मेरा नाम रोहित है, मेरी उम्र अभी 19 साल है.
मैं दिखने में भी बहुत सुन्दर हूँ.
मेरी यह हिन्दी सेक्स कहानी मेरी दीदी के साथ की है.
मैं शुरू से हॉस्टल में रहा … शायद इसीलिए मैं थोड़ा ज्यादा बेशरम हो गया हूँ. पिछले ही साल 12 वीं करके हॉस्टल से घर वापस आया.
हॉस्टल से घर आना सिर्फ गर्मियों और दीवाली की छुट्टियों में ही हो पाता था, इसलिए मेरे घर वाले मुझे बहुत प्यार करते हैं. खासकर दीदी मुझे बहुत प्यार करती हैं. दीदी मुझे भी बहुत अच्छी लगती हैं … वे बहुत क्यूट हैं.
बात तब की है, जब मैं गर्मियों की छुट्टियों में घर आया हुआ था.
दीदी भी कुछ दिन बाद मुझे मिलने घर ही आ गईं. वे जैसे ही आईं … आते ही उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और मेरा हाल पूछने लगीं, फिर हॉस्टल के बारे में पूछने लगीं.
उस टाइम मैं छोटा था शायद इसलिए मैं किसी भी लकी को कभी भी गलत नज़रों से नहीं देखता था.
दिन बीत गया, दीदी से बात चलती रही, रात हो गई, खाना खाकर मैं टीवी वाले रूम में चला गया.
मैंने टीवी ऑन किया ही थी कि तभी दीदी भी आ गईं.
हम दोनों ने काफी देर टीवी देखी और फिर हम दोनों वहीं सो गए.
रात को करीबन 1:30 बजे मेरी नींद खुली तो मैं दीवार से लगा हुआ था. दीदी का मुँह दूसरी साइड और गांड बिल्कुल मुझसे दबाए हुई थीं … बिल्कुल मेरे लंड पर.
मैं थोड़ा सा पीछे को हुआ. मैंने थोड़ा आज़ाद सा होने की कोशिश की. लेकिन दो मिनट बाद ही दीदी ने फिर अपनी गांड से फिर से मुझे सटा दिया. अब तो मैं हिल भी नहीं सकता था.
मुझे नींद आ रही थी … तो मैं दिमाग को झटक कर कुछ रिलैक्स सा हुआ. पर मेरे रिलैक्स होने से नीचे की ऐंठन बढ़ गई और मेरा लंड खड़ा हो गया.
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए.
मुझे गर्मी लग रही थी और दीदी की गांड तो जैसे गर्मी का फव्वारा फेंक रही थी. मेरा लंड गर्म हो रहा था.
मैंने महसूस किया दीदी जैसे ही सांस अन्दर लेतीं … वो थोड़ा फैल जाती और उनकी गांड मेरी ऐंठन बढ़ा देती और जब मैं सांस भरता … तो मैं भी फ़ैल जाता और मेरा लंड भी आगे को होकर उनकी गांड को दबा देता.
अब मैंने दीदी से रिदम मिलाई, जब वो सांस भरतीं … तो मैं भी भरता और इस तरह ऐंठन दुगनी हो जाती.
मुझे मजा आने लगा.
मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं खुद ही आगे-पीछे होकर अपना लंड दीदी की गांड में चुभोने लगा था.
दीदी चुपचाप ही लेटी रहीं.
इसी से मेरी हिम्मत और बढ़ गई … मेरी स्पीड तेज़ होने लगी.
मेरी साँसें भी तेज़ चल रही थीं.
अब दीदी भी लम्बी-लम्बी साँसें भर रही थीं और चूतड़ भी काफी सख्त हो गए थे.
अब मैंने अपने लंड को उनकी गांड के छेद में बाहर से ही फिट किया और अपना पूरा जोर लगा दिया.
आह … अब तो मैं मानो जन्नत में था. मैं जोर-जोर से अपना लंड दीदी की गांड पर मार रहा था.
फिर अचानक से मैंने दीदी से पूरा चिपक कर अपना पूरा जोर लगाकर अपने लंड को अपने पैन्ट के अन्दर से ही उनकी गांड के अन्दर जितना अधिक घुसा सकता था … घुसा दिया.
कुछ ही पलों में मैंने अपना पूरा वीर्य अपने कच्छे के अन्दर ही टपका दिया.
फिर मुझे नींद कब आई … पता ही नहीं चला.
अगले दिन दीदी दूसरे कमरे में सोने जाने लगीं … तो मैंने जिद की ‘मैं आपके साथ सोऊंगा..’
दीदी ने हँस कर हामी भर दी.
उस दिन भी मैंने वही किया.
ऐसा कई दिनों तक किया और फिर मैं हॉस्टल चला गया.
हॉस्टल में अब मेरा मन नहीं लग रहा था. बस हर पल दीदी की ही याद आती थी, बार-बार वो गुदगुदी गांड मेरे मन में आती रही.
वहाँ मैं दीदी के नाम की मुठ मारकर काम चलाता रहा.
अब वक्त आ गया है कि मैं उसके फिगर की बात आप सबके सामने लिखूँ.
मेरी दीदी की हाइट 5 फुट 4 इंच है. बदन एकदम गोरा.
चूतड़ मोटे-मोटे, बड़े-बड़े तरबूजों जैसे गोल.
उन्हें याद करके कई बार कच्छे में ही अपना माल टपका देता था.
अब बोर्ड एग्जाम के लिए बस एक ही महीना बाकी था और मैं तो साल भर बस दीदी की ही गांड याद करता रहा. मुझे डर लगने लगा था.
मैंने एक महीने ढंग से पढ़ाई की और इस बीच मैं दीदी को भूल ही गया.
अब पेपर भी खत्म हो गए थे, अब मुझे हमेशा के लिए हॉस्टल छोड़कर घर आना पड़ रहा था.
एक हफ्ता घर रहने के बाद मैं शहर आ गया.
यहाँ दीदी किराए के कमरे में रहती थीं.
मैंने कोचिंग करने का मन बना लिया था. मैं हर हाल मैं आइआइटी क्लियर करना चाहता था. अभी यहाँ आए हुए सिर्फ दो ही हफ्ते बीते थे कि दीदी को एक दिन शाम को अचानक मार्किट जाना था.
दीदी ने मुझसे कहा- मुझे चेंज करना है.
मैं पढ़ रहा था … तो मैंने मना कर दिया.
दीदी ने कहा- चल आँखें बंद कर ले.
मैं वापिस अपनी बुक को पढ़ने लगा.
मैंने नज़रें उठाईं तो देखा कि दीदी ने पजामा उतार दिया था और हैंगर से पैन्ट उतार रही थी.
उनकी गोरी-गोरी टांगें और गुलाबी फ्रेंची जो कि दीदी की चूत और गांड को ढके हुई थी.
इस नजारे को देखकर मैं खो सा गया, वाह क्या चूतड़ थे.
मैंने पहली बार दीदी के चूतड़ों को ढंग से देखा था. क्या मस्त गोल-गोल … मोटे-मोटे थे. मैं उन्हें खा जाना चाहता था.
दीदी ने पैन्ट पहन ली.
अभी उन्हें ये पता नहीं था कि मैं पीछे से उन्हें निहार रहा हूँ.
दीदी ने टी-शर्ट उतारी तो मैं उनकी लाल ब्रा देखकर सारी आइआइटी ही भूल गया.
दीदी ने शर्ट हैंगर से उतारी और मेरी तरफ मुड़ीं.
मैं उनके उठे हुए मस्त मम्मे देखने लगा … जो कि उनकी ब्रा के अन्दर महफूज़ थे … उनको देखकर भूल ही गया कि मैं कहाँ हूँ.
मेरा लंड मेरी पैन्ट से बाहर आना चाह रहा था, यह एकदम से खड़ा हो गया था.
दीदी ने जैसे ही मुझे देखा … उन्होंने एकदम पीछे मुड़कर झट से शर्ट पहन ली और फिर मुझे डांटा- तमीज़ नहीं है तुझे.
मैं चुप ही बैठा रहा.
दीदी की नज़र मेरी पैन्ट पर पड़ी … मेरा तम्बू देख लेने के बाद गुस्से से पैर पटक कर बाज़ार चली गईं.
इसके बाद दीदी देर से कमरे पर वापस आईं.
मैंने उन्हें ‘सॉरी’ बोला तो उन्होंने मुझे अपने गले से लगा लिया.
मैं उनके उठे हुए मम्मों में अपना सर छिपा कर चिपक गया.
आज मुझे मम्मों का मजा कम आ रहा था पर शायद दीदी को मेरे जिस्म को भींचने में ज्यादा सुख मिल रहा था.
तभी उन्होंने मेरे मुँह ऊपर उठाया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
मेरा जिस्म झनझना गया.
दीदी ने मुझे नहीं छोड़ा और मैं भी उनकी जुबान को अपने मुँह में लेकर चूसता रहा.
कुछ ही पलों बाद मैंने महसूस किया कि दीदी का एक हाथ मेरे लण्ड पर था.
इसके बाद जो भूचाल आया, उसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी. हम दोनों के पूरे कपड़े कब हमारे जिस्मों से अलग हो गए और कब हम दोनों के जिस्म एक हो गए … कुछ मालूम ही नहीं पड़ा.
आधे घन्टे बाद हम दोनों एकदम तृप्त होकर नग्न अवस्था में एक-दूसरे से लिपटे हुए पड़े थे.
मेरी दीदी का पूरा प्यार मुझे मिल चुका था.
आपको मेरी यह सत्य सेक्स कहानी कैसी लगी. कमेंट्स कीजिएगा.
लेखक के आग्रह पर इमेल नहीं दी जा रही है.