हॉट पैंटी गर्ल स्टोरी में मेरे साथ रह रही मेरी कजिन की यूस्ड पैंटी मैंने बाथरूम में देखी. उससे आती गंध ने मुझे अपनी ओर खींच लिया. मैंने उस पैंटी का क्या किया?
कहानी के पिछले भाग
मेरी फुफेरी बहन की जवानी
में आपने पढ़ा कि मेरी बुआ की बेटी मेरे फ्लैट में रहने आई तो मेरी वासना से भरी दृष्टि उसकी सेक्सी देहयष्टि पर टिकने लगी. वह भी मेरे साथ खुला व्यवहार कर रही थी.
अब आगे हॉट पैंटी गर्ल स्टोरी:
अगले कुछ दिनों तक मैं ऑफिस में काफी इन्वॉल्व रहा, प्रोजेक्ट फाइनल और ख़त्म करना था.
मोनी ने फ्लैट ऐसे संभाला कि ऑफिस के बीच मुझे चाय-पानी के लिए भी उठना नहीं पड़ता था.
लंच और डिनर के बाद साथ में सिगरेट का तो हमारा लगभग रूटीन बन गया था.
हमारा दोस्ताना धीरे-धीरे हर दिन बढ़ता ही जा रहा था.
मोनी को वैसे भी पी.एच.डी का काम दिन में दो से तीन घंटे तक का होता था.
और मेरी ही तरह मोनी की भी हर शनिवार-रविवार छुट्टी होती थी.
इस दौरान मेरी श्रद्धा से भी बात हुई लेकिन मैंने उसको मोनी के शिफ्ट होने के बारे में कुछ नहीं बताया.
हालांकि मोनी को श्रद्धा के बारे में अवगत करा चुका था.
मैं इतना भी समझ गया था कि मोनी का भी किसी के साथ चक्कर है जिससे वह यदा कदा बात करती थी.
हालांकि इस बारे में मैंने कभी खुलकर चर्चा नहीं की.
लॉकडाउन लगे हुए चार पांच दिन हुए होंगे, दोपहर के कुछ तीन-साढ़े तीन बज रहे थे.
मुझे लघुशंका की तलब महसूस हुई और मैं पेशाब करने के लिए ऑफिस रूम से बाहर निकला.
मेरे मास्टर बैडरूम का गुसलखाना प्राइवेट था किन्तु मोनिका के कमरे का जो बाथरूम था, उसका एक दरवाज़ा कमरे के अंदर से, तो एक और दरवाज़ा लिविंग रूम से जुड़ा हुआ था.
वह बाथरूम लिविंग रूम के साथ शेयरिंग में था और मेरे ऑफिस रूम से कुछ ही कदम पर था.
मैंने दरवाज़ा खींचा और अंदर घुसा.
अंदर घुसते ही एक विशिष्ट गंध की भभक मेरी नाक से टकराई, और मेरा मुँह उस दिशा में घूम गया जहाँ से वह गंध आ रही थी.
मेरी नज़र सीधे दूसरे दरवाज़े पर गयी, जो मोनी के कमरे के अंदर खुलता था.
उस दरवाज़े के पीछे कपड़े टांगने के हुक लगे थे, जहाँ टंगे थे मोनी के कुछ कपड़े, और साथ में उस कामोद्दीपक गंध का मुख्य स्रोत, एक उतारी हुई कच्छी टंगी हुई थी.
गहरे मैरून रंग की वह कॉटन की कच्छी, जिस पर सूक्ष्म सफ़ेद बिन्दुओं वाला प्रिंट था, बहुत ही कामुक और मादक थी.
कच्छी का साइड स्ट्रैप (कमर पर जाने वाला पट्टा) काफी पतला था.
वह एक बिकिनी स्टाइल लो-वेस्ट मॉडर्न पैंटी थी.
मैं उस दरवाज़े के और पास गया और कच्छी के पास अपनी नाक ले गया.
उफ फ्फ … वह मादक गन्ध … उस गन्ध ने मुझ पर पता नहीं कौन सा वशीकरण कर दिया … वह गन्ध मेरी नाक में घुसते के मेरे दिमाग में एक अलग ही सनसनी हुई … यह उसी बहन की खुशबू थी जिसके साथ मैं बचपन में खेला था … और अब वही खुशबू इतने सालों बाद जवानी के रस में सराबोर होकर एक कामोत्तेजक, मनभावन गन्ध का रूप ले चुकी थी.
कच्छी की गंध उफ्फ … मैं पागल हो गया.
मेरा दिमाग अब मेरे लण्ड पर आ चुका था.
मैंने झाँक कर देखा, मोनी लिविंग रूम में सोफे पर बैठी, ईयरफ़ोन लगाकर मोबाइल पर किसी चीज़ में व्यस्त थी.
बिना थोड़ी सी भी आवाज़ बिना करते हुए मैंने लिविंग रूम के साइड वाला दरवाज़ा बंद किया, कुण्डी लगायी, और फिर मोनी के कमरे वाला दरवाज़ा भी कुण्डी लगाकर बंद कर दिया.
मैंने वह गन्दी कच्छी खूंटी पर से उतारी, और उसके इंच-इंच का मुयायना किया, तत्पश्चात अपनी नाक कच्छी में धंसा दी.
मादकता से परिपूर्ण उस कच्छी की घिसावट, उसकी हालत, और उसकी तीव्र गन्ध से लग रहा था उसको दस दिन बिना बदले लगातार पहना गया है.
हॉट पैंटी में मोनी की बुर की, उसके पोते (चूत और गांड के बीच का भाग) के पसीने, और उसकी गांड की तीव्र गन्ध भरी हुई थी.
गंध का केंद्र था कच्छी का अंदरूनी भाग जो चूत से सटा हुआ होता है; वहां पर सफ़ेद डिस्चार्ज (योनि स्राव) की एक पपड़ी जमी हुई थी. उस पपड़ी के ऊपर ताज़ा, चिपचिपा सफ़ेद डिस्चार्ज था.
मैं खुद को रोक नहीं पाया और उस ताज़े चिपचिपे स्राव को चख लिया.
आह … हॉट पैंटी गर्ल की चूत का स्वाद आज भी ताज़ा है मेरी ज़ुबान पर!
वह नमकीन सोंधापन, गन्धीला, गंधौड़ा, चिपचिपा द्रव्य उफ् … मैं स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सका और चखते चखते उस पूरे स्राव को चाट गया.
चाटते चाटते जब चिपचिपा पदार्थ ख़त्म हो गया तो मैं वह सूखी पपड़ी भी पूरी चाट गया.
तत्पश्चात मैंने पागलों की तरह उस पूरी कच्छी को चूस डाला, खा डाला.
मेरा अचेतन ध्यान मेरे लिंग पर गया जो लोहे की छड़ की भांति मेरी चड्डी में टनटना रहा था और चड्डी से रगड़-रगड़ के तरल मसाला छोड़ने लगा था.
अब मेरा लौड़ा चड्डी फाड़कर बाहर निकलने को आमादा था.
मैंने हॉट पैंटी को अपने लिंग पर लपेटा और हस्तमैथुन करने लगा.
मैं कामवासना में इस कदर बह रहा था कि पांच मिनट के अंदर ही मैं वीर्यपात करने को तैयार था.
अंततः मैंने अपना वीर्य उसी कच्छी में गिरा दिया.
उस वीर्यपात में मुझे जो अतुलनीय आनंद और संतुष्टि मिली थी, उसको मैं शब्दों बयान नहीं कर सकता.
वीर्यपात के पश्चात मैंने कच्छी को धुलने या बाल्टी में डालने की बजाय वापस उसी खूंटी पर टांग दिया.
ऐसा मैंने क्यों किया, उस वक़्त इसका कोई तर्क नहीं था.
यह मेरे अवचेतन मन की एक खुराफ़ाती चाल थी.
उसके पश्चात मैं पेशाब से निवृत हुआ और बाथरूम से बाहर निकला.
जब मैं उस बाथरूम से निकला तो मेरे अंदर कुछ बदल चुका था.
मैंने निश्चय किया, और सोचा कि स्वयं से कोई भी हरकत या कोशिश नहीं करूँगा लेकिन अगर मोनी सामने से संकेत पर संकेत देती रही तो ज़रूर एक चांस लूँगा.
मुझसे 5 साल बड़ी, डी.यू. की ऐसी जवान पटाखा माल, रगड़ने का मौका मिले तो कोई न छोड़े, तो फिर मैं क्यों छोडूं?
बहन है तो क्या हुआ, कौन सी सगी है.
चुदी हुई तो पक्का होगी, बदन और बॉडी लैंग्वेज देखकर साफ़ हिंट लगता है.
और अगर काण्ड हो भी गया तो यहाँ पर तो हम दोनों अकेले हैं बस, अपने होमटाउन्स से दूर दिल्ली एन.सी.आर में!
वह भी गुरुग्राम के ऑउटस्कर्ट एरिया में.
किसी को घंटा कुछ भी पता चलेगा.
और मोनी तो सपने में भी नहीं बताएगी किसी को … वर्ना सबसे पहले जूते उसी को पड़ेंगे.
हिंट तो साली बहुत देती है, ऐसे मॉडर्न छोटे कपड़े, ऐसे बॉडी लैंग्वेज, साथ में शराब-सिगरेट पीना.
एक चांस लेना तो बनता है.
अगर सफल रहा तो मोनी दीदी से मोनिका डार्लिंग का परिवर्तन अविस्मरणीय होगा.
इस विचार के साथ मैं वह योजना सोचने लगा जिससे मोनी दीदी को सीधे-सीधे कुछ न बोलकर भी यौन आमंत्रण पहुंचाया जा सके.
और वह मौका मिलने में ज़्यादा दिन नहीं लगे.
3 अप्रैल, 2020 शुक्रवार का दिन.
उस दिन मेरे प्रोजेक्ट समाप्ति के साथ-साथ यह भी सूचना मिली कि सोमवार और मंगलवार यानि 7 और 8 अप्रैल को भी छुट्टी रहेगी.
और इस प्रकार मुझे विस्तारित सप्ताहांत मिलेगा.
मैंने यह सूचना मोनी को बताई तो वह उत्साहित हो उठी- अरे वाह नीलू, फाइनली मुझे मेरा भाई मिलेगा कुछ टाइम के लिए … इतना ज़्यादा बिजी रहता है तू … बहन के साथ टाइम ही नहीं स्पेंड करता! फ्राइडे नाईट है … चल आज रात पार्टी करते हैं … क्या कहता है?
“नेकी और पूछ पूछ दीदी? ये भी कोई पूछने की बात है?” मैंने खीसें निपोरते हुए कहा.
“चल मैं भी फटाफट अपना काम निपटा लेती हूँ … तू कब तक फ्री होगा?”
“उम्म्म … लगभग शाम साढ़े सात बजे तक दीदी …”
यह कहकर मैं अपना ऑफिस का काम करने चला गया और मोनी भी अपने यूनिवर्सिटी के काम में व्यस्त हो गयी.
सवा सात बजे मेरा काम ख़त्म हो गया.
मैंने ई.ओ.डी. ईमेल डाला और प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक संपन्न किया.
मैं बहुत खुश था क्योंकि मैं जानता था कि इस सफल प्रोजेक्ट का बोनस भी बहुत ज़बरदस्त मिलेगा.
पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि मोनी मेरे ऑफिस रूम में आयी.
मोनी ने कहा- काम ख़त्म नीलू? अब ये बता सबसे पहले … डिनर में क्या खाएगा आज रात … आज तेरी फरमाइश की डिश बनेगी!
“कुछ भी हल्का-फुल्का बना दो दीदी … रोटी सब्जी टाइप कुछ!”
“अबे फ्राइडे है … कुछ तो इंटरेस्टिंग बोल!”
“सुन … आज रात मटन बनेगा, मटन कोरमा, साथ में तेरा फेवरेट कश्मीरी पुलाव!”
“हैं … इतना सब कौन बनाएगा?”
मोनी इतराते हुए बोली- अबे तेरी बहन बनाएगी, इतना टेंशन क्यों ले रहा … वैसे भी बहुत दिन से नॉनवेज का मन हो रहा भाई!
“मन तो मेरा भी हो रहा दीदी … चलो फिर ताज़ा मीट लेकर आते हैं.”
“हे हे नीलू … ये हुई न बात … चल आज माहौल थोड़ा भ्रष्ट करते हैं. ऐसा मटन बनाऊंगी कि तू उंगलियाँ चाटते रह जाएगा.” मोनी की बात मज़ेदार लहज़े से युक्त थी.
ठीक ही कह रही थी वो … क्योंकि हम दोनों ही जाति से उच्च ब्राह्मण थे जिनके घर पर अंडा तक नहीं बनता था.
मेरे घर पर तो पता था कि मैं कभी-कभी बाहर नॉनवेज खाता हूँ.
किन्तु मोनी के घर पे भनक भी नहीं थी कि वह भी मांस-मछली की शौक़ीन है.
लॉकडाउन के उस ऐकाकी समय में जहाँ लोगों की हालत टाइट थी, हम भाई बहन अपने फ्लैट के माहौल में तामसिक रस घोलने की योजना बना रहे थे.
सच में लग रहा था कि एक्सटेंडेड वीकेंड की शुरुआत है.
मैंने अपनी बाइक निकाली और मोनी पीछे बैठी, मोनी ने एक चुस्त छोटी बाजू का टॉप और घुटने से थोड़े ही नीचे तक की कैपरी पहन रखी थी.
बाकी दिनों की तुलना में आज वह थोड़ी ज़्यादा ढकी हुई थी.
हम बाइक से अपनी सोसाइटी के पास ही एक काम्प्लेक्स में गए, जहां आवश्यक चीज़ों को छोड़कर सारी दुकानें बंद थी.
हम चिक शॉप में गए और वहां से एक किलो ताज़ा मटन पैक करवाया, साथ में खड़े मसालों का पैकेट लिया.
लगभग पौने आठ बज रहे थे.
बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था.
काम्प्लेक्स से वापस बाइक की तरफ आते हुए मोनी बोली- यार नीलू, कहीं पान की गुमटी खुली होगी इस टाइम? एक सिगरेट हो जाती तो मज़ा आ जाता!
“दीदी वापस चलकर मारते हैं न सुट्टा … फ्लैट पर तो भण्डार स्टॉक कर रखा है सिगरेट का!”
“अबे पान की टपरी पर, सड़क किनारे खुली हवा में कश खींचने का मज़ा ही कुछ और होता है नीलू!”
“अरे वाह दीदी … ये भी बात सही है … चलो ढूंढते हैं कोई टपरी!” कहकर मैंने बाइक स्टार्ट करी और मोनी पीछे बैठी.
कुछ दूर चलने पर एक टपरी दिखाई पड़ी.
मैंने बाइक रोकने के लिए धीमी करनी शुरू ही की थी कि मेरे दिमाग में कुछ आया और मैंने फिर से बाइक तेज़ कर दी.
“अबे नीलू … दुकान पीछे रह गयी! क्या कर रहा है ?? रोक ना …”
“दीदी, आपको एक बढ़िया जगह लेकर चलता हूँ … मेरे दिमाग में एक प्लान और है.”
“कैसा प्लान नीलू?”
“वह सब छोड़ो … आप ये बताओ आपके पास कैश है अभी? थोड़ा एक्स्ट्रा चाहिए होगा.”
मोनी ने अपने छोटे पर्स में देखा, उसमें उसके पीजी खाली करने पर जो सिक्योरिटी मनी मिली थी वह थी, पूरा कैश.
“हाँ बबा कैश काफी है … कितना चाहिए?”
“पहुंच कर बताता हूँ दीदी!” मैंने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा.
रियर व्यू मिरर में मैंने देखा कि मोनिका भी मंद मंद मुस्कुरायी.
उसको मेरा इस तरह से सरप्राइज रखना पसंद आया.
और लड़कियों को अमूमन रहस्यमयी मर्द पसंद होते हैं.
मोनी मेरे पीछे बाइक पर मुझसे चिपक कर बैठी थी. मुझे अपनी पीठ पर उसके चूचे पूरी तरह महसूस हो रहे थे.
बायपास की तरफ थोड़ा आगे पहुंचकर, मैंने बाइक एक अन्य सड़क पर मोड़ ली.
थोड़ा आगे जाकर एक छोटी सी गुमटी दिखी, पास में कुछ झुग्गियां भी थीं.
मैंने बाइक रोकी, और मोनी को वहीँ रुकने को बोला.
गुमटी पर बैठा आदमी मुझे पहचानता था, मैं पहले भी वहां आ चुका था.
उसने ‘नमस्ते भाईजी’ करके मेरा अभिवादन किया.
और फिर हम आपस में कुछ बात करने लगे.
मोनी बाइक के पास खड़ी दूर से हमें देख रही थी.
मैंने वहां से दो सिगरेट ली और एक सिगरेट मुँह में दबाकर मोनी के पास आया.
दो-तीन मिनट में मैं बाइक के पास वापस आया और मोनी को अपने हाथ की सिगरेट बढ़ाई, साथ में माचिस भी.
मोनी ने पहले मेरी सिगरेट सुलगायी और फिर अपने होंठों के बीच दबाकर अपनी सिगरेट भी माचिस से सुलगा ली.
और हम दोनों सिगरेट पीते हुए कुछ बात करने लगे.
गुमटी का मालिक मोनी को धड़ल्ले से सिगरेट के कश खींचते हुए हुए टकटकी लगाकर देख रहा था.
मैंने मोनी से कहा- दीदी, इतनी दूर सिर्फ सिगरेट के लिए नहीं आया … माल अवेलेबल है इसके पास, कहो तो स्कोर कर लूँ?
मोनी की आँखों में एक आश्चर्ययुक्त चमक आ गयी, दबी आवाज़ में उसने मुझसे कहा- अबे सच में? … माल मतलब वही न जो मैं समझ रही हूँ?
वह समझ गयी कि मेरा इशारा वी.ड या मा.रि.जु.आ.ना (गां.जा) की ओर था. स्कोर करना मतलब गां.जा खरीदना, ये कोडवर्ड एक्सपर्ट लोग इस्तेमाल करते हैं.
“हाँ दीदी हाँ … ये बंदा प्रॉपर हरा, बिना मिलावट वाला स्टफ रखता है. ज़्यादा लोगों को पता भी नहीं इस जगह का. थोड़ा महंगा है, लेकिन क्वालिटी एकदम वर्थ इट होती है.”
मोनी ने ऐसे कहा मानो अपने छोटे भाई नहीं बल्कि किसी घनिष्ट दोस्त से बात कर रही हो- साले इतना जुगाड़ू कब से हो गया तू? … मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि इस घनघोर लॉकडाउन में भी जुगाड़ हो सकता है!
“दीदी आपने ट्राय किया है पहले?”
“हाँ मेरे भाई … बियर तो छुपकर एक-दो बार कानपुर में भी चखी थी फ्रेंड्स के साथ मास्टर्स के टाइम पर. सिगरेट भी मास्टर्स में ही ट्राय की थी. लेकिन वी.ड मैंने दिल्ली आकर ही पहली बार चखा अपने पीजी में … और सच कहूं नीलू … जॉइंट पीने में जो मज़ा आता है उसका नशा अलग ही मस्त होता है, शराब से बहुत अलग तरह का नशा!” एक सांस में बोलते हुए मोनी के मुँह से लगभग एक दबी से आह निकली.
“ओह वाओ दीदी!! स्कोर कर ही लेते हैं फिर … कैश दो मुझे!”
मेरे इतना कहते ही मोनी ने अपने पर्स से लगभग पांच हज़ार रुपये निकाल कर मुझे दे दिए.
मैं गुमटी पर वापस गया और उस बन्दे ने साइड से एक झोले में से एक बड़ा पैकेट निकालकर मुझे बढ़ाया- भाई जी, आठ सौ का एक पैकेट सिर्फ आपके लिए … शिलॉन्ग का माल है, इससे कम नहीं हो पाएगा!
मैंने पैकेट लेकर सूंघा, और महक से पता चल गया कि माल एकदम प्योर है.
मैंने पैसे देकर उससे कहा- एक काम कर, छह पैकेट बांध दे … और सिगरेट का पैसा भी एडजस्ट कर दे इसी में!
मेरे कहने के साथ ही उसने एक काली पन्नी में वह माल बांध दिया, साथ में मैंने जॉइंट बनाने के लिए ओसीबी (रोलिंग पेपर) के 3-4 बंडल भी लिए.
लेकर मैं बाइक के पास आया, पैकेट मोनी को पकड़ाया और बिना विलम्ब किये बाइक वापस फ्लैट की तरफ भगा ली.
बाइक पर वापस जाते हुए मोनी की ख़ुशी उसकी आवाज़ में साफ़ झलक रही थी.
पूरे रास्ते हम बकचोदी भरी बातचीत करते हुए आए.
वापस आते आते हमें सवा नौ बज गए.
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