दैया यह मैं कहाँ आ फंसी (Daiyya Mai Yah Kahan Aa Fansi)

Daiyya Yah Mai Kahan Aa Fansi

हैलो दोस्तो, मैंने एक जापानी कहानी पढ़ी थी, उसे ही मैं हिन्दी में ट्रांस्लेट करके आपको सुना रहा हूँ।
शायद ऐसा खुशनसीब कोई हो भी जिसकी ज़िंदगी में ऐसा हुआ हो।

खैर मर्द अपने औज़ार अपने हाथ में पकड़ें और लड़कियाँ अपनी अपनी पेंटी में हाथ डालें और कहानी का मज़ा लें।

मेरा नाम शालू है, मैं 25 साल की एक शादीशुदा औरत हूँ, मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं और इन दो सालों में मैंने बहुत कुछ देख लिया।
मेरी लव मैरेज हुई थी, शादी से पहले मैंने और सुरेश ने सेक्स को छोड़ के और सब किया था, मतलब उसने अपना लिंग मेरे अंदर प्रवेश नहीं करवाया था, बाकी चूमा चाटी, चूसा चूसी सब किया था।

तो सुहागरात पर मैंने भी कोई शर्म लिहाज नहीं की, मैंने खुद अपने कपड़े उतारे, खुद सुरेश का लिंग अपने मुँह में लेकर चूसा और अपने हाथ से पकड़ के अपनी चूत पे रखा।

सुरेश ने अंदर डाला, बहुत मामूली सा दर्द हुआ, और उसके बाद तो मज़ा ही मज़ा।
हमने पूरी रात सेक्स किया, करीब करीब हम दोनों ने एक दूसरे के बदन का हर एक भाग अपनी जीभ से चाट लिया दाँतों से काट लिया।
जितना इन्होंने मुझे पेला उतना ही मैंने इनको पेला, हमने एक ही रात में लगातार 4-5 बार सेक्स किया, मैंने भी पूरा खुल कर सुरेश का साथ दिया, कभी मैं ऊपर तो कभी ये ऊपर।

खैर हमारी सुहागरात बहुत ही बढ़िया रही।

दो दिन बाद हनीमून पे मनाली चले गए, दस दिन वहाँ रुके, वहाँ भी यही सब चलता रहा।
हनीमून खत्म, हम घर वापिस आ गए।

असली मुसीबत घर आ कर शुरू हुई, इनके घर में सिर्फ मर्द ही मर्द थे। एक बाबूजी, चाचाजी, एक ये और इनके दो चचेरे भाई, जो इनसे साल दो साल ही छोटे थे।
बाबूजी और चाचाजी ने मुझे पूरा अपनी बेटी की तरह प्यार दिया, मगर इनके दोनों चचेरे भाइयों की नियत मुझे साफ नहीं लगी।
दोनों के देखने का अंदाज़ बहुत गंदा था, हर वक़्त मेरे कपड़ों के अंदर झांकते रहते थे।

मैंने इनसे शिकायत की मगर इन्होंने बात को अनदेखा कर दिया।

मुझे अक्सर रात को नहा कर सोना अच्छा लगता है, एक रात जब मैं नहा कर बाहर निकली तो मेरे पाँव में कुछ चिपचिपा सा पदार्थ लगा।
जब मैंने ध्यान से देखा तो यह पुरुष वीर्य था।
मतलब यह के जब मैं नहा रही थी तो किसी ने मुझे नहाते हुए देखा और हस्तमैथुन किया।
मैंने यह बात भी अपने पति को बताई मगर वो हंस कर टाल गए।

फिर दिन में मैंने बाथरूम के दरवाजे का निरीक्षण किया तो देखा के दरवाजे में बारीक बारीक से 2-3 सुराख थे जिनमें से अंदर देखा जा सकता था।

ऐसे ही एक दिन मैं दोपहर को अपने कमरे में सो रही थी तो मुझे लगा कि जैसे कोई मुझे छू रहा है, मैं एकदम से उठी तो देखा कि सबसे छोटे देवर महेश ने मेरी साड़ी और पेटीकोट पूरा ऊपर उठा दिया था जिस से मेरी चूत बिल्कुल नंगी हो गई थी, और उसने एक हाथ में मेरा स्तन पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से हस्तमैथुन कर रहा था।

मैं उठी तो वो थोड़ा, सकपकाया, मगर डरा नहीं।

मैंने उसे डांटा तो वो मेरे पाओं में पड़ गया और मुझसे सेक्स की भीख मांगने लगा।

उसने बहुत मिन्नत की और मैं भी न जाने क्यों उसकी मिन्नत मान गई- देख, मैं तुझे सिर्फ एक बार करने दूँगी, और यह बात तू किसी को बताएगा नहीं!

वो झट से मान गया।

मैंने अपनी टाँगे खोली, तो वो अपने सारे कपड़े उतार कर मेरी टाँगों के बीच में आ गया, मैं लेटी रही, उसने खुद ही अपना लण्ड मेरी चूत पे रखा और अंदर पेल दिया।
थोड़ी सी चुदाई के बाद मुझे भी मज़ा आने लगा, मैंने उसे बाहों में भर लिया, उसने मेरा ब्लाउज़ और ब्रा खोल दिये और मेरे स्तनों पे टूट पड़ा। मैंने भी पूरे मज़े ले लेकर उसको संभोग का सुख दिया।

अभी हम कर ही रहे थे कि दरवाजे से राकेश भी बिल्कुल नंग धड़ंग, लण्ड अकड़ाये अंदर आ गया।

मैं एकदम से हैरान रह गई और उठ कर बैठने लगी तो महेश बोला- भाभी बुरा मन मानना, हम दोनों भाई जो भी करते हैं, एक साथ ही करते हैं।

अब मैं बिल्कुल नंगी, अपने एक देवर का लण्ड चूत में लिए लेटी, दूसरे को क्या मना करती, वो भी पास आया और अपना लण्ड चुपचाप मेरे हाथ में पकड़ा कर मेरे स्तनों से खेलने लगा।

जब मेरी तरफ से कोई विरोध न हुआ तो वो उठ कर मेरी छतियों पे बैठ गया और अपना लण्ड उसने मेरे मुँह में घुसा दिया, जिसे मैंने चूसना शुरू कर दिया।

अब मेरे चारों होंठों में लण्ड घुसे थे, एक लण्ड ऊपर के होंठों में और एक लण्ड नीचे के होंठों में।

मैं दोहरी चुदाई का मज़ा ले रही थी।

महेश बोला- बस भाभी, मेरा होने वाला है, कहाँ छुड़वाऊँ?

मैंने कहा- अंदर ही चलने दे…

फिर क्या था, एक मिनट बाद मेरी चूत उसके वीर्य से भरी पड़ी थी।

मगर बात यहीं खत्म नहीं होती, महेश के झड़ने के बाद, राकेश ने अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया, 15 मिनट वो मुझे चोदता रहा॰ और यह ऐसा सिलसिला शुरू हुआ के रोज़ मैं 2-2, 3-3 बार चुदने लगी।

शुरू में मुझे बड़ा अजीब लगा, मगर जल्द ही मुझे इसकी आदत पड़ गई और सच कहूँ मुझे मज़ा आने लगा।

अब घर में तीन भाई थे और बारी बारी तीनों मेरी जम के चुदाई कर रहे थे।
मगर अभी और बड़ी समस्या आनी बाकी थी और वो समस्या आई मेरी माँ के रूप में।

मेरी शादी के करीब दो महीने बाद माँ मुझसे मिलने आई।
माँ मुझसे केवल 24 साल बड़ी थी, वो अगर मैं 22 की थी, तो माँ 46 की थी।
माँ खूबसूरत थी, जवान थी।
शाम को चाचाजी आए और अपनी आदत के मुताबिक पी के टुन्न हो कर आए।
आते समय मेरे लिए जलेबी और समोसा लाये।

मैंने अभी परोस ही रही थी कि माँ भी वहीं आ गई, उन्हें देखते ही चाचाजी उठ कर खड़े हो गए और नमस्ते नमस्ते कहते हुये माँ की तरफ बढ़े, मुझे लगा कहीं माँ को गले ही न लगा लें, मगर उन्होंने सिर्फ हाथ जोड़ कर अभिवादन किया और बाद में माँ से हाथ भी मिला लिया।

माँ ने भी बड़ी गर्मजोशी से उनसे हाथ मिलाया।

खैर उसके बाद तो अक्सर चाचाजी माँ के आस पास किसी न किसी बहाने से मँडराते रहते।
माँ ने मुझे बताया कि शादी वाले दिन भी चाचाजी ने शराब के नशे में माँ के चूतड़ पे चिकोटी काट ली थी।
मतलब साफ था कि चाचाजी माँ पे लट्टू हुये पड़े थे, वो रोज़ कुछ न कुछ लाते और अपने हाथों से डाल डाल कर माँ को देते।
माँ भी उनके सत्कार का उचित जवाब देती, मगर मुझे न जाने क्यों लगने लगा कि इन दोनों में कोई और ही खिचड़ी पक रही है।

जितने दिन माँ मेरे पास रही, उतने दिन वो रात को मेरे पास ही सोती थी, इस वजह से न तो सुरेश से मैं मिल प रही थी और राकेश और महेश से कहाँ मिलना होना था।
मेरी अपनी चूत में आग लगी पड़ी थी, मगर मुझे लग रहा था, माँ की हालत भी मेरी जैसे हुई पड़ी है।

खैर मैंने जैसे तैसे बहाना करके माँ को विदा किया कि लड़की के घर इतने दिन रहना ठीक नहीं।

माँ गई तो रात को सुरेश ने मुझे तीन बार ठोका मगर मेरा दिल अभी नहीं भर पाया था, सुबह सुरेश के जाने के बाद महेश आ गया और उसने मुझे ठोका, उसके बाद राकेश आया उसने मुझे दो बार ठोका, तब जा कर मेरी तसल्ली हुई।

माँ को गए एक हफ्ता ही हुआ था कि वो फिर से वापिस आ गई।
मुझे बड़ी हैरानी हुई तो माँ बोली- अकेले घर में दिल नहीं लगता।
खैर रात को हम दोनों एक साथ ही सो गई।

करीब ढाई तीन बजे मेरी आँख खुली, मैं उठ कर पेशाब करने चली गई, जब वापिस आई तो देखा, माँ बिस्तर पर नहीं है।

मुझे बड़ी हैरानी हुई, मैं उठ कर बाकी घर में देखने गई, तीनों भाई अपने कमरे में सो रहे थे, बाबूजी अपने कमरे में सो रहे थे, चाचाजी का कमरा बंद था मगर लाईट जल रही थी।

मैंने बाहर से जाकर खिड़की में से देखा, मेरे तो होश ही उड़ गए, माँ चाचाजी के साथ बिस्तर में लेटी थी, दोनों ने चादर ले रखी थी, सिर्फ उनके चेहरे और कंधे नज़र आ रहे थे, माँ नीचे लेटी थी, उसके गोरे गोरे भरे हुए कंधे और थोड़े थोड़े स्तन भी दिख रहे थे, चाचाजी ऊपर लेटे थे, उनकी आधी नंगी पीठ दिख रही थी।
दोनों आपस में हंस हंस कर कुछ बातें कर रहे थे और बीच बीच में एक दूसरे को चूम भी रहे थे।

फिर चाचाजी माँ के ऊपर बिल्कुल सीधे हो गए, माँ ने अपना एक हाथ चादर के अंदर डाला, उनकी हरकत से मैं समझ गई थी कि माँ ने चाचाजी का लण्ड अपनी चूत पे सेट किया था।

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चाचाजी ने हल्के से धक्के से अपना लण्ड अंदर ठेल दिया।

मेरा तो गुस्सा सातवें आसमान पे चढ़ गया, मैंने सोचा अभी जाकर इनको जगाती हूँ, और माँ की और चाचाजी की करतूत बताती हूँ।
मगर फिर मैंने सोचा इसमें तो मेरी माँ की ही बदनामी है और मेरी भी।
मैं चुप करके बैठ गई।
काफी देर मैं बैठी रोती रही, सोचती रही।
फिर दिल में खयाल आया, माँ भी तो एक इंसान है, क्या उसका दिल नहीं चाहता होगा, अगर उसे किसी से प्यार हो गया तो इसमें बुराई भी क्या है।

मैं उठी और मैंने फिर कमरे में देखा, अब चाचाजी ने पूरी चादर उतार दी थी।
मैं उन दोनों को बिल्कुल नंगी हालत में सेक्स करते हुए देख रही थी।
माँ ने अपनी गोरी गोरी टाँगें ऊपर हवा में उठा रखी थी और चाचाजी धीरे धीरे आगे पीछे होकर चुदाई कर रहे थे।

बेशक चाचाजी 50 की उम्र पार कर चुके थे मगर वो बड़े जोश से और मज़े ले ले कर माँ से सेक्स कर रहे थे।

मैं देखती रही, मैं भी तो इंसान हूँ, देखते देखते मेरी चूत ने भी पानी छोड़ना शुरू कर दिया।

मैंने अपनी लोअर में हाथ डाला और अपनी चूत का दाना मसलने लगी।

उधर माँ चुद रही थी और इधर बाहर मैं अपनी ही माँ की चुदाई देख कर अपनी चूत सहला रही थी।

मैंने देखा माँ नीचे से माँ ने चाचाजी को अपने सीने से लगा लिया, मतलब माँ झड़ने वाली थी, फिर माँ ने अपना सर ऊपर उठाया और अपनी जीभ निकाल कर चाचाजी के मुँह में दे दी और नीचे से ज़ोर ज़ोर से कमर उचकाने लगी।

मैं आज पहली बार माँ को इतना वाइल्ड होते देखा था, जैसे वो चाचाजी को खा जाना चाहती हो, माँ ने अपनी कमर ऊपर हवा में ही उठा रखी थी, फिर माँ धड़ाम से नीचे गिर पड़ी।

उसके चेहरे पे बड़ी संतुष्टि झलक रही थी। चाचाजी मुस्कुरा रहे थे।

फिर चाचाजी ने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी क्योंकि मैच वो जीत चुके थे, अब तो बस मैच खत्म ही करना था।

थोड़ी देर तेज़ तेज़ चुदाई के बाद चाचाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाला और वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ दी।

उनका वीर्य माँ के मुँह तक धार मार गया, मैं चुपके उठ कर आ गई और अपने कमरे में सो गई।
थोड़ी देर बाद माँ भी आ गई।

सुबह पहले मैंने सोचा के माँ से बात करूँ मगर, क्या बात करूँ, और कैसे करूँ, यही समझ नहीं आ रहा था।

फिर मैंने एक स्कीम सोची, मैंने रात को जो दूध माँ और चाचाजी को दिया, उसमे नींद की गोलियाँ मिला दी।
मगर मोहब्बत करने वालों को नींद कहाँ आती है, करीब डेढ़ बजे जब मैं उठी तो देखा के माँ अपने बिस्तर पे नहीं थी।

मैं फिर बाहर जा कर खिड़की से देखा, आज चाचाजी नीचे लेटे थे और माँ उनके ऊपर।
दोनों प्रेमी आपस में बातें करते एक दूसरे को चूम चाट रहे थे।

मैं उन्हें छोड़ कर अपने कमरे में आ गई और सो गई।

सुबह जब मैं उठी तो माँ अपने बिस्तर पे नहीं थी।

मैंने चाय बनाई और दो कप लेकर चाचाजी के कमरे में चली गई।

दरवाजा खटखटाया तो नींद में ही चाचाजी उठे और बेख्याली में ही दरवाजा खोल गए वो केवल एक चड्डी पहने थे।

जब मैं कमरे में दाखिल हुई तो देखा, माँ की नाईटी, ब्रा और चाचाजी के कपड़े वगैरह सब इधर उधर बिखरे पड़े हैं।

मैंने माँ को जगाया, माँ उठी और मुझे देख कर चौंक गई।

अब माँ मेरे सामने कपड़े भी नहीं पहन सकती थी क्योंकि कपड़े तो कमरे में बिखरे पड़े थे।
माँ चादर में अपने आप को ढकने की कोशिश कर रही थी मगर उनके नंगे बदन की शेप तो फिर भी चादर में से भी दिख रही थी।

‘वो रात मुझे बड़ी बेचैनी सी हो रही थी तो मैं बाहर घूमने आई थी मगर पता नहीं क्यों मुझे चक्कर सा आ गया और मैं गिर पड़ी, तुम्हारे चाचाजी ने देख लिया और मुझे संभाल के यहाँ ले आए और…’ माँ अपनी सफाई दे रही थी मगर मैं संयत रही, मैं जानती थी कि ये सब झूठे बहाने हैं, आज ऐसे लग रहा था जैसे मैं माँ हूँ और वो मेरी बेटी, जो मुझे अपनी गलती का स्पष्टीकरण दे रही हो।

मैंने माँ से पूछा- कब से चल रहा है ये सब?

फिर माँ ने खुद ही बता दिया कि शादी के एक हफ्ते बाद ही चाचाजी हमारे घर आए थे और उन्होंने बहुत शराब पी रखी थी, शराब के नशे में ही उन्होंने खुल्लम खुल्ला अपने प्यार का इज़हार कर दिया, मैंने कुछ नहीं कहा, मेरी चुप्पी को इन्होंने इकरार समझ लिया और मुझे बाहों में भर लिया, मैंने आज तक किसी मर्द को अपने पास फटकने नहीं दिया, मगर पता नहीं क्यों मैं इन्हें इंकार नहीं कर पाई, ये आगे बढ़ते गए और मैं न चाहते हुये भी इनकी बदतमीजी बर्दाश्त करती रही। और आगे बढ़ते बढ़ते इन्होंने मेरी साड़ी खींच दी, मुझे बेड पे पटका और मेरे ऊपर चढ़ गए, मैं नीचे लेटी इन्हे वो सब करने देती रही जो शायद मैंने कभी किसी के बारे में सोचा भी नहीं था।
इन्होंने मेरे सारे कपड़े तार-तार कर दिये, और बिना मेरी कोई भी बात सुने मेरे सामने ही अपने सारे कपड़े भी उतार दिये। तेरे पिता के जाने के बाद उस दिन मैंने पहली बार फिर से किसी मर्द का तना हुआ लिंग देखा था। मैं तो बस देखते ही रह गई, और इन्होंने मेरी टाँगे उठाई और अपना लिंग मेरे अंदर डाल दिया। मैं तैयार नहीं थी सो थोड़ा सा दर्द हुआ, मगर उसके बाद तो इन्होंने मुझे ज़िंदगी का भरपूर सुख दिया, जिसका मैं सालों से इंतज़ार कर रही थी।
और तब से हम दोनों के संबंध हैं। ये तो अक्सर हमारे घर आते जाते रहते हैं, 3-4 बार तो ये रात भी गुज़ार के गए हैं। ये तो मुझसे शादी भी करना चाहते हैं, मगर मैंने मना कर दिया।

खैर अब जब मेरी और माँ की बात आपस में पूरी तरह से खुल गई तो मैंने भी माँ को बता दिया के मैं सुरेश के साथ साथ उसके दोनों भाइयों से भी सेक्स करती हूँ।

माँ बोली- मैं जानती हूँ इन्होंने बताया था, एक दिन तुम दोनों के साथ लगी थी दोपहर को जब ये किसी काम से तुम्हारे कमरे में आए थे, जब राकेश तुम्हें चोद रहा था और महेश ने तेरे मुँह में दे रखा था।

हम दोनों हंस पड़ी।

फिर माँ ने कहा- मैं तेरे चाचाजी से शादी करना चाहती हूँ।

मैं तो सुन के हैरान ही रह गई, बोली- माँ अगर तुम चाचाजी से शादी कर लोगी, तो मेरा और सुरेश का क्या रिश्ता बनेगा, सोचा है आपने? आप मेरी माँ के साथ मेरी चाची सास भी बन जाएंगी, यह नहीं हो सकता।

मगर माँ तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी, बोली- मुझे नहीं पता अब मैं इनके बिना नहीं रह सकती, जैसे मर्ज़ी कर, अगर तुम न मानी तो हम दोनों भाग के शादी कर लेंगे।

मैं मन ही मन सोच रही थी कि ‘हे भगवान मैं यह कहाँ आ फंसी, मैं अपनी तो इज्ज़त बचा न सकी इन लोगों ने तो मेरी माँ को भी नहीं बख्शा।’

अब आप जो लोग ये कहानी पढ़ रहे हो इसका हल बताओ, क्या माँ को शादी करनी चाहिए।
अगर वो शादी कर लेती हैं तो हमारा रिश्ता खराब होता है और अगर बिना शादी के ही चाचाजी से संबंध बना कर रखती हैं तो बदनामी होती है।
आपका क्या विचार है?
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