वासना की फिसलन भरी राहें- 1 (The Other Man Sex Infatuation Kahani)

अदर मैन सेक्स इन्फेचुएशन की यह कामोत्तेजक कहानी है एक नव विवाहिता की, जो परिस्थिति जनित वासना के आगे विवश होकर एक गैर मर्द की बाहों में जाने का निर्णय ले लेती है।

मेरे प्रिय पाठको,
कैसे हैं आप सब!
मेरी पिछली कहानी
यह आग कब बुझेगी
लगभग सभी ने पसंद की.
सभी का धन्यवाद.

यह कहानी सुनें.

The Other Man Sex Infatuation

अब इस लम्बी कहानी का मजा लें जो अदर मैन सेक्स इन्फेचुएशन पर आधारित है.

कहानी में दो विवाहित युगल हैं.
आदित्य और दीपाली किराये पर वैभव और मेनका के घर में रहते हैं.

आदित्य और दीपाली के विवाह को अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था।
दीपाली का रूप, रंग, लावण्य, उसकी मस्त जवानी, हमेशा आदित्य के दिल और दिमाग पर छायी रहती।

दूध में केसर मिला जैसा उसका रंग, सांचे में ढला उसका बदन, उसकी 36-28-34 की फिगर और मस्त कर देने वाली कामुकता से आदित्य की तबीयत में हमेशा बेचैनी भरी तरावट रहती।

हालांकि आदित्य और दीपाली जी भर के जवानी के, सेक्स के, रोमांस के मजे ले रहे थे फिर भी आदित्य जब भी ऑफिस में होता दीपाली की छवि उसकी आंखों के सामने तैरती रहती।

जैसे ही उसे कुछ पल की फुर्सत मिलती, वह दीपाली के साथ पिछली रात की चुदाई के बारे में सोचने लगता और कई बार वासना के दबाव में ‘लंच ब्रेक में घर जाता और लंच के बजाय पंच करके लौट आता।’

तरह तरह के कामुक विचार उसको हमेशा घेरे रहते और इधर विवाह के समय ‘अक्षत कौमार्य वाली’ दीपाली भी, आदित्य से और आदित्य के लंड से मिलने वाले कामसुख से, इतनी प्रसन्न थी कि आदित्य की अनुपस्थिति में भी उसी का ध्यान करती रहती।

वैवाहिक सुख की प्रचुरता के कारण दीपाली की दीवानगी भी बढ़ी हुई थी।
हद यह थी कि किसी भी लंडाकर चीज, जैसे बैंगन, केला, बेलन, गाजर, मूली, झाड़ू, खीरा, भुट्टा, पर उसकी नजर पड़ती, उसका ध्यान आदित्य के लंड की ओर चला जाता।

कुल मिलाकर दोनों एक दूसरे को बेइंतेहा चाहते थे। एक दूसरे की प्राकृतिक जरूरतों का पूरा ध्यान रखते थे और एक दूसरे के सुख के लिए कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहते थे।

टिंग टॉन्ग, टिंग टॉन्ग!
दीपाली नहाने जा रही थी, उसने अपना गाउन उतार कर धोने में डाल दिया था।

वह ब्रा और पैंटी में ही यह सोचते हुए दरवाजे की ओर दौड़ी कि लंच ब्रेक में आने वाला आदित्य आज 11 बजे ही कैसे आ गया?

उसने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो वह भौंचक्की रह गई.
सामने आदित्य नहीं बल्कि ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाला, उन का मकान मालिक, वैभव सिंह सिसोदिया खड़ा था।

वैभव सिंह एक 35 वर्षीय कसरती बदन वाला, आकर्षक व्यक्तित्व वाला युवक था, उस का कद 6 फुट, चौड़ा चकला सीना, गौर वर्ण, किसी भी महिला को आकर्षित कर सकता था।

आज तक वैभव और दीपाली ने कभी एक दूसरे को कामुक नजरों से नहीं देखा था पर अभी परिस्थितियां दूसरी थीं।

दीपाली के खिलते हुए यौवन को देखकर वैभव का लंड भी करवट ले रहा था और वैभव की अप्रत्याशित उपस्थिति से चकित दीपाली की धड़कनें भी बढ़ी हुई थीं।

दीपाली से यह गलती भी इसलिए हुई कि मकान मालिक वैभव ने भी आदित्य की तरह ही दो बार घंटी बजाई थी।
उसको यह भी ध्यान नहीं रहा कि वह दरवाजा खोलने से पहले कुछ पहन ले या कम से कम तौलिए से अपने बदन को ढक ले।

क्योंकि वे लोग आदित्य की नौकरी के कारण ही पहली बार जयपुर शहर में आए थे।
वहां उनका कोई रिश्तेदार या पूर्व परिचित नहीं था और सामान्यतः दिन में आदित्य को छोड़कर कभी कोई आता भी नहीं था।

जब दीपाली को अपनी अर्धनग्न स्थिति का ध्यान आया तो वह अंदर भागी और नया गाउन पहन के वापस आई.

उसने आ कर वैभव से नजर चुराते हुए पूछा- हां, कहिए वैभव जी, कैसे आना हुआ?
वैभव ने कहा- अरे आदित्य सर का फोन आया था, उनको ऑफिस के काम से जोधपुर जाना पड़ गया है. तुम्हारा फोन बंद आ रहा था इसलिए उन्होंने मुझे तुमको यह सूचना देने के लिए बोला था।

दीपाली ने कहा- ओह, मेरा फोन बंद हो गया था, मैंने उसे चार्ज करने के लिए तो लगा दिया था किंतु उसे ऑन करना भूल गई थी।

वैभव सीढ़ी की ओर बढ़ा और उतरने के पहले मुस्कुराते हुए बोला- दीपाली, यार दरवाजा खोलने के पहले थोड़ा ध्यान रखा करो फिर शरारत से आंख मारते हुए बोला, पूरे बदन में सनसनी मचा दी तुमने!
दीपाली झेंपती हुई बोली- जी, आइंदा ध्यान रखूंगी।

वैभव नीचे चला गया और दीपाली दरवाजा पुनः बंद करके अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को सामान्य करने के लिए बिस्तर पर लेट गई।
उसे बार-बार वैभव की उस के अर्ध नग्न बदन का जायजा लेती वे आंखें याद आ रही थीं जो दरवाजा खुलने पर उसके मादक जिस्म को निहार रही थीं.

वैभव ने तो आंखों ही आंखों में उसकी ब्रा और पैंटी तक उतार दी थी।
उसकी जिज्ञासु नज़रों ने उसके नंगे जिस्म का, उस की गोलाइयों का, उसके उभारों का, उसकी गहराइयों का पूरा पूरा आनंद ले लिया था।

कह सकते हैं कि उसने आंखों ही आंखों में, दीपाली के संग मनमर्जियां कर ली थी।
अजीब बात यह थी कि दीपाली को भी अपनी चूक पर शर्मिंदगी कम और सनसनी अधिक महसूस हो रही थी।

उसके लिए यह एक नया अनुभव था जो उसने जिंदगी में पहली बार आज महसूस किया था।
‘एक गैर मर्द द्वारा उसके अधनंगे शरीर को निहारे जाने का, रोम रोम को रोमांचित करने वाला अहसास!’

कुछ समय बाद उसने आदित्य को फोन लगाया.
घंटी की आवाज सुनते ही वह तो चुदाई के मूड में आ चुकी थी।

यूं भी उसकी चुदाई नियम से, दिन में दो या उससे अधिक बार होती थी।

आज बिना आदित्य का लंड लिए वह कैसे रात को सो पाएगी?
उसने आदित्य को बोला भी कि मुझे रात को तुम्हारा लंड लिए बिना कैसे चैन मिलेगा!

इस पर आदित्य ने कहा- अब यार जाना जरूरी था। मैं आकर तेरा कोटा पूरा कर दूंगा.
तो दीपाली ने उखड़े स्वर में कहा- भोजन समय पर चाहिए, 4 दिन का खाना एक साथ नहीं खा सकते.
और फोन काट दिया।

दीपाली की तबियत बड़ी अनमनी सी हो रही थी।
उसको ऐसा लग रहा था जैसे वैभव की आंखों के चुम्बक ने उसकी जान निकाल ली हो।

फिर भी नहाना तो था, दीपाली जैसे तैसे पलंग से उठी और नहाने के लिए बाथरूम में चली गई।

जब वह नहा कर निकली तो उसको भूख तो लग रही थी लेकिन उसका खाना बनाने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था।
किसी भी महिला को केवल खुद के लिए खाना बनाना पसंद नहीं आता।

वह यही सोच रही थी कि अगर खाना नहीं बनाती हूं तो फिर लंच में क्या लूंगी!
इतने में नीचे से आवाज आई- अरे दीपाली!

दीपाली ने जवाब दिया- जी कहिए!
तो वैभव ने कहा- अरे यार, मेरा भी खाना बना लेना क्योंकि मिसेज भी मायके गई हुई है।

दीपाली जैसे चैतन्य हो उठी, उसका शरीर एकाएक अजीब से उत्साह से भर गया, वह फटाफट सब्जी काटने लगी और बाद में आटा लगाते हुए उसने सोचा कि उसमें अचानक ये ऊर्जा कैसे आ गई?

जवाब में फिर उसको वैभव की, उसके अर्ध नग्न जिस्म को निहारती वे मुग्ध आंखें याद आ गईं।
उसने अपने सिर को झटका और खाना बनाने में सक्रिय हो गई।

खाना बना के उसने वैभव का खाना एक टिफिन में पैक किया और नीचे देकर आने के लिए उतरी।

उस के दिल की धड़कन फिर बढ़ने लगी, सांसों में तपन महसूस होने लगी, उसका रक्त संचार तेज होने लगा।
सुबह के कुछ लापरवाह पलों ने, उस के तन मन में हलचल मचा दी थी।

दीपाली ने खाना वैभव की डाइनिंग टेबल पर रखा और जाने लगी तो वैभव ने आवाज़ लगाई- अरे दीपाली सुनो तो सही!
तो दीपाली ने कहा- आदित्य का फोन आने वाला है, मैं बाद में आती हूं!

और सरपट बाहर निकल गई।
उसका दिल जोरों से धड़क रहा था।

सुबह का दृश्य और वैभव की ललचाई हुई आंखें उसके दिमाग से निकल नहीं पा रही थीं।

दिन में खाना खाने के बाद वह सोने के लिए लेटी लेकिन बहुत समय तक उसके दिमाग में तरह-तरह के विचारों का झंझावात चलता रहा।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सुबह की घटना को भुला क्यों नहीं पा रही?
वह यह भी नहीं समझ पा रही थी कि उसके मन में ग्लानि का भाव क्यों नहीं आ रहा था?

ऐसे ही ख्यालों में खोई हुई, पता नहीं कब उसकी आंख लग गई।

दीपाली सो कर उठी तो उसकी तबीयत बेचैन थी।
उसे लगा कि नींद ठीक से नहीं आई, कच्ची नींद में बहुत से सपनों ने, शरीर को आराम पहुंचाने के स्थान पर थकान से भर दिया था।

इतने में नीचे से वैभव की आवाज़ सुनाई दी- दीपाली! दीपाली, नीचे आ जाओ, चाय साथ ही पिएंगे।
दीपाली ने कहा- जी, आई!
उसका ध्यान ‘नीचे आ जाओ’ शब्दों पर गया, अनायास ही उस के होठों पर मुस्कान आ गई।

चाय पीते हुए वैभव ने दीपाली को कहा- परेशान दिख रही हो, नींद ठीक से नहीं आई क्या?
दीपाली ने कहा- जी, कुछ बेचैनी सी रही!

इसके बाद वैभव और दीपाली चाय पीते रहे.

वैभव एकटक दीपाली को निहार रहा था, उसके चेहरे को, उसके मन को, पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

दीपाली वैभव से नज़रें चुरा रही थी।
उसे लग रहा था कि जैसे वैभव उससे कुछ कहना चाहता है लेकिन निर्णय नहीं ले पा रहा है कि क्या कहे और कैसे कहे?
इतना निश्चित था कि जो कुछ भी कहेगा उसकी बेचैनी को बढ़ाने वाला होगा।

चाय खत्म होने के बाद वैभव ने दीपाली को कहा- मैंने डिनर भी ऑर्डर कर दिया है, तुम कुछ बनाना मत, खाना नीचे साथ ही में खाएंगे।
दीपाली ने हामी भरी और ऊपर आ गई।

शाम को उसने सोचा कि खाना तो बनाना नहीं है, छत पर जाकर थोड़ी ठंडी हवा खाई जाए, शायद कुछ तसल्ली मिले।

छत पर मखमली अंधेरा पसरा पड़ा था।
दीपाली एक कोने में जाकर बैठ कर ठंडी हवा झोंकों का आनन्द लेने लगी।

इतने में छत के दूसरे कोने में उसकी नजर पड़ी.
वहां वैभव टहल रहा था और एक हाथ से बार-बार अपने लंड को सहला रहा था, बीच-बीच में थोड़ा सा वह लंड को पड़कर दबा भी रहा था।

दीपाली को ऐसा लगा कि वैभव को भी सुबह के दृश्य ने जकड़ रखा है।
‘वैभव को भी बेकरार पा कर दीपाली के दिल को अजीब सा करार आया।’

दीपाली चुपके से छत से नीचे उतर आई और इंतजार करने लगी डिनर के बुलावे का!
उसके मस्तिष्क में विचारों का झंझावात निरंतर बना हुआ था।

वह प्रकृति के इस पर-पुरुष और पर-स्त्री आकर्षण को समझने की कोशिश कर रही थी।

आमतौर पर माना जाता है कि असंतुष्ट पत्नी और पत्नी की उपेक्षा के कारण कामसुख से वंचित पति ही इधर उधर, किसी अन्य की ओर आकर्षित होते हैं और अपनी दमित इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं।

लेकिन दीपाली के साथ तो ऐसा नहीं था.
उसने और आदित्य ने तो जी भर के एक दूसरे की देह का दोहन किया था।
सभी संभव आसनों का प्रयोग करके एक दूसरे को हर तरह का शारीरिक सुख पहुंचाया था।
उनके बीच तो आज तक कहा सुनी भी नहीं हुई थी.

फिर ऐसा क्या हो गया कि सुबह से वैभव का चेहरा उसकी आंखों के सामने से हट नहीं रहा था?

उधर वैभव तो जैसे इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाने के चक्कर में था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कुदरत ने उसे यह मौका इसलिए दिया है, जिससे वह दीपाली जैसे तरोताजा फल का स्वाद ले सके।

दीपाली को ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि शाम को छत पर टहलते हुए वैभव जानबूझकर अपने लंड को सहला और दबा रहा था क्योंकि उसने कनखियों से दीपाली को वहां आकर बैठते हुए देख लिया था और वह उसकी कामवासना को सुलगाना और भड़काना चाह रहा था।

शाम के 8:30 बजे होंगे, वैभव की आवाज आई- दीपाली डिनर आ चुका है ‘नीचे आ जाओ!’
दीपाली ‘नीचे आ जाओ’ शब्द सुनकर फिर मुस्कुराई।

वह इस स्थिति का मजा भी ले रही थी, साथ ही साथ इन विशेष कामोद्दीपक परिस्थितियों में वह अपने मन को बहकने से रोक भी रही थी।

वह मिठाई की प्लेट लेकर नीचे उतरने लगी, उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसके कदम भारी हो गए हैं।

वैभव ने बहुत शानदार खाना मंगवा के डाइनिंग टेबल पर सजा दिया था।
और वैभव के मुंह में दीपाली और मिठाई दोनों को देखकर पानी आ रहा था।

खाना खाते हुए दीपाली वैभव से नज़रें चुराती रही और वैभव दीपाली को एकटक निहारता रहा।
जब भी दीपाली ने चोरी से वैभव को देखना चाहा, हर बार उन दोनों की नज़रें टकरा जाती और वैभव मुस्कराने लगता और दीपाली झेंप कर रह जाती।

खाना खाते हुए इधर-उधर की सामान्य बातें भी चलती रही।
वैभव यही विचार कर रहा था कि अभी नहीं तो कभी नहीं वाला अवसर मिला है।

खाने के बाद दीपाली ने मिठाई की प्लेट उठाकर वैभव के सामने लाते हुए कहा- वैभव जी, मुंह मीठा कीजिए।

वैभव ने मौका ताड़ते हुए कहा- यार दीपाली, मैं तुमसे बड़ा जरूर हूं पर इतना भी बड़ा नहीं हूं कि हम मित्र ना बन सकें! मुझे वैभव कहो।
दीपाली ने कहा- जी, वैभव मिठाई लो।

वैभव की मित्र वाली बात सुनकर और उसकी नीयत को भांपकर दीपाली का चेहरा शर्म से लाल हो गया.
वह समझ रही थी कि घटनाक्रम किस ओर बढ़ रहा था.
और वह यह भी जान रही थी कि दुविधा केवल उसको है।

वैभव तो पूरी तरह से इस अवसर का लाभ उठाते हुए दीपाली के साथ ‘विशेष प्रणय संबंध’ स्थापित करना चाह रहा था।

दीपाली ने बर्तन समेटे और उन्हें धोने के लिए सिंक की ओर बढ़ी।
उसके साथ वैभव भी किचन में मदद करने के बहाने से आ गया जबकि उसका इरादा कैसे भी करके बस दीपाली के संग रहने का था।
दीपाली के मना करने के बावजूद वह बर्तन धोने लगा।

बर्तन धोते हुए बीच-बीच में दोनों के हाथ आपस में छू जाते तो दीपाली के तन-बदन में तरंगे सी उठने लगती.
वैभव तो ठहरा मर्द, दीपाली के हाथों के स्पर्श सुख से उसकी नस-नस में सनसनी हो रही थी।

बर्तन साफ करने के बाद वैभव ने दीपाली को रोके रखने की मंशा से चाय बना ली और चाय लेकर डाइनिंग टेबल पर कुर्सी खींच के बैठ गया.
दीपाली उसके पास वाली कुर्सी पर बैठी थी।

वैभव ने हिम्मत बटोरी और दीपाली के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा- दीपाली एक बात कहूं?
दीपाली का पूरा शरीर झनझना उठा, उसने वैभव के हाथ से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा- कहिए।

वैभव ने कहा- दीपाली, तुमने कुदरत के इस संयोग पर गौर किया कि कल सुबह ही मेरी पत्नी कोटा गई और आज तुम्हारे पति भी जोधपुर के लिए निकल गए। उन दोनों के जाने के बाद पीछे से इस सूने घर में सिर्फ हम दोनों हैं। क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि प्रकृति यह चाहती है कि हमें अपनी तनहाई दूर करते हुए इस अवसर का लाभ उठाएं चाहिए? जब से तुम इस मकान में आई हो, मेरा दिल तुमसे मिलने के लिए तड़प रहा है, क्या तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ कोमल भावनाएं हैं? या नहीं?

दीपाली के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, वह गूंगी गुड़िया सी बैठी सुनती तथा सोचती रही कि वैभव ने कैसे उसके सामने इतना सब बोल दिया!

वैभव ने फिर कहा- दीपाली, मेरी बात का जवाब दो. क्या मैं तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं? क्या हम इस वीराने में बहार ला सकते हैं या नहीं? कुछ तो बोलो दीपाली!

दीपाली ने कहा- आदित्य का फोन आने वाला है, मैं ऊपर जाती हूं!
और वह बिना कुछ जवाब दिए उठकर जाने लगी.

पीछे से वैभव ने कहा- दीपाली, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।

पर दीपाली दौड़ कर वैभव के डाइनिंग हॉल से बाहर निकल के ऊपर चली गई और ऊपर जाकर पलंग पर निढाल होकर गिर पड़ी, उसके कानों में अभी तक वैभव के प्रणय निवेदन के लिए कहे शब्द गूंज रहे थे।

सुबह की उसकी छोटी सी चूक ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि वह करना क्या चाहती है।

उसने आदित्य के बारे में सोचा जो बहुत खुले विचारों और बड़े दिल वाला है, इतना ही नहीं वह उसको जी जान से प्यार भी करता है।
फिर उसका मन भटकने पर उतारू क्यों है? (The Other Man Sex Infatuation)

क्या वह वैभव के प्रणय निवेदन को स्वीकार कर ले? क्या कुछ पलों का आनंद, उसके जीवन को तनाव और दुख से भर तो नहीं देगा? क्या एक पर-पुरुष के पास जाकर, वह आदित्य की मोहब्बत का अपमान तो नहीं करेगी?

इस पर उसके मन ने बहकाने वाला तर्क किया कि रोज घर का सादा खाना खाने वाला व्यक्ति, जब कभी बाहर चाट पकौड़ी, पिज़्ज़ा बर्गर आदि खा लेता है तो क्या उससे, घर के खाने का अपमान हो जाता है?
क्या एक रात वैभव के साथ गुजार लेने से, उसके मन में आदित्य के लिए जो प्यार है, वह कम हो जाएगा?

पोर्न वीडियो देखते हुए क्या हर स्त्री और पुरुष, उस से कामोत्तेजना प्राप्त नहीं करता? उससे आनंद लेना, क्या इंसान के मन में दबी हुई, नये स्वाद की लालसा का परिणाम नहीं?

क्या अन्तर्वासना की पति पत्नी के प्रेम पर आधारित कोई एक भी कहानी ऐसी है, जिसने पाठकों की कामुकता को बढ़ाया हो?
जवाब मिलेगा- शायद नहीं।
वास्तविकता यह है कि विवाहेत्तर संबंधों पर आधारित कहानी ही पाठकों में सनसनी उत्पन्न करने की क्षमता रखती है।

फिर कब तक किसी स्त्री का चरित्र, केवल चूत के पैमाने से तोला जाता रहेगा?
कोई स्त्री एकनिष्ठ होकर भी बहुत बुरी हो सकती है। कोई एक से अधिक मर्दों के साथ संबंध रख कर भी अपने कृतित्व से महान हो सकती है।

इसलिए प्रश्न इस बात का है कि ‘पेट की भूख और जिस्म की भूख को, एक समान महत्व क्यों नहीं दिया जा सकता?’

क्या नए स्वाद की शौकीन जुबान और विविधता पसंद दिमाग, एक ही चेहरे और एक ही जिस्म से ऊब नहीं जाता?
और क्या इंसान के जीवन में यही ऊब, यही नीरसता, पारिवारिक तनाव को जन्म नहीं देती?

इतना तो दीपाली को विश्वास था कि यदि बाद में आदित्य को उसने बता भी दिया तो वह खुले मन से, उसकी मन स्थिति को समझते हुए, उसके क्षणिक भटकाव को ज्यादा तूल नहीं देगा।
किंतु अनिर्णय का शिकार तो वह स्वयं थी।

वह सोच रही थी कि लोग यह गलत समझते हैं कि औरत की चूत में केवल एक प्राकृतिक सील ही होती है, जिसे पहली चुदाई में पति या प्रेमी तोड़ता है।

वास्तव में औरत की चूत में नैतिक बंधनों वाली एक सील और होती है, जिसे पहला गैर मर्द तोड़ता है।
पहली बार किसी गैर मर्द के पास जाने के पहले, औरत को बहुत हिम्मत जुटाना पड़ती है।

कई तरह की शंका, कुशंका उसे घेरे रहती है, उसे इन आशंकाओं से बाहर निकल कर, मन को नया आनंद दिलाने के लिए प्रण करना पड़ता है।

फिर जब पहले पर पुरुष द्वारा, स्त्री की यह दूसरी सील टूट जाती है तो उसके साथ स्त्री की झिझक, उसका संकोच भी टूट जाता है और उसमें कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ, संबंध बनाने का साहस आ जाता है।

अब धीरे धीरे उसका मन भी वैभव की इस बात पर यकीन करने लगा कि कुदरत ने उन दोनों को, एक नया आनंद उठाने के लिए ही, यह स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है।

दीपाली उठी, बाथरूम में जाकर नहाई और फिर उसने अपनी सबसे अधिक सैक्सी पारदर्शी नाइटी पहनी और कामवासना के प्रभाव में बेसुध होकर बढ़ चली अपने जीवन के पहले गैर मर्द वैभव के पास।

सीढ़ी उतरते हुए दीपावली ने देखा कि वैभव ने डाइनिंग हॉल वाले दरवाजे को खोल रखा था जिससे उसे बरामदे में होकर न जाना पड़े और किसी पड़ोसी की, उस पर नज़र पड़ने की भी कोई आशंका नहीं रहे।
दीपाली मन ही मन वैभव की इस सावधानी पर मुस्कुरा उठी।

जब दीपाली ने दरवाजा खोला तो देखा वैभव भी अभी अभी नहा कर बाहर आया था और केवल लुंगी बांधे, बालों में कंघी कर रहा था।
वह यह देख कर दंग थी कि वैभव को कितना विश्वास था कि दीपाली उस के पास जरूर आएगी।

कहानी के अगले भाग ‘औरत की चूत की दूसरी सील’ में पढ़िए कि बहुत वैचारिक द्वंद के बाद, दीपाली का वैभव के साथ रात गुजारने का निर्णय सुखद परिणाम देता है या नहीं?

इस अदर मैन सेक्स इन्फेचुएशन कहानी के संबंध में अपने विचार, सुझाव सीमाओं में रहते हुए प्रकट करें, मैं जवाब अवश्य दूंगी।
मेरी मेल आईडी है
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कहानी का अगला भाग: वासना की फिसलन भरी राहें- 2

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