू कहे तो सक्कू से बात कर लेता हूँ मैं?
उसने फिर से डरते हुए कहा- नहीं नहीं मालिक, मुझे इसमें मत घसीटो, मुझे मैला मत करो, मैं तो साहब जी की अमानत हूँ.
धीरे धीरे मैंने उससे बात करते हुए उसे थोड़ा खोलना चालू किया ताकि मुझे उसके और मेरे मामाजी के बारे में सब जानकारी मिल सके.
शोभा काकी ने बताया कि वह और मेरे मामाजी एक दूसरे को पसंद करते थे.
पर पारिवारिक संबंध के चलते उसके बाप ने उसकी शादी कहीं और कर दी.
मेरे मामाजी ने भी अपने सच्चे प्यार के चलते किसी और से शादी नहीं की और वे फ़ौज में चले गए.
उसकी कहानी सुनकर मुझे भी थोड़ा बुरा लगा.
मैंने शोभा की पीठ सहलाते हुए कहा- क्या सच में तनया मेरे मामाजी की लड़की है?
शोभा काकी शरमाती हुई बोली- जी छोटे मालिक, साहब जी के प्यार की निशानी है वो!
उसके प्यार-व्यार की बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ रही थी तो मैंने उसको अपनी तरफ खींचते हुए कहा- अरे ठीक है, चूत मत दे पर मज़ा तो दे सकती है ना तू?
मेरे मुँह से ‘चूत’ सुनकर वह थोड़ी शरमाई और बोली- कैसा मज़ा छोटे मालिक? मैं कुछ समझी नहीं?
मजा तो वह भी ले रही थी पर मुझे लगा कि साली नख़रे कर रही है.
तो मैंने भी उसे बोला- तू मालिश तो चालू कर … बाक़ी का बाद में तू ख़ुद समझ जाएगी.
उसने तेल की शीशी उठाई और मेरे पास आकर खड़ी हुई.
मैंने बिना कुछ बोले अपने हाथ ऊपर कर दिए तो उसने मेरी बनियान निकाल दी.
शोभा काकी बिल्कुल मेरे बग़ल में थी, उसके बदन की गर्मी और पसीने की खुशबू से मेरे अंदर का मर्द फिर से खूंखार बनता जा रहा था.
बनियान निकाल कर मैं लेटा तो उतने में सक्कू ने दरवाज़ा खटखटाया.
देसी मेड सेक्स स्टोरी 3 भागों में है.
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