हॉट चैट स्टोरी में पढ़ें कि ऑनलाइन बने दोस्त ने अपनी बीवी से सेक्स की बात की तो वो भी बेचैन हो गया अपने सेक्स जीवन में कुछ नया करने के लिए.
दोस्तो, मैं समीर आपको धारा और शेखर की कहानी बता रहा था।
हॉट चैट स्टोरी के पिछले भाग
परायी औरत को चोदने की तमन्ना
में आपने पढ़ा कि शेखर धारा के कंटीले जिस्म को कल्पना में भोगने लगा था मगर उससे बात करने की तड़प भी उतनी ही तीव्र थी।
उस रात को जब उसे पता चला कि चैट रूम में ललित नहीं बल्कि धारा है तो शेखर का सारा नशा उतर गया।
उसे यकीन नहीं हुआ और उसने धारा को वीडियो कॉल कर दिया।
अब आगे की हॉट चैट स्टोरी:
स्क्रीन पर अंधेरा सा छाया था. धीरे-धीरे वो काली छाया ऊपर की तरफ़ सरकने लगी और हल्के गुलाबी कपड़े में लिपटा हुआ हसीन सा बदन दिखने लगा.
शायद नेट वाली साड़ी थी. ऊपर उठते-उठते गर्दन तक का हिस्सा दिखायी दिया.
उफ़्फ़ … गुलाबी साड़ी में लिपटा वो कसा हुआ बदन, ऊपर बिना बाहों वाला सुनहरे रंग का ब्लाउज़ जिसमें सितारे झिलमिला रहे थे.
ब्लाउज़ इतना कसा हुआ कि उभारों को बांध रखने की नाकाम कोशिश की गयी हो. ब्लाउज़ की लम्बाई भी बस इतनी ही थी कि उभारों की गोलाइयों के खत्म होते ही ब्लाउज़ भी खत्म और फिर उसके नीचे कमर से थोड़ा ऊपर तक का गोरा-गोरा हिस्सा उस जालीदार साड़ी के अंदर से झांक कर शेखर को ललचाने लगा.
धारा के दोनों हाथ शायद कीबोर्ड पर थे इसलिए उसकी गोरी-गोरी बांहें बिल्कुल नज़दीक से चमक रहे थे.
शेखर मानो एकदम से मंत्रमुग्ध होकर स्क्रीन में ही खो गया; उसका हलक सूखने लगा.
वैसे सामने की स्क्रीन पर जो नजारा वो देख रहा था वो उसके लिए नया नहीं था.
शेखर की पत्नी रेणु शायद धारा से कहीं ज़्यादा खूबसूरत थी और उसे देखने वाले का भी ऐसा ही कुछ हाल होता था।
मगर पता नहीं शेखर धारा के लिए इतना विचलित क्यूँ हो रहा था.
खैर जो भी हो, फ़िलहाल तो शेखर के ऊपर धारा का जादू छाया हुआ था और वो बस उसी में खो जाना चाहता था. शायद रेणु से दूरी और कुछ दिनो से अंदर ही अंदर उमड़ रही कामवासना ने शेखर को इस अवस्था में ला दिया था.
काफ़ी देर तक शेखर बस धारा को सामने की स्क्रीन पर निहारता रहा. दोनों चुप थे, फिर धारा ने ही शेखर को मैसेज भेजा.
धारा- क्या हुआ जनाब, कहाँ खो गए?
शेखर- हमम्म … उन विशाल चोटियों की घाटी की गहराई में!!
धारा- जी कहाँ?
शेखर- ज.. जी.. वो बस आपको देख रहा था!
शेखर के मुँह से सच निकल गया था और इसका अहसास होते ही वो सकपका गया.
धारा- हाहाहा … बड़े डरपोक हैं आप!
शेखर- नहीं जी, ऐसा नहीं है, ये सब मेरे लिए थोड़ा नया है इसलिए!
ये कहते हुए शेखर ने एक स्माइली भेज दी.
बात सही भी थी, भले ही शेखर कितना भी कामुक हो लेकिन आज तक उसने जो भी किया था वो बस रेणु के साथ किया था.
हालाँकि सेक्स में रोमांच शेखर को बहुत उत्तेजित करता था लेकिन जब से उसने ललित और धारा की करतूतों के बारे में सुना था तब से उसकी उत्तेजना कहीं ज़्यादा बढ़ गयी थी.
धारा- हा हा हा … मैं समझ सकती हूँ! लेकिन क्या सच में आपने इससे पहले ऐसे किसी के साथ मस्ती नहीं की है क्या?
शेखर- नहीं धारा जी, मैं ठहरा एक छोटे से शहर में रहने वाला इंसान जिसकी दुनिया बस अपने घर-परिवार तक ही सिमटी होती है. मुझे कभी ऐसा मौक़ा मिला ही नहीं.
धारा- तभी आपके अंदर का लावा उछल मार रहा है, है ना?
शेखर- जी … सही कह रही हैं! वैसे ललित भाई कहाँ हैं? मैं तो बुझे मन से इस सेक्स चैट रूम में आया था और मुझे लगा था कि ललित भाई ही होंगे उस तरफ़.
धारा- ललित दो हफ़्तों के लिए दुबई गए हैं, शाम को उनकी फ़्लाइट थी और मैं उन्हें ही छोड़ने गयी थी तभी.
शेखर- ओहो … मतलब अब दो सप्ताह तक हर दोपहर आपसे बात हो सकेगी!
धारा- नहीं जी।
शेखर- क्यूँ … क्या आप मुझसे बात नहीं करना चाहतीं?
धारा- ऐसा मैंने कब कहा? मैं तो बस ये कह रही हूँ कि दोपहर में बात करने की क्या ज़रूरत है, बातें तो रात में भी हो सकती हैं ना!
धारा का इशारा समझ कर शेखर की बांछें खिल गयीं, उसे अगली कई रातों तक होने वाली मस्ती के ख़्याल आने लगे.
फिर भी उसने धारा को कुरेदने के लिए सवाल किया- अरे हाँ … ये तो मैंने सोचा ही नहीं. लेकिन ये भी तो हो सकता है कि आप रात में कहीं व्यस्त हों … फिर कैसे बात होगी?
धारा- हां शायद … वैसे आपको बता दूँ कि मैं यूँ ही हर किसी के लिए अपनी रातें ख़राब नहीं करती.
शेखर- फिर तो मेरा भी कोई चांस नहीं?
वो बोली- अब ये तो आपके ऊपर है जनाब, अगर आपके पास वक़्त हुआ और आपका दिल किया तो शायद बातें हो जाएं!
शेखर- अच्छा जी. फिर तो मेरी कोशिश जारी रहेगी, आगे ऊपर वाले की मर्ज़ी!
धारा- वैसे सच कहूँ तो आज दोपहर में आपसे बातें करके मुझे लगा कि आप एक नेक इंसान हैं और औरत की भावनाओं को भी समझते हैं, वर्ना आजकल तो मर्द सीधे वहीं घुसना चाहते हैं, भले ही औरत को पसंद हो या ना हो. औरत की पसंद की क़ीमत ही कहाँ है!
शेखर- शुक्रिया धारा जी, आपकी बातें सुनकर अच्छा लगा.
धारा- वैसे आप भी सोच रहे होंगे कि देखो एक तरफ़ तो अपने पति के साथ मिलकर दूसरे मर्दों से रंगरेलियाँ मनाती है और दूसरी तरफ़ ज्ञान पेल रही है!
शेखर- अरे नहीं धारा जी … रंगरेलियाँ मनाने वालों के लिए ये कहाँ लिखा है कि उनकी भावनाओं की कद्र नहीं होनी चाहिए? आख़िर इस खेल में जब तक दोनों ओर से पूर्ण समर्पण और लालसा ना हो तब तक ये बेकार ही है.
धारा- आप सच में बातों के धनी हैं … मन मोह लेते हैं आप अपनी बातों से.
शेखर- जी शुक्रिया। वैसे मन तो आपने मोह रखा है हमारा, जब से वो आँखों पर पट्टी वाले खेल के बारे में सुना है आपके पति, से तब से मेरा मन बस उसी ख़्याल में लगा हुआ है कि इतना रोमांचक होता होगा वो खेल … बिना देखे एक दूसरे के भीतर समा जाना और अपनी आत्मा को तृप्त कर लेना!
धारा- सच कहूँ तो मुझे भी वो खेल बहुत पसंद है, एक अलग ही रोमांच है उसमें. किसी अनजाने के साथ वासना के सागर में गोते लगाना और ये भी पता ना हो कि किसके साथ परम आनंद की अनुभूति हुई … बस महसूस करना।
शेखर- धारा जी … मुझे भी उस रोमांच का मज़ा लेना है, पता नहीं कैसे होगा लेकिन बस मुझे एक बार वो रोमांच महसूस करना है.
धारा ने इसके जवाब में बस एक मुस्कराता हुआ स्माइली भेज दिया.
शेखर ने बस एक चांस लिया था ये सोच कर कि शायद कुछ बात बन जाए और धारा उसे वो रोमांच देने को राज़ी हो जाए.
धारा- थोड़ा सब्र कीजिए जनाब, हो सकता है आपको उससे भी ज़्यादा रोमांच मिल जाए.
उसने आँख मारने वाली स्माइली भेजी और फिर अचानक से ऑफ़-लाइन हो गयी.
शेखर की तो मानो जान ही निकल गयी, वो बेचैन हो गया.
उसने एक-एक करके 10-12 बार धारा को “हेल्लो धारा … कहाँ चली गयीं आप” लिखा लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया.
अब तक शेखर को नशा भी काफ़ी हो चुका था और उस नशे की हालत में ही शेखर अपने बिस्तर से उठा और बालकनी में जाकर बेचैनी में इधर-उधर घूमने लगा.
लगभग 10 मिनट तक यूँही चहल-क़दमी के बाद शेखर के पैर लड़खड़ाने लगे थे।
किसी तरह वो वापस अपने बिस्तर तक आया और धड़ाम से बिस्तर पर गिर कर छत की ओर निहारता हुआ लेट गया.
नींद तो मानो धारा अपने साथ लेकर चली गयी थी.
फिर भी थोड़ी देर के बाद शेखर आख़िर नींद की आग़ोश में समा ही गया.
“शेखर भैया … शेखर भैया उठिए … दिन चढ़ आया है, ऑफ़िस नहीं जाना क्या?” रघु ने अगली सुबह झकझोर कर शेखर को उठाया.
किसी तरह शेखर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसका सर दर्द से फटा जा रहा था, होता भी क्यूँ नहीं … रात को सारी बोतल गटक गया था.
उसने रघु को गर्म पानी में नींबू डालकर लाने को कहा.
रघु भी जल्दी से नींबू पानी ले आया. शेखर ने नींबू पानी पिया और थोड़ी देर के लिए अपने फ़्लैट की बालकनी में कुर्सी पर बैठ गया.
ऑफ़िस जाने की हालत में नहीं था वो.
उसने ऑफ़िस में फ़ोन करके अपनी तबियत का हवाला देकर ऑफ़िस से छुट्टी ले ली।
आज शेखर का मन कल से ज़्यादा बेचैन था, कल रात धारा का अचानक ऑफ़लाईन हो जाना उसे पच नहीं रहा था.
कहीं ना कहीं शेखर के मन में थोड़ा ग़ुस्सा भी था … जैसा कि एक प्रेमी को अपनी प्रेमिका से होता है, लेकिन इस ग़ुस्से के परे उसके मन में ये उम्मीद भी थी कि अभी तुरंत धारा उससे बात करने आएगी!!
इस खिंचाव को शेखर समझ नहीं पा रहा था, क्या ये सिर्फ़ उस रोमांच की वजह से था या फिर शेखर सच में धारा के इश्क़ में डूबता जा रहा था?
खैर जो भी हो, शेखर किसी तरह से बालकनी से उठा और फिर फ़्रेश होकर रघु के बनाए नाश्ते की थाली हाथ में लिए वापस अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ गया.
रघु ने शेखर द्वारा रात को फैलाए हुए रायते यानि शराब की बोतल, ग्लास और इधर-उधर बिखरे चखने को साफ़ करके बिस्तर की चादर को भी बदल दिया था.
शेखर ने मन मारकर नाश्ता किया और फिर अपने मोबाइल पर गाने चला कर लेट गया. लेटे-लेटे लगभग दोपहर हो गयी. रघु ने उससे खाने के लिए पूछा पर उसने मना कर दिया और वैसे ही लेटा रहा.
थोड़ी देर बाद पता नहीं शेखर के दिमाग़ में क्या आया और उसने अपना लैपटॉप फिर से ऑन किया.
अपने ऑफ़िस और इधर-उधर के काम की कुछ चीजों के ऊपर थोड़ा समय बिताने के बाद उसने काँपते हाथों से सेक्स चैट रूम में लॉग-इन किया.
मगर ये क्या … जिस बात की वजह से शेखर कल रात से परेशान था यानि कि धारा के यूँ अचानक ग़ायब हो जाने वाली बात से, उसी धारा के क़रीब 7-8 मैसेज उसकी आइ.डी. पर कल रात से उसकी राह देख रहे थे.
अब रात को तो शेखर शराब के नशे में दोबारा मैसेज चेक नहीं कर पाया था, शायद धारा ने वापस से ऑन-लाईन आकर उससे बात करने की कोशिश की थी.
शेखर ने धारा के मैसेज का टाइम देखा और पाया कि धारा ने उसे आख़िरी मैसेज सुबह के क़रीब 3 बजे भेजा था. अब शेखर को कल रात की अपनी हालत पर ग़ुस्सा आने लगा.
अगर कल रात वो होश में रहता तो शायद धारा से सारी रात बातें हो सकती थीं. अब जो बीत गयी वो बात गयी. शेखर के लिए इतना काफ़ी था कि धारा भी उससे बात करने के लिए उतनी ही इच्छुक नज़र आ रही थी जितना कि शेखर खुद.
धारा के 7-8 मैसेज को पढ़ते पढ़ते शेखर ने उसकी आख़िरी लाईन पढ़ी जिसमें धारा ने ये लिखा था कि वो दोपहर को इंतज़ार करेगी.
शेखर झट से अपने बिस्तर से उठा और बिजली की गति से रघु को आवाज़ लगा कर उससे चाय की माँग की.
रघु भी झट से चाय ले आया और शेखर ने चाय पीकर खुद को तरोताज़ा किया.
वैसे तरोताज़ा तो वो धारा के मैसेज देख कर ही हो गया था लेकिन अभी उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी.
थोड़ी देर के बाद उसने धारा को मैसेज भेजा- सॉरी धारा जी, कल रात आप अचानक से ग़ायब हो गयी थीं. मैंने काफ़ी देर तक आपका इंतज़ार किया था लेकिन फिर पता नहीं कब आँख लग गयी.
इतना लिख कर शेखर बेसब्री से धारा के जवाब का इंतज़ार करने लगा.
10 मिनट, 15 मिनट, 30 मिनट तक बीत गए।
शेखर ने अपनी आँखें अपने लैपटॉप की स्क्रीन पर गड़ाए रखीं.
आख़िर ठीक 40 मिनट के बाद धारा का जवाब आया- हम्म … मुझे तो लगा था कि आप मुझसे सारी रात बात करने में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन मैं ज़रा सा ऑफ़-लाईन क्या हुई आप तो सो ही गए.
शेखर- अरे ऐसी बात नहीं है धारा जी!
धारा- एक बात बोलूँ?
शेखर- हाँ-हाँ बोलिए ना!
धारा- ये आप मुझे धारा जी मत बुलाया कीजिए, सिर्फ़ धारा कहिए.
शेखर- ठीक है धारा जी … मेरा मतलब है धारा.
धारा- दरअसल कल रात हमारे इंटरनेट ने काम करना बंद कर दिया था इसलिए अचानक ऑफ़-लाईन होना पड़ा. फिर काफ़ी देर के बाद ठीक हुआ लेकिन तब तक तो जनाब सो चुके थे.
शेखर ने धारा की बात सुनकर बस एक स्माइली भेज दी.
धारा- चलिए फिर, फ़िलहाल तो आप ऑफ़िस में होंगे, रात में बात करते हैं. मैं तो बस चेक करने आयी थी कि आपको मेरा मैसेज मिला या नहीं.
शेखर- अरे नहीं! आज मैंने छुट्टी ले ली है, तबियत ठीक नहीं लग रही थी इसलिए.
धारा- क्या हुआ? अब ठीक तो है?
शेखर- वैसे तो सब ठीक ही है, बस सर में और बदन में दर्द है.
धारा- उफ़्फ़ आपका ये दर्द … लगता है आपको आपकी पत्नी को यहाँ बुला लेना चाहिए!
शेखर- अरे नहीं! इतनी भी ख़राब नहीं है मेरी तबियत, ठीक हो जाएगा.
शाम के क़रीब 4 बजे तक शेखर और धारा एक दूसरे से ऐसे ही इधर-उधर की बातें करते रहे. इन बातों में न तो शेखर ने और ना ही धारा ने कोई सेक्स का टॉपिक छेड़ा.
सामान्य सी बातें हुईं दोनों के बीच में. हालाँकि शेखर के मन में अभी भी उस रोमांच का अनुभव लेने की लालसा थी लेकिन वो धारा से कह नहीं पा रहा था. आख़िरकार उसने हिम्मत की और धारा से उस विषय में बात छेड़ ही दी.
शेखर- धारा, एक बात कहूँ? बुरा मत मानना!
धारा- अरे बोलिए ना, मैं बुरा नहीं मानूँगी.
शेखर- ललित भाई से आपके और उनके द्वारा सेक्स में मसालेदार और रोमांचक तरीक़े से मज़े लेने वाली बात मेरे दिमाग़ पर छायी हुई है. मैं उस कल्पना से बाहर ही नहीं निकल पा रहा हूँ, बस एक बार उस रोमांच को अनुभव करना चाहता हूँ। क्या ये सम्भव है?
धारा के सामने ये सब शेखर ने कह तो दिया था लेकिन अब उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा था. पता नहीं धारा क्या जवाब देगी, कहीं वो भी मुझे बाक़ी मर्दों की तरह बस वासना का भूखा तो नहीं समझ लेगी?
शेखर के दिमाग़ में ये सवाल कौंधने लगे थे और उस वक़्त उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि स्क्रीन की तरफ़ देखे, भले ही धारा ने कोई जवाब दिया भी हो!
थोड़ी देर तक अपनी नज़रें स्क्रीन से बचाए रखने के बाद शेखर ने अब वापस स्क्रीन की तरफ़ देखा तो फिर से वही रात वाली घटना घटी.
धारा फिर से बिना कुछ कहे ऑफ़-लाईन हो गयी थी.
शेखर के मन में अब कई तरह के ख़्याल आ रहे थे.
शायद धारा का इंटरनेट फिर से ख़राब हो गया होगा, या फिर शायद उसे मेरी बात पसंद नहीं आयी होगी.
उसने मुझे भी सेक्स का भूखा समझ लिया होगा।
ऐसे अनगिनत सवाल और ख़्याल शेखर के मन में दौड़ रहे थे. काफ़ी देर तक धारा का कोई जवाब नहीं आने से शेखर एक मिश्रित से मनोभाव लेकर बिस्तर से उठा और अपनी बालकनी में टहलने लगा.
फिर वापस आकर लैपटॉप पर एक पुरानी फ़िल्म चला कर देखने लगा.
लगभग 7 बजे शाम को शेखर ने महसूस किया कि शायद अब तक धारा ने कोई जवाब दे ही दिया होगा, एक बार चेक किया जाए.
स्क्रीन पर चल रही फ़िल्म को बंद कर जैसे ही शेखर ने चैट रूम खोला तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.
धारा का मैसेज आया हुआ था.
मैसेज का टाइम देखा तो पता चला कि बस 15 मिनट पहले ही उसने मैसेज भेजा था लेकिन फिलहाल वो थी ऑफ़-लाईन.
खैर, धारा ने एक लम्बा चौड़ा मैसेज भेजा था, शेखर आँखें फाड़ कर मैसेज पढ़ने लगा:
“शेखर … पता नहीं मैं जो कहने जा रही हूँ वो पढ़ कर तुम क्या सोचोगे, लेकिन सच कहूँ तो तुमसे बात करके मुझे ऐसा लगा जैसे बरसों का बिछड़ा कोई दोस्त मिल गया हो। इसलिए तुमसे ये बातें कह रही हूँ.
जानते हो, ललित ने तुम्हें हमारी सेक्स लाइफ़ और अनजान लोगों के साथ की जाने वाली मस्ती के बारे में जो भी बताया है वो सच तो है लेकिन आधा सच।
तुमने पूछा था ना कि ये सब मेरी मर्ज़ी से होता है या फिर सिर्फ़ ललित की मर्ज़ी से, तो ये जान लो कि ये सब ललित की ही चाहत थी. कामुक फ़िल्में और कामुक कहानियाँ पढ़-पढ़ कर ललित उन सबको असल ज़िंदगी में भी आज़माना चाहता था.
मेरे लिए ये असामान्य सी बात थी. मैं कभी नहीं चाहती थी कि मैं ऐसा कुछ करूँ. मगर ललित की ज़िद के आगे मैं मजबूर हो गयी, मैं उससे बहुत प्यार करती थी. उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी.
शायद मेरे प्यार ने ही मुझे इस खेल में अपने कदम आगे बढ़ाने को मजबूर कर दिया. मगर मैंने भी एक शर्त रखी थी कि ना तो मैं किसी की नज़र के सामने आऊँगी और ना ही मैं उसे अपनी नज़रों से देखना चाहूँगी.
इस तरह ये आँखों पर पट्टी वाला खेल शुरू हुआ. मैं मानती हूँ कि इस खेल में रोमांच तो है लेकिन कहीं ना कहीं मेरे मन में मजबूरी वाली भावना भी होती है.
ललित भी उस वक्त उसी कमरे में मौजूद होते हैं और मैं बस ललित को खुश करने के लिए वो सबकुछ करती चली जाती हूँ जो ललित देखना या सुनना चाहता है. ललित को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मेरे मन में क्या चल रहा है या फिर मैं क्या चाहती हूँ!
शायद ये पहला मौक़ा है जब मैं किसी से ये सारी बातें शेयर कर रही हूँ. यूँ तो मैं भी इस चैट रूम में आकर अक्सर लोगों से बातें करती रहती हूँ लेकिन कभी भी कोई ऐसा नहीं मिला जिसने ये जानने की कोशिश की हो कि मेरी क्या इच्छाएँ हैं.
बस जिसे देखो उसे मेरा शरीर ही चाहिए. यक़ीन मानिए, आपसे पिछले दो दिनों से बातें करके ऐसा लगा जैसे आप उन मर्दों से अलग हैं. और मैं भी आपसे मिलना चाहती हूँ.
आमने सामने ना सही लेकिन ठीक उसी तरह जिस तरह मैं औरों से मिली हूँ. आँखों पर पट्टी बांध कर. आप भी तो उस रोमांच को महसूस करना चाहते हैं ना!
हाँ इस बार मेरे लिए ये और भी ज़्यादा रोमांच से भरा होगा क्यूँकि इस बार ललित की ग़ैर-मौजूदगी में मैं किसी से मिलूँगी और ललित की इच्छाओं के अनुसार नहीं बल्कि अपनी इच्छाओं के अनुसार इस खेल का मज़ा लूँगी. बोलिए मिलेंगे मुझसे?”
अंधा क्या माँगे … दो आँखें!!
ये सब पढ़कर शेखर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, उसकी आँखें चमकने लगीं और शरीर के हर अंग में खून का दौरा बढ़ गया.
कहाँ तो वो इस कश्मकश में था कि धारा को कैसे मनाए इस खेल के लिए और यहाँ तो धारा ने खुद ही उसे आमंत्रित कर दिया था.
धारा की बातें पढ़ कर शेखर को जहां जोश आ गया था वहीं उसके मन में ये विचार भी आ रहा था कि धारा की उम्मीदों पर वो खरा उतर पाएगा भी या नहीं क्यूँकि धारा शेखर के अंदर एक साथी की झलक देख रही थी. ऐसा साथी जो उसकी इच्छाओं की कद्र करे.
मगर शायद पिछले दो दिनो के वार्तालाप में शेखर ने धारा को ये ज़रूर अहसास दिला दिया था कि उसे धारा की परवाह थी और आधी जंग तो वो जीत ही चुका था.
आगे जो भी होगा वो देखा जाएगा. ये सोच कर उसने तुरंत धारा को जवाब भेजा।
उसने सावधानी से इस मैसेज को लिखा जिसमें उसने कहा- मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ धारा … और शुक्रिया इस बात के लिए कि आपने मुझे बाक़ी मर्दों की श्रेणी में ना रखते हुए मुझसे मिलने की इच्छा जतायी. यक़ीन मानिए, आपसे मिलने के लिए मैं इतना व्याकुल हूँ कि अभी उड़ कर आपके पास आ जाना चाहता हूँ. बताइए कब और कहाँ मिल सकता हूँ आपसे?
इतना लिखकर शेखर धारा के जवाब का इंतज़ार करने लगा और इसी बीच रघु से चाय मँगवा कर पीने लगा.
धारा उस वक्त ऑफ़-लाईन थी और शायद शाम के उस वक्त सेक्स चैट रूम में आने का समय भी नहीं था.
लैपटॉप को वैसे ही खुला छोड़ कर शेखर चाय की चुस्कियाँ लेने लगा और बीच-बीच में स्क्रीन की तरफ़ देख कर जवाब का इंतज़ार करने लगा.
उसके लंड में मस्ती सी भर गयी थी; बस अब उसे धारा के जवाब का इंतजार था।
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