न्यूड देसी वाइफ सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि मेरे पति अपने दोस्त को घर ले आए। बिजनेस की बात पर दोनों में ठन गई। इसी बात पर ताश की बाजी लगी और …
यह कहानी सुनें.
हैलो फ्रेंडस, मैं अंजलि शर्मा वापसी आयी हूं अपनी एक और दास्तां के साथ।
इस बार सोचा क्यों ना आपको अपनी पुरानी जिंदगी की सैर करवाऊं।
न्यूड देसी वाइफ सेक्स स्टोरी शुरू करने के पहले सभी लोगों का धन्यवाद। आप लोगों ने मेरी कहानियों को पढ़ा और मुझे इतना प्यार दिया। मुझे सभी के मेल्स मिले जिनका सभी का मैंने रिप्लाई दिया।
जो पाठक मेरी कहानी पहली बार पढ़ रहे हैं उनसे निवेदन है कि वो मेरी पुरानी सभी कहानियां एक बार जरूर पढ़ें ताकि आप लोगों को भी सब समझ आ सके।
मेरी पिछली कहानी थी: नादान पति के सामने अफ्रीकन बॉयफ्रेंड से चुदाई
जैसा कि आप सभी को पता है मेरी उम्र 40 साल है मगर दिखने में मैं अभी भी सिर्फ 26-27 साल की लड़की की तरह लगती हूं। मैंने खुद को काफ़ी मेन्टेन किया हुआ है। मैं काफ़ी चुदकड़ किस्म की औरत हूं।
मुझे बहुत से लड़के चोद चुके हैं मगर बहुत ही कम लोगों ने मुझे चरम सुख की प्राप्ति करवाई है।
पहले मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी। मेरी दूसरी शादी के बाद मेरी जिंदगी को मैंने पूरा बदल दिया।
ये कहानी तब की है जब मेरी पहली शादी हुई थी।
उस टाइम मैं साड़ी ही पहना करती थी। उसका ब्लाउज काफ़ी डीप क्लीवेज का होता था जिसमें से मेरा क्लीवेज काफ़ी हद तक दिखता था और घर पर ज्यादा समय में मैं गाउन पहनना पसंद करती थी।
मेरा फिगर उस टाइम 34-28-36 होगा।
तो जैसा कि मैंने बताया मेरी पहली शादी हुई थी। पति का नाम संजीव था। मेरे पति संजीव और मैं मुंबई में रहते थे और मेरे ससुराल वाले पुणे में रहते थे। मेरे पति का मुंबई में ही बिज़नेस था।
उस समय मेरी पहली शादी को सिर्फ 7 महीने ही हुए थे। संजीव मुझे रोज़ चोदते थे मगर इन सात महीनों में वो मुझे बहुत ही कम बार चरम सुख तक ले जा पाए थे।
वो सिर्फ अपनी संतुष्टि जितना ही काम करते थे। मेरे सुख से उन्हें कुछ लेना देना नहीं था।
मैं अपने पति से बहुत डरती थी। वो सख्त नहीं थे मगर फिर भी मुझे उनसे डर लगता था इसलिए मैंने किसी गैर मर्द से सम्बन्ध नहीं बनाये थे।
मगर फिर एक हादसा हुआ और मेरी जिन्दगी बदल गई।
उसके बाद मैंने खुद के लिए जीना शुरू कर दिया।
नवम्बर महीने की बात है। एक दिन मेरे पति शाम को ऑफिस से आते समय अपने एक दोस्त को अपने साथ घर ले आये।
मैं उन्हें पहले से जानती थी, उनका नाम पीयूष था।
वो लिविंग रूम में आ गए और वहीं बैठ गए।
मैंने दोनों के लिए जूस लाकर दिया, दोनों ने जूस पिया।
हम तीनों बातें करने लगे।
मैं संजीव के साथ ही बैठी थी।
संजीव फिर कुछ ऑफिस की बातें करने लगे।
फिर पति ने मुझे ड्रिंक लाने को कहा, साथ ही ताश के पत्ते भी मंगवा लिए।
मैंने बोतल लाकर रख दी और गिलास के साथ ही पत्ते भी दे दिये।
पति ने पैग बनाये और दोनों पत्ते बांटकर खेलने लगे।
वो दोनों बिजनेस की बात भी कर रहे थे।
संजीव बोले- यार पीयूष, वो जो हमारी नई डील होने वाली है जिसमें हम दोनों टेंडर भरना चाह रहे हैं, मैं चाहता हूं कि तू वो टेंडर ना भरे। वो डील मैं करना चाहता हूं। तेरे सिवा कोई और उस डील को नहीं कर पायेगा इसलिए तू उस डील से हट जा!
पीयूष- ऐसा कैसे हो सकता है. मेरी भी कम्पनी है, मुझे भी काम चाहिए।
संजीव फिर कुछ नहीं बोले।
गेम चलती रही।
फिर कुछ देर बाद पीयूष बोले- संजीव सुन, हम शर्त लगाते हैं। अगर तू जीत गया तो मैं टेंडर नहीं भरूंगा लेकिन अगर तू हार गया तो भाभी को अपनी साड़ी उतारनी पड़ेगी।
ये बात बोलकर पीयूष जी हंसने लगे।
मैं इस बात से एकदम शॉक हो गई थी कि यह क्या बोल रहे हैं।
संजीव भी साथ में हंसने लगे।
गेम चल रही थी।
कुछ देर बाद संजीव बोले- ठीक है, मैं तैयार हूं।
मैंने संजीव को एक तरफ बुलाकर समझाया कि मैं ये नहीं कर पाऊंगी।
वो बोले- ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं उसे जीतने ही नहीं दूंगा।
संजीव और पीयूष जी का पहला राउंड शुरू हुआ।
संजीव ने पत्ते बाटें और देखते देखते खेल शुरू हो गया।
मैं उस वक़्त बहुत घबराई हुई थी क्योंकि यहाँ मेरी इज्जत दांव पर लगी हुई थी।
कुछ देर तक वो गेम ऐसे ही चलती रही। मैं संजीव के साथ वाले सोफे पर ही बैठी हुई थी और खेलते खेलते वो बारी संजीव ने जीत ली।
मेरी सांस में सांस आयी और मुझे लगा कि चलो मैं बच गई।
संजीव बोले- अंजलि मैंने बोला था मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा। तुम्हें मुझे पर विशवास नहीं था। अरे मैं इस खेल का पुराना खिलाड़ी हूं।
यह बात सुन कर पीयूष जी बोले- अच्छा … ऐसी बात है तो ठीक है एक पारी और खेलते हैं। इस बार हमारी दूसरी डील को मैं दाँव पर लगाता हूं। अगर इस बार तुम जीते तो ये डील भी तुम्हारी! अगर मैं जीता तो भाभी इस बार सिर्फ अपनी साड़ी ही नहीं बल्कि साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट तीनों एक साथ उतारेंगी।
मैं पीयूष जी की यह बात सुन कर दंग रह गयी थी। मैं समझ गई थी कि उन्होंने अपनी हारी हुई डील को वापस लेने के लिए शर्त नहीं लगाई थी।
मुझे साफ साफ समझ आ रहा था कि वो मुझे नंगी देखना चाहते थे या मुझे चोदना चाहते थे।
उनकी आँखों में मुझे मेरे लिए हवस साफ दिखाई दे रही थी।
पीयूष जी सोफे पर बैठे बैठे मुस्करा रहे थे।
मगर मेरे पति को ये हवस दिखाई नहीं दे रही थी, उन्हें सिर्फ अपनी डील दिखाई दे रही थी।
संजीव ने बोला- ठीक है, मैं राज़ी हूं।
मैंने संजीव को रोकने की कोशिश की मगर संजीव नहीं रुके।
दोनों ने खेलना शुरू किया।
मैंने दूसरे पैग बना दिए थे।
इस बार मुझे अधिक घबराहट हो रही थी कि अगर संजीव नहीं जीते तो नंगी होना पड़ेगा।
यह पारी 7-8 मिनट चलती रही और अचानक पीयूष जी के चेहरे पर मुस्कराहट आयी और उन्होंने अपने पत्ते दिखाए।
उनके पत्ते इस बार बन चुके थे और मेरी सांसें एकदम रुक चुकी थीं, दिल तेज़ धड़क रहा था। संजीव का चेहरा भी उतर चुका था।
संजीव हार चुके थे और पीयूष जी वो गेम जीत गए थे।
मुझे अब पता चल गया था कि मुझे कपड़े उतरने पड़ेंगे।
पीयूष ने मेरी तरफ एक मुस्कान से देखा और बोले- भाभी, आप अपना काम शुरू करें!
मैं संजीव को ही देख रही थी और सोच रही थी कि क्या किया जाये।
संजीव ने अपनी आँखों से इशारा किया कि उतार दो।
मैं बहुत हिम्मत करके खड़ी हुई।
संजीव और पीयूष मेरे सामने बैठे हुए थे। मैंने अपनी साड़ी का पल्लू बहुत शरमाते हुए नीचे गिराया और फिर धीरे धीरे मैंने अपनी साड़ी भी उतार दी।
मैं ब्लाउज और पेटीकोट में थी।
पीयूष जी की हवस भरी आंखें फटी जा रही थीं।
मुझे अधनंगी देखने के लिए वो ललचा रहे थे।
तभी मुझे ध्यान आया कि मैंने पेटीकोट के नीचे पैंटी नहीं पहनी है।
अगर मैं पेटीकोट उतार दूंगी तो मैं नंगी हो जाऊंगी इसलिए मैं अपने रूम में ऊपर जाने लगी।
तभी मुझे पीयूष जी ने रोका और पूछा- भाभी आप कहाँ जा रही हो? पहले काम तो पूरा कर लो?
मैंने कहा- मैं 2 मिनट में आ रही हूं।
फिर संजीव ने मुझे रोका और पूछा- क्या हुआ, ऊपर क्यों जा रही हो?
मैंने धीरे से उनके कान में बोला- मैंने नीचे पैंटी नहीं पहनी है। पेटीकोट के अंदर मैं नंगी हूं इसलिए ऊपर जा रही हूं रूम में पैंटी पहनने!
संजीव बोले- ठीक है, तुम जाओ।
मैं रूम में ऊपर आ गयी।
मैंने अपनी अलमारी खोली और ड्रॉवर में से एक नीली पैंटी निकाली और अपना पेटीकोट ऊपर करके पहन ली।
मैं वापस नीचे आ रही थी और मुझे बहुत शर्म भी आ रही थी कि मुझे मेरे पति की वजह से नंगी होना पड़ेगा; वो भी एक गैर मर्द के सामने।
फिर मैं नीचे आ गयी।
पीयूष और संजीव नीचे सोफे पर ही बैठे थे।
मैं नीचे आ चुकी थी।
संजीव ने मुझे आँखों से इशारा करते हुए पूछा- पैंटी पहन ली?
मैंने भी आँखों के इशारे से बता दिया- हाँ पहन ली।
पीयूष जी हमें ही देख रहे थे और बोले- क्या इशारेबाज़ी हो रही है आप दोनों में?
मैंने बोला- कुछ नहीं, बस यूं ही!
पीयूष बोले- ठीक है भाभी, आप अपना काम शुरू करो।
मैंने बिना कुछ बोले ही अपने ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किये और धीरे धीरे सारे हुक खोल दिए।
मेरा ब्लाउज खुल चुका था पूरा, मेरी नीले रंग की ब्रा उसमें से अब दिखने लगी थी।
मैंने अपना ब्लाउज उतार कर सोफे पर रख दिया और फिर मैंने अपने पेटीकोट का नाड़ा पकड़ा और उसे भी खींच दिया।
पेटीकोट भी मेरी मखमली कमर से सरकता हुआ नीचे ज़मीन पर गिर गया।
मैं सिर्फ ब्रा पैंटी में रह गयी।
मुझे अब खुद पर बहुत शर्म आ रही थी।
मैं एक गैर मर्द के सामने अधनंगी थी और वो मुझे घूरे जा रहा था और मैं कुछ नहीं कर सकती थी।
मैं मेरी ब्रा मेरे भारी दूध से भरे हुए 34″ के गोल मटोल लाल बूब्स को संभाल रही थी और मेरी पैंटी मेरे पिघलते हुए यौवन को छुपाने की कोशिश कर रही थी।
पीयूष जी मुझे ही देख रहे थे। पीयूष जी 5 मिनट तक मुझे अधनंगी ऐसे ही घूरते रहे।
मैंने अपनी दोनों आँखें नीचे झुका रखी थीं।
पीयूष जी ने बोला- भाभी, हमारे लिए पैग बनाइये।
मैंने फिर से दोनों को पैग बना कर दिए और दोनों ने अपना तीसरा पेग खत्म किया।
पीयूष जी संजीव से बोले- यार मुझे अच्छा नहीं लग रहा कि भाभी ऐसे मेरे सामने इस हालत मे अधनंगी खड़ी हैं। मैं चाहता हूं कि वो अपनी साड़ी दोबारा पहन ले, मगर उसके लिए तुम्हें खेलना होगा। अगर तुम जीत गए तो भाभी कपड़े पहन सकती है और अगर हार गए तो भाभी को तो अब पूरी तरह नंगी होना पड़ेगा।
संजीव इस वक़्त काफ़ी नशे में हो चुके थे, उनको बिल्कुल भी होश नहीं था, उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी, आँखें भारी हो चुकी थीं, गर्दन नीचे झुक चुकी थी उनकी।
वो इसके लिए भी मान गए।
मुझे बहुत गुस्सा आया। वो मुझे पराये मर्द के सामने बेइज्जत करने पर तुले थे।
खुद का होश नहीं था उन्हें!
इसलिए अब एक पैग मैंने खुद भी पी लिया ताकि इस बेइज्जती को मैं सहन कर सकूं।
संजीव ने फिर से पत्ते बांटे और गेम शुरू हुई। दोनों ने अपने अपने पत्ते उठाए और खेलना शुरू किया।
गेम चलती रही और 10-12 मिनट गेम चलने के बाद दोबारा से पीयूष जी के पत्ते बन गए।
वो बोले- मैं जीत गया।
ये सुनकर मेरी सांसें ठंडी पड़ गईं।
पीयूष हंसने लगे और बोले- भाभी, बचे हुए कपड़े भी उतार दो आप! अपने यौवन के दर्शन करवा दो।
मैंने नज़र झुकाई और अपना हाथ पीछे लेकर गई और ब्रा का हुक खोल दिया।
मेरी ब्रा लूज़ हो गयी और नीचे को लटक गयी।
मैंने अपने दोनों कंधों से ब्रा उतार कर साथ वाले सोफे पर रख दी।
मेरे रस भरे बूब्स एकदम पीयूष जी के सामने थे। मेरे गुलाबी निप्पल अब तक खड़े हो चुके थे।
फिर मैंने अपने दोनों हाथ पैंटी के अंदर डाले और पैंटी को मेरी चिकनी जांघों के बीच में से खींचते हुए नीचे झुक कर मेरे पैरों तक ले आयी।
मैंने पैंटी भी उतार दी।
अब इस वक़्त मैं अपने पति की वजह से एक गैर मर्द के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी हुई थी।
मेरे बदन पर एक भी बाल नहीं था, शीशे की तरह मेरा बदन चमक रहा था।
मेरी चूत एकदम टाइट थी।
मैंने अपनी चूत पर एक बाली (छल्ला) पहना हुआ था जो कि संजीव ने मुझे हमारी सुहागरात पर पहनाया था।
चुदने से पहले मैं वो बाली उतारती हूं। मेरी चूत एकदम चिपकी हुई थी।
पीयूष जी ने मेरी चूत की तरफ इशारा करते हुए कहा- भाभी, ये क्या पहना हुआ है आपने?
मैंने कुछ नहीं बोला।
उस वक़्त मैं अपनी नज़रें नीचे झुका कर खड़ी थी।
पीयूष अपने दांतों से अपने होंठों को काट रहे थे।
मैं बिल्कुल नंगी खड़ी हुई थी। मेरे बाल खुले हुए थे जो कि मेरी आधी कमर तक आ रहे थे।
हमारी शादी को अभी सिर्फ 7 महीने ही हुए थे इसलिए मैंने अपने दोनों हाथों में शादी का चूड़ा पहना हुआ था और मैंने गले में मंगलसूत्र पहना हुआ था।
लाल रंग की लिपस्टिक से मेरे होंठ रस भरी स्ट्रॉबेरी की तरह रसीले हो रहे थे।
मैंने पूरा मेकअप किया हुआ था और मेरी चूत में जो मैंने बाली पहनी हुई थी वो तो मेरे बदन को और चार चाँद लगा रही थी।
वो बाली मुझे और ज्यादा चुदक्कड़ साबित करने में लगी हुई थी।
मुझे अब पीयूष जी के इरादे साफ नज़र आ रहे थे।
यह डील सिर्फ एक बहाना था। असली वजह तो ये थी कि वो दोस्त की न्यूड देसी वाइफ सेक्स का मजा लेना चाहते थे, मेरे जिस्म के साथ खेलना चाहते थे, मुझे चोदना चाहते थे।
संजीव ने हार को बर्दाश्त करने के लिए एक और पैग बनाया और पी गए।
वो अब हद से ज्यादा टल्ली हो चुके थे।
इसी बात का फायदा पीयूष ने उठाया और संजीव को एक और बाजी खेलने को कहा।
पीयूष ने शर्त रखी कि अगर इस बार संजीव जीता तो मैं कपड़े पहन लूंगी और अगर पीयूष जीता तो मुझे उसके साथ बिस्तर पर जाना होगा।
संजीव को कुछ होश नहीं था, वो बस पीयूष की हां में हां मिला रहा था।
मैंने पीयूष जी को समझाने की कोशिश की कि ऐसा मत कीजिये पर वो बोले- भाभी आप डरो मत, मुझे पक्का पता है कि इस बार संजीव जीत जायेगा.
और यह बोल कर वो हंसने लगे।
पीयूष जी ने इस बार पत्ते बांटे और गेम दोबारा से शुरू हुआ।
संजीव ने नशे की हालत में पत्ते उठाए और खेलना शुरू किया।
पीयूष जी ने एक और पैग बना कर संजीव को दिया।
मुझे समझ आ रहा था कि वो संजीव को बेहोश करना चाहते हैं।
संजीव ने अपना छठा पैग पीया और गेम शुरू की। संजीव उल्टी सीधी चाल चल रहे थे।
मुझे अब डर लगने लगा था, मेरे पैर कांप रहे थे, खेलते खलेते संजीव नशे से बेहोश हो गए।
पीयूष जी ने बोला- भाभी संजीव बेहोश हो गया। अब इस गेम को आप पूरा करो।
मैंने कहा- नहीं, मुझे ज्यादा खेलना नहीं आता।
तो पीयूष जी बोले- ठीक है, फिर हम दोनों बिस्तर पर चलते हैं, मैं वहां सिखा दूंगा आपको।
मैं पीयूष जी का इशारा समझ गई थी कि वो क्या बोलना चाह रहे हैं।
मैंने संजीव से पत्ते लिए और उसी हलत में नंगी ही सोफे पर बैठ कर अपनी बची कुची इज़्ज़त बचाने के लिए उस गेम को खेलने लगी।
गेम लगभग ख़राब हो ही चुकी थी और खेलते खेलते पीयूष जी के पत्ते फिर से बन गए और इस बार मैं हार गई।
पीयूष जी हंसने लगे जोर जोर से … मेरा चेहरा उतरा हुआ था बिल्कुल!
मुझे पता चल गया था कि अब मेरी चुदाई होने वाली है जमकर … वो भी एक गैर मर्द से!
संजीव बिल्कुल बेहोश पड़े हुए थे।
पीयूष जी उठ कर मेरे पास आये।
मेरी गर्दन नीचे झुकी हुई थी।
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खड़ी किया। फिर मेरी ठुड्डी पर हाथ रखा और मेरा चेहरा ऊपर उठाया और बोले- चलें … हम दोनों अब बेडरूम में … भाभीजी?
मैंने बोला- प्लीज ये खेल यहीं खत्म कर दीजिये आप!
तो पीयूष जी बोले- कुछ नहीं होगा, चलो तुम मेरे साथ ऊपर।
पीयूष जी ने मेरी जुल्फों को मेरे कान के पीछे किया और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ऊपर बेडरूम में ले जाने लगे।
मेरे सारे कपड़े नीचे लिविंग रूम में ही पड़े हुए थे।
पीयूष मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नंगी ही बेडरूम तक ले आये।
हम दोनों मेरे बैडरूम में आ गए।
हमारे बेडरूम में आते ही हमारा कुत्ता शेरू पीयूष जी को देख कर भौंकने लगा।
मैं शेरू के पास नंगी ही गई और शेरू को पुचकारते हुए उसे चुप करवाया।
पीयूष जी भी शेरू के पास आ गए और उसके सिर पर हाथ फेर कर उसके सिर को सहलाने लगे।
शेरू भी कुछ देर में पीयूष जी से रूबरू हो चुका था।
पीयूष जी ने दरवाजा हल्का सा बंद कर दिया।
रात के लगभग 11 बजने वाले थे।
पीयूष जी मुझे बेड की ओर ले जाने लगे। हम दोनों बेड के पास आ गए। हम दोनों में सिर्फ एक से दो इंच का फासला होगा।
हम दोनों की सांसें एक दूसरे से टकरा रही थीं। पीयूष जी ने मेरे बालों को फिर से मेरे कान के पीछे किया और बोले- मेरी आँखों में देखो!
मैंने अपनी आँखे ऊपर कीं।
पीयूष जी बोले- अंजलि, तुम परेशान मत हो। मैं ऐसा वैसा कुछ नहीं करने वाला। ये सिर्फ तुम्हारे पति को सबक सिखाने के लिए किया गया था। उसे खुद पर बहुत ज्यादा ओवर कॉन्फिडेंस है और घमंड भी। मैं बस वही तोड़ना चाहता था। इसलिए बस ये सब नाटक किया। मेरा ऐसा कुछ करने का इरादा नहीं है।
उनकी यह बात सुन कर मैं दंग रह गई कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है।
एक जवान औरत नंगी खड़ी है उसके सामने और वो कुछ नहीं करना चाहता! मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ?
पीयूष जी ने मुझसे बोला- तुम आराम करो, मैं जाता हूं।
वो मुड़कर जाने लगे।
वो गेट के पास पहुंचे ही थे कि मुझे न जाने क्या हुआ … मैं भागी और जाकर उनकी पीठ से लिपट गई।
अब मैं खुद चाह रही थी कि पीयूष मुझे चोदे।
पीयूष जी बोले- अंजलि, ये सब क्या है … ये गलत है। मैं तुम्हारे साथ ये नहीं कर सकता।
मैं पीयूष जी से बोली- गलत मेरे साथ तब हो रहा था ज़ब मुझे मेरे पति ने दाँव पर लगाया था और आप भी उसमें शामिल थे मगर इस वक़्त मैं खुद चाहती हूं कि आप मुझे चोदें। मेरे जिस्म को प्यार करें। मेरे पिघलते हुए यौवन को आप संवारें। 7 महीने से जिस चरम सुख के लिए मैं तड़प रही हूं वो मुझे आप दें क्योंकि संजीव मुझे मेरे चरम सुख तक नहीं संतुष्ट कर पाते हैं। रही बात गलत सही की तो हम दोनों यह बात किसी को नहीं बातएंगे। ये बात हम दोनों में ही रहेगी। आप एक मर्द हो। मैं एक औरत। एक दूसरे की जरूरत को पूरा करना हमारा फर्ज है।
पीयूष जी अभी भी सोच रहे थे, मैंने उनका हाथ पकड़ कर अपनी भीगी हुई चूत पर रख दिया जो कि भट्टी की तरह एकदम गर्म हो चुकी थी।
ये पीयूष जी के लंड से सिकाई मांग रही थी।
पीयूष जी मुस्कराए।
मैं समझ गई कि अब ठुकाई के लिए मुझे तैयार होना है।
पीयूष जी ने मुस्कराते हुए मुझे अपनी बांहों में उठाया और बेड पर ले जाकर पटक दिया।
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