प्रेषक : अरुण
हाय दोस्तो… आपकी शालिनी भाभी एक बार फिर से आप सबके लण्ड खड़े करने आ गई है अपनी एक नई कहानी लेकर !
भूले तो नहीं ना मुझे?
‘तो लगी शर्त’, ‘जीजा मेरे पीछे पड़ा’, ‘गर्मी का इलाज’, और ‘डॉक्टर संग मस्ती’
आया कुछ याद?
हाँ जी आपकी वही शालिनी भाभी जयपुर वाली !
आज मेरी कहानी का हर एक दीवाना मुझे चोदने को बेचैन है। सच मानो अब तो मेरी चूत भी चाहती है कि मैं अपने हर दीवाने का लण्ड अपने अंदर घुसवा कर चुद जाऊँ पर यह मुमकिन नहीं है यारो !
आज की कहानी की ख़ास बात यह है कि इस कहानी का मेरा हीरो भी आप सबका जाना पहचाना है।
जी हाँ, मेरी अभी तक की सब कहानियों को मेरे अनुसार लिखने वाला मेरा अज़ीज़ राज कार्तिक असल में मैं अपने साथ घटी हुई सारी चुदाई की दास्ताँ उसे सुनाती थी और वो कहानी लिखा करता था और ऐसे ही चुदाई की बातें करते करते हम एक दूसरे के बहुत ज्यादा करीब आ गये थे और कई बार उसने फोन पर मेरे साथ चुदाई की बातें करते करते हम दोनों ने ही हस्तमैथुन भी किया है।
वो मेरी कहानियाँ लिखता था, यह उसका बहुत बड़ा अहसान था मुझ पर और अब मेरा मन था कि मैं उसका यह क़र्ज़ इस तरह से चुकाऊँ कि वो खुश हो जाए !
और मैं उस पर अपनी सबसे अनमोल चीज़ यानि मेरी चूत उस पर न्यौछावर कर देना चाहती थी।
मैं जयपुर से थी और वो दिल्ली से था, ज्यादा दूर नहीं था पर बस हम अभी तक मिल नहीं पाए थे। फिर मैं उसके पीछे पड़ी कि वो जयपुर आये क्यूंकि मेरा परिवार था, मैं दिल्ली नहीं जा सकती थी।
और फिर एक दिन उसका फोन आया कि वो अपने काम के सिलसिले में जयपुर आ रहा है। मैं तो ख़ुशी के मेरे पागल ही हो गई लेकिन जब उसने अपने आने का दिन बताया तो मेरी ख़ुशी गायब हो गई क्यूँकि उस दिन मेरे पति का कोई टूर नहीं था और वो भी उस दिन जयपुर में ही थे, लेकिन मैं उससे मिलने को मरी जा रही थी तो उसे आने से मना ही नहीं किया, सोचा मैं कुछ ना कुछ जुगाड़ निकाल ही लूँगी।
वो बिल्कुल सुबह वाली ट्रेन से जयपुर आ गया और मेरे घर से थोड़े ही दूर के एक होटल में रुक गया था, उसका प्लान था कि वो पहले अपने काम को निपटायेगा और फिर हम मिलेंगे।
लेकिन मेरे पति के ऑफिस निकलते ही मैंने उसे एक बार कॉफ़ी केफे डे में मिलने को कहा। उस समय घर पर काम वाली बाई काम कर रही थी, उसे बेबी को थोड़ी देर के लिए संभालने के लिए कहा और घर से निकल पड़ी। वो मुझसे पहले ही वहाँ मौजूद था।
दोस्तो, लिखते मुझे हुए शर्म आ रही है लेकिन उसे सामने देखते ही मेरी चूत गीली हो गई और मैं पगला सी गई, वो भी मुझे देख कर व्याकुल सा हो गया। हमने हाथ मिलाया, पूरे शरीर में झुरझुरी सी छूट गई।
वो मुझे लेकर केफे में जाने लगा, मैंने उसे रोकते हुए कहा- तुम रुके कहाँ हो? क्या अपना कमरा नहीं दिखाओगे?
वो बोला- वो सामने रहा !
मैंने कहा- तो फिर कॉफ़ी बाद में पियेंगे।
वो राज़ी हो गया और दोस्तो, हम दोनों ही इतनी फुर्ती से उसके होटल रूम में पहुँचे कि मैं बता नहीं सकती।
और जैसे ही रूम में दाखिल हुए,
मैं उसकी बाहों में झूल गई, उसने भी मुझे कस के पकड़ लिया जैसे और हम दोनों के ही दोनों हाथ, दोनों पैर और मुँह एक दूसरे के बदन पे रगड़ा रगड़ी, चूमाचाटी में व्यस्त हो गए, ऐसा लग रहा था कि हम दोनों एक दूसरे में अभी ही घुस जाएँ क्यूँकि उसने मुझे बहुत ही ज्यादा कस के पकड़ा हुआ था, उसने मेरे बाल कस के पकड़ कर मेरा चेहरा पीछे की तरफ खींच दिया और मेरे चेहरे ओअर चुम्बनों की बरसात सी कर दी, मेरे होंठ, मेरे गाल, मेरी नाक, मेरी ठोड़ी, कोई जगह नहीं छोड़ी उसने, और अब वो गर्दन के रास्ते नीचे की तरफ बढ़ चला और अब उसके मुँह का गीलापन मैं अपनी छातियों पर महसूस कर रही थी।
मित्रो, आपको यह तो मालूम ही है कि तुम्हारी यह भाभी वैसे ही बहुत खुले गले के ब्लाउज पहनती है, जिसमें से मेरे गदराये हुए चूचे बाहर दीखते रहते हैं, और अभी इस राज़ की इस हरकत की वजह से मेरे उरोज इतने बाहर आ गये कि निप्पल भी दर्शायमान होने लगे थे ! मेरे उस बदमाश आशिक़ ने दूसरे हाथ से निप्पल को बाहर निकाल दिया, बूब्स इस समय ब्रा और ब्लाउज़ में भी फंसे थे, इस वजह से मुझे दर्द होने लगा था क्यूँकि वो बहुत ही ज्यादा तन गए थे और ऐसे फूले गुब्बारे जैसे मेरे बूब्स अब उसने अपने मुँह में भर लिए।
अब जब वो इतना ज्यादा आगे बढ़ ही चुका था, तो ऐसे में आपकी यह भाभी भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, मैंने भी उसकी शर्ट उसकी पैंट से बाहर खींच दी और अपने हाथ उसके अंदर डाल दिए। अब मेरे हाथ उसकी नंगी पीठ, उसकी बालों से भरी हुई छाती पे फिसल रहे थे, मैं उस रगड़ रही थी, नोच रही थी, जहाँ मेरी चूत बिल्कुल गीली हो गई थी, वही राज़ का भी लंड बुरी तरह से तन गया था, जो मुझे अपनी जांघों में महसूस भी हो रहा था।
अब मैंने उसके लंड का नाप लेने के लिए आगे के रास्ते अपना हाथ उसकी पैंट और अंडरवियर में अंदर तक घुसा दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
उसका भी लंड का सुपाड़ा बहुत गीला हो रहा था और लंड सचमुच बहुत ही फौलादी था, क्यूँकि उसके लंड की जड़ में झांटों वाली जगह पर मेरी उंगलियाँ पहुँच गई तो उसका लंड मेरी कलाई तक आ गया यानि काफी लम्बा था, और जब मैंने उस पर अपने हाथ से ग्रिप बनाई तो मालूम पड़ा कि वो बहुत मोटा भी था, लेकिन मेरी इस हरकत ने उसे विचलित कर दिया शायद मेरे इस तरह से उसके लंड को ग्रिप बना के रगड़ने से उसे डिस्चार्ज होने का डर हुआ हो, वो फ़ौरन मुझे अलग हो गया, हमारी साँसें तेज़ हो गई थी, पूरा बदन पसीने में भीग गया था।
वो थोड़ा संयत होने के बाद बोला- शालू मेरी जानू, तुम मुझे पूरी तरह से कब मिलोगी, मैं मरा जा रहा हूँ यार, और ऐसे आधा अधूरा मिलन मुझे और पागल बना देता है।
मैं फिर उससे लिपट गई और बोली- हाँ यार, तुम सच कहते हो, मैं घर जाकर कुछ जुगाड़ करती हूँ। यार मेरे पति यहीं जयपुर में हैं, वरना वो अक्सर टूर पर रहते हैं।
फिर हम बाहर आये, कॉफ़ी पी, वो जिस काम से जयपुर आया था, वो करने चला गया और मैं रात के मिलन का जुगाड़ सोचती हुई अपने घर आ गई।
और कहते हैं ना कि जहाँ चाह, वहाँ राह !
ऐसा ही हुआ, घर आने के थोड़ी ही देर बाद मेरी जोधपुर वाली ननद का फोन आया कि वो जयपुर आना चाह रही है लेकिन कोई साथ ही नहीं मिल रहा, क्या करूँ?
मुझे तुरंत एक आईडिया सूझा, मैंने उसे कहा- मैं ‘इन’ से बोलती हूँ, ये तुम्हें लेने आ जायेंगे, और तुम भी अपनी तरफ से उन्हें फोन कर दो।
मेरी यह ननद मेरे पति की सबसे चहेती बहन है, उनसे छोटी है, मुझे उम्मीद थी कि वो उसकी बात को टाल नहीं पाएँगे और इस तरह मुझे अपने ही घर में पूरी रात का एकांत मिल जाएगा अपने राज़ के साथ !
क्यूँकि होटल में मेरे अपनी बेबी के साथ जाने और पूरी रात रुकने में खतरा था और होटल वालों को शक हो सकता था और घर पर मेरे पति का फ़ोन लैंडलाइन फोन पर भी आ जाता था कभी कभी, तो यह सब घर पर ही करना सही था।
और फिर मैंने जब इन्हें फोन किया तो उसके पहले ही ननद उन्हें फोन कर चुकी थी और वो जाने का मन बना चुके थे, लेकिन फिर भी मैंने झूठमूठ का गुस्सा दिखाया और कहा- क्या यार? इसका मतलब मुझे आज रात अकेले ही रहना होगा?
वो मुझे समझाते रहे, मनाते रहे और उनकी रात के सफर की तैयारी करने को कहा। वो शाम 7 बजे वाली ट्रेन से ही निकलने वाले थे।
मैं उनके सफ़र की तैयारी में लग गई और शाम 6.30 पर जैसे ही उनकी कैब उन्हें लेकर निकली, मुझे ना जाने क्या होने लगा।
दोस्तो, मैंने जिंदगी में बहुत सेक्स किया है, नए नए लंड लिए हैं लेकिन हर बार सेक्स के पहले में इतनी ज्यादा उतावली और उत्तेजित हो जाती हूँ, न जाने मेरे साथ ऐसा क्यूँ है।
मैंने राज़ को फोन लगाया और उसे जल्दी से जल्दी आने को बोला। उसने 8.30 तक आने को बोला। तब तक मैंने उसके लिए डिनर बनाने का सोचा और बेबी के लिए तैयारी की जिससे वो टाइम से सो जाए और फिर अपने आप को सजाने संवारने में लग गई।
मैंने बिना बाहों वाला काला ब्लाउज़ जिसका गला काफी गहरा था, काले रंग की ही नेट वाली पारदर्शी सी साड़ी पहनी जिसे नाभि के काफी नीचे बांधा, अंदर मेरी पैंटी और ब्रा भी आज मैंने सेट वाले ही पहनी जो काले ही थी, मेरा रंग बहुत गोरा है इसलिए मुझ पर काली ड्रेस बहुत अच्छी लगती है।
और अब मैं बालकॉनी में आकर अपने राजा यानि अपने राज़ का इंतज़ार करने लगी।
दोस्तो, इसके आगे रात की असली कहानी अगले भाग में जरूर पढ़ना।
और हाँ दोस्तो, इस बार की मेरी यह कहानी लिखने में अन्तर्वासना के ही एक उत्कृष्ट लेखक अरुण मदद कर रहे हैं जो संयोग से मेरे शहर जयपुर से ही हैं।