मेरे पति के दोस्त ने मेरी गांड मारी मेरे ही घर में! वो मेरी चूत दो तीन बार चोद चुके थे. मेरी प्यास मिट चुकी थी। मगर उनका लंड था कि रुकने को तैयार नहीं था।
दोस्तो, मैं चुदक्कड़ अंजलि एक बार फिर से अपनी नयी कहानी के अगले भाग के साथ आई हूं।
कहानी के दूसरे भाग
मैं अपने पति के दोस्त से चुद गयी
में आपने देखा कि आखिर शादी के 7 महीने के बाद मेरी चूत को वो चुदाई मिली जिसकी प्यास से उसे लगी थी। पीयूष और मैं चुदाई के बाद निढाल हो गए थे।
यह कहानी सुनें.
अब आगे की कहानी कि कैसे मेरे पति के दोस्त ने मेरी गांड मारी:
हम दोनों लगभग 10-15 मिनट तक लेटे रहे और कुछ देर बाद हम दोनों में वासना की आग फिर से जाग उठी।
पीयूष जी बेड पर सीधे लेट गए और मुझे अपने लंड के पास खींच कर ले आये।
मैं उनका इशारा समझ चुकी थी।
बिना कुछ बोले मैंने उनके लंड को अपने हाथ में लिया और उसकी खाल ऊपर से हटाई और टोपा बाहर निकाला और उनके लंड को दोबारा से मेरे होंठों की कलियों का स्पर्श देते हुए लंड के टोपे को मुँह में लेकर चूसने लगी।
मस्ती में चूसती हुई मैं उनके लंड को मेरे होंठों का सुख प्राप्त करवाने लगी।
पीयूष जी भी इस वक़्त लंड चुसवाने में मदहोश थे। शायद ही किसी ने उनका लंड इतनी अच्छी तरह चूसा हो।
मैं उनका पूरा लंड अपने गले के आख़िरी छोर तक ले जाकर चूस रही थी और उन्हें मजे करवा रही थी।
10 मिनट लंड चुसवाने के बाद पीयूष जी खड़े हो गए और मुझे उन्होंने घोड़ी बनने को कहा।
वो मेरे पीछे आ गए और मेरी चूत के छेद पर थोड़ा सा मक्खन लगाया और अपने होंठों से मेरी चूत को एक बार चूसा और उस पर लगा हुआ मक्खन चाट लिया।
उन्होंने अपना लंड मेरी चूत के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का लगाया और पूरा लंड एक ही धक्के में मेरी चूत के अंदर उतार दिया।
मेरे हाथों का बैलेंस थोड़ा सा ख़राब हुआ क्योंकि मुझे नहीं पता था पीयूष जी इतनी तेज़ धक्का लगाएंगे।
अब उन्होंने अपने लंड से धक्के लगाने शुरू कर दिए।
मेरी चूत की दूसरे राउंड की चुदाई शुरू हो चुकी थी।
पीयूष जी धक्के लगा रहे थे और मैं चीखे जा रही थी- आह … आह … आह … आह्ह।
वो मेरी चूत की धमाकेदार चुदाई कर रहे थे और मेरी गांड पर एक हाथ से थप्पड़ भी मार रहे थे जो मुझे बहुत पसंद है।
दूसरे हाथ से उन्होंने मेरे बाल पकड़े हुए थे। मेरे बदन और चूत दोनों की लगाम उनके हाथ में ही थी।
मैं इस वक़्त उनकी कुतिया बनी हुई थी और मजेदार चुदाई का मजा ले रही थी।
उनके जोरदार धक्कों की वजह से मेरा मंगल सूत्र हवा में झूल रहा था।
मैं उसे उतारना चाहती थी मगर इस वक़्त मैं पीयूष जी की कुतिया बनी हुई थी।
मेरे दोनों हाथों पर मेरे बदन का पूरा वजन था और पीछे से ताबड़तोड़ धक्के मेरी चूत में लग रहे थे इसलिए मैं उसे उतार नहीं सकती थी।
मेरा मंगलसूत्र हवा में वैसे ही झूलता रहा और मैं पीयूष जी के लंड के झटकों में फिर से खो गई।
मैंने अपनी सारी शर्म उतार दी थी। अपनी शादी की निशानी को गले में डाले हुए किसी गैर मर्द से अपनी चूत की चुदाई करवा रही थी।
मुझे मेरे पति का अब बिल्कुल भी ख्याल नहीं था।
पीछे से लंड के धक्के मेरी चूत के अंदर तक पड़ते जा रहे थे।
मैं फिर से एक बार दोबारा से चूत रस त्यागने के लिए तैयार थी। कुछ ही झटके और झेलने के बाद मैं दोबारा से झड़ गई और निढाल होने लगी।
अब मैं पूरी तरह से थक चुकी थी और मेरा बदन भी पूरी तरह से काँप रहा था।
मेरे हाथ भी काँप रहे थे।
पीयूष जी ने अपने दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ी और धक्के बरकरार रखे।
मस्ती में मैं चुदे जा रही थी। उनके मोटे लंड से ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई खीरा अंदर बाहर हो रहा हो।
इस राउंड में भी मेरी लम्बी चुदाई हो चुकी थी और मैं दिल से खुश थी इस चुदाई के लिए!
आखिर मेरी इज़्ज़त एक अच्छे आदमी के साथ उतरी थी जो कि मुझे मेरे चरम सुख तक ले जाने में सफल रहा था।
पीयूष जी के झटके लगातार जारी थे और 2-3 मिनट बाद उनका जिस्म भी अकड़ने लगा था।
वो बोले- कहां निकालना है?
मैंने कहा- कहीं भी निकाल दो अब तो आप!
पीयूष जी ने बोला- ठीक है।
फिर से वो मुझे चोदने लगे और बोले- बेबी, आज तो मैं तुम्हें अपनी सुहागन बना कर ही रहूँगा।
मैंने कहा- जब आपका लंड मेरी चूत में पहली बार उतरा था मैं तो तभी आपको अपना सुहाग मान चुकी थी।
2-3 मिनट और चोदने के बाद उन्होंने अपना लंड बाहर निकाल लिया और मेरे चेहरे के सामने आ गए।
मैं अभी भी घोड़ी ही बनी हुई थी।
पीयूष जी अपना लंड अपने हाथों से हिलाने लगे और मैं भी अपनी जीभ निकाल कर तैयार थी।
वो आहें भरते हुए झड़ने को तैयार हुए और उन्होंने अपने लंड से एक बार दोबारा से अमृत से भरा हुआ जाम मेरी मांग में छलका दिया और मेरी मांग को अपने वीर्य की बूंदों से भर दिया।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि सच में मेरी मांग दोबारा से भरी गई हो।
मैं भी नयी नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रही थी।
हम दोनों बिस्तर पर लेट गए।
उन्होंने मुझे अपने मजबूत बदन में समेटा हुआ था।
मेरी अब भरपूर चुदाई हो चुकी थी और इस चुदाई से मैं खुश थी।
मैंने पीयूष जी को थैंक्स बोला।
वो बोले- थैंक्स की जरुरत अभी नहीं है; अभी मैं तुम्हें और चोदूंगा।
उनकी ये बात सुन कर मैं थोड़ा शरमाई भी और अचम्भित भी थी।
ये मुझे और चोदना चाहते थे।
कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे।
फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों से अलग किया और मेरी दोनों टाँगें खोल कर मेरी चूत के पास घुटनों के बल बैठ गए।
मेरी चूत पर दोबारा से मक्खन लगाया और अपनी जीभ को मेरी चूत पर रख कर मेरी चूत को चूसने लगे।
मैं सिसकारियाँ लेने लगी- आह आह … आह्ह आह्ह।
अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डालते हुए वो मेरी चूत को चूसने लगे।
मैं भी दोबारा से उनका साथ देने लगी और उनकी गर्दन को पकड़ कर मेरी चूत के अंदर दबाने लगी।
लगभग 10 मिनट तक पीयूष जी ने मेरी चूत को चूसा और मैं दोबारा से उनके लंड से चुदने के लिए बेताब हो रही थी। उन्होंने अपनी जीभ मेरी चूत में से निकाल ली।
वो बेड पर सीधे लेट गए और अपनी गर्दन के नीचे एक तकिया लगा लिया।
उनका लंड बिना चूसे ही हवा में उफान मार रहा था और मेरी फिर से चुदाई करने के लिए बेक़रार हो रहा था।
अब वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने पेट पर ले आये और मुझसे लंड पर बैठने को कहा।
मैंने भी एक अच्छी औरत होने का फ़र्ज़ अदा करते हुए उनके लंड को अपने हाथ में लिया और लंड के टोपे पर से खाल हटाई और धीरे धीरे उनके लंड पर बैठने लगी।
देखते देखते ही उनका लंड मेरी चूत मे फिर से एक बार और समा गया।
पीयूष जी का खीरे जैसा लंड मेरी चूत के अंदर था।
उन्होंने मुझे उछलने के लिए कहा।
मैं भी उनकी बात मान कर उनके लंड पर बैठ कर उछलने लगी। मैं उनके लंड पर जोरदार तरीके से उछल रही थी और आहें भर रही थी।
ये हमारा तीसरा राउंड था।
मन ही मन मैं सोच रही थी कि अच्छा ही हुआ जो संजीव ने दांव पर लगा दिया मुझे! कल तक मैं चुदाई के लिए तड़प रही थी; आज मेरे पास एक दमदार लंड है।
अब मुझे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। अब मैं इससे ही अपनी सेवा करवाया करुँगी।
सोचते सोचते मैं जोश में आ गई और पीयूष जी के लंड पर जोरों से उछलने लगी।
उनको भी पूरा मजा आ रहा था।
मेरे बदन की उछाल से आनंद की सीमा एक अलग ही मुकाम हासिल कर चुकी थी।
मैं पीयूष जी के लंड पर बहुत अच्छे से उछल रही थी। लंड के झटके मुझे अंदर तक महसूस हो रहे थे।
लंड पर उछलते हुए मुझे आधा घंटा हो गया था। मेरे बूब्स हवा में तरकश कर चुके थे। मेरे भारी बूब्स हवा में जोर जोर से उछल रहे थे जैसे कि मेरे बूब्स में भरा हुआ दूध भी हवा में दूध की थैलियों की तरह उछल रहा था।
लंड पर लगतार उछलने की वजह से मेरा मंगल सूत्र और मेरे चूड़ा हवा में उछल रहा था। लंड पर उछलने की वजह से चूड़े में से खन खन की आवाज आ रही थी।
मैंने लंड पर उछलते उछलते ही अपने मंगलसूत्र को उतार कर नीचे कार्पेट पर गिरा दिया और अपने दोनों हाथों से चूड़ा उतार कर नीचे कार्पेट पर गिरा दिया।
मैं वो सब कुछ उतार फेंकना चाहती थी जो मुझे इस वक़्त चुदते हुए तंग कर रहा था।
अब मैं आहें भरते हुए फिर से लंड पर कूदने लगी- आह्ह आह्हह … आह्ह पीयूष … आह्ह आहाह।
शेरू मुझे लंड पर उछलते हुए देख रहा था और हांफ रहा था।
शायद वो भी मेरी मस्त जवानी का मजा ले रहा था।
मुझे चुदते हुए 25 मिनट से ज्यादा हो चुके थे। हम दोनों अपनी चरम सीमा पर थे और झड़ने को तैयार थे।
कुछ पल उछलने के बाद हम दोनों साथ में ही झड़ने लगे।
मेरा अमृत सारा उनके लंड पर ही बह गया और उनका अमृत मेरी चूत में उतर गया।
अब मैं असली मायने में उनकी एक रखैल पत्नी बन चुकी थी क्योंकि उन्होंने मेरी मांग और मेरी चूत दोनों को अपने अमृत बूंदों से भर दिया था।
मैं पीयूष जी के लंड पर बैठ गई और मैं उनके सीने पर ही लेट गई। मैं अब और चुदने की हालत में नहीं थी।
लगभग 20 मिनट हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे।
पीयूष जी बोले- अंजलि फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाओ।
मैं शॉक में थी और मेरा चुदने का अब मन नहीं था … पर मैं फिर से चुदने के लिए बिना कुछ बोले राज़ी हो गई क्योंकि मुझे मालूम था जब संजीव मुझे चोदते हुए अधूरा छोड़ते थे तो मुझे कितना बुरा लगता था और कितना दुख होता था।
वो चीज मैं पीयूष जी के साथ नहीं करना चाहती थी इसलिए ख़ुशी ख़ुशी दोबारा से चुदने के लिए राज़ी हो गई।
उन्होंने मुझे अपनी बांहों से अलग किया और मुझे अपने ऊपर से नीचे उतार दिया और बोले- चूसो।
मुझे भी काफ़ी अच्छा लग रहा था।
मैंने चूस चूसकर उनके लंड को लाल कर दिया था और उनका लंड मेरी चुदाई करने के लिए फिर से तैयार हो गया था। मैंने 10 मिनट लगभग उनका लंड चूसा।
पीयूष जी ने मुझे बेड पर लेटा दिया और खुद बेड से उतरकर अपनी टाई, बेल्ट और अपनी पैंट से रुमाल निकाल कर बेड पर ले आये।
ये देखकर मैंने हंसते हुए पूछा- ये क्या कर रहे हो आप?
वो बोले- बस देखती रहो तुम!
उन्होंने मेरी दोनों टांगें पकड़ी और अपनी बेल्ट से बांध दी।
फिर अपनी टाई से मेरे दोनों हाथ बांध दिए और मेरा मुँह अपने हाथ से भींचते हुए रुमाल को मेरे मुँह में अंदर तक डाल दिया।
मुझे घुटनों और मेरे हाथ की कुहनियों के बल फिर से एक बार घोड़ी बना दिया।
मैं फिर दोबारा से पीयूष जी की कुतिया बन चुकी थी।
मेरी गर्दन पूरी नीचे झुकी हुई थी।
वो मेरे पीछे आ गए और अपनी उंगलियों में मक्खन लेकर मेरी गांड के छेद पर लगाया।
मैं समझ गई पीयूष जी अब मेरी गांड मारना चाहते थे पर मैं घबरा रही थी क्योंकि मैंने आजतक गांड नहीं मरवाई थी।
मेरे दोनों हाथ और पैर बंधे हुए थे और मुँह में रुमाल था; मैं कुछ बोल भी नहीं सकती थी।
मैंने अपनी गांड हिलाते हुए उन्हें रुकने का इशारा किया मगर वो नहीं रुके।
उन्होंने मेरी गांड पर जोरदार 3 थप्पड़ पर मारे जिससे मुझे बहुत पीड़ा हुई और मैंने अपनी गांड फिर से सीधी कर ली ताकि और थप्पड़ ना पड़ें।
पीयूष जी ने अपनी जीभ मेरी गांड के छेद पर रखी और उसे चाटने लगे.
वो मेरी गांड के छेद को बहुत अच्छे से चाट रहे थे।
मैं डर के माहौल में गांड चटाई का मजा ले रही थी।
5 मिनट मेरी गांड के छेद को चाटने के बाद पीयूष जी घुटनों के बल बैठ गए।
मैं इस वक़्त घोड़ी बनी हुई थी।
पीयूष जी ने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रखा।
मैं बहुत घबरा रही थी और मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि यह मेरी पहली बार गांड की चुदाई होने जा रही थी, वो भी खीरे जैसे लंड से!
मेरी गांड का छेद पहले से ही काफ़ी छोटा था जिसे पीयूष जी भांप गए थे।
उन्होंने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रख कर एक धीरे से धक्का लगाया; उनका थोड़ा सा लंड मेरी गांड में उतर गया।
रुमाल फंसा होने की वजह से मैं चीख भी नहीं पायी पर मेरी आँखों से आंसू आ गए।
पीयूष जी ने धीरे धीरे अपना पूरा लंड मेरी गांड में डाल दिया।
मेरी गांड फट गई थी और खून निकल आया जो मैंने बाद में देखा।
वो अपना लंड मेरी गांड में डालकर रुक गए और मेरे ऊपर ही लेट गए।
हम दोनों लेट गए। मेरी गांड में पीयूष जी का लंड था और पीयूष जी मेरे ऊपर!
कुछ देर पीयूष जी ऐसे ही लेटे रहे और फिर बोले- अब शुरू करें?
मेरी गांड में दर्द हो रहा था। मैं जल्द से जल्द लंड बाहर निकलवाना चाहती थी। इसलिए दर्द में भी गांड मरवाने के लिए राज़ी हो गई।
उन्होंने मेरी गांड में धक्के लगाने शुरू कर दिए।
मुझे दर्द हो रहा था। मैं दर्द से कराह रही थी और पीयूष जी पीछे से धक्के दिए जा रहे थे।
मेरी गांड में से अब खून आना बंद हो चुका था और मैं लगतार गांड में मोटे खीरे जैसे लंड के झटके झेल रही थी।
पीयूष जी मेरी गांड ताबड़तोड़ मार रहे थे। अब मैं भी उन झटकों से रूबरू हो चुकी थी और दर्द भी सहन करने लायक हो गया था।
शायद मेरी गांड ने पहचान लिया था कि वो उसके यार का लंड है।
मेरे दोनों हाथ और पैर बंधे हुए थे मानो किसी कुतिया की तरह पीछे से लंड के धक्के मेरी गांड में लग रहे थे।
मैं दोनों हाथों से बेडशीट को पकड़ कर खींच रही थी।
अब मैं भी अपनी गांड को आगे पीछे कर पीयूष जी का साथ देते हुए गांड मरवा रही थी।
वो भी मजे लेकर मुझे चोदे जा रहे थे और मेरी गांड पर अपने हाथों से जोरदार थप्पड़ों की बारिश कर रहे थे जो कि मुझे बहुत ही मन मोहक अहसास दे रहा था।
मैं किसी कुतिया की तरह अपनी गांड अपने नए यार से मरवा रही थी।
मुझे गांड मरवाते हुए शायद आधा घंटा हो चुका था।
पीयूष जी के लगातार गांड मारने से और मेरे मुँह में रुमाल फंसा होने की वजह से मुझे सांस लेने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी।
चीख भी नहीं पा रही थी मैं!
पीयूष जी ने एक धक्का और मेरी गांड में लगाया और मुझे अपनी गोद में भर लिया।
फिर खुद बेड से उठ कर अपने पैर बेड से नीचे लटका लिए और बेड के किनारे बैठ गए।
पीयूष जी ने रुमाल मेरे मुँह से निकाल दिया और मुझे थोड़ी सांस में सांस आयी। मगर अभी भी मेरे हाथ और पैर बेल्ट और टाई से बंधे हुए थे। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी गांड के नीचे रखे और उसे सहलाते हुए मेरी गांड को उठा कर अपने लंड पर ऊपर नीचे करना दोबारा से शुरू कर दिया।
मैं चीखने लगी क्योंकि पीयूष जी का लंड अब मेरी गांड के आखिरी छोर तक जा रहा था। मैं उनके लंड पर बैठी हुई थी।
मेरे मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रही थीं।
वो मेरी गांड को लगतार उठाकर चोदे जा रहे थे।
मुझे एक मीठे दर्द की अनुभूति भी हो रही थी और साथ ही साथ मुझे गांड मरवाने में अब मजा भी आ रहा था।
मैं चीखती हुई अपनी गांड उठाकर चुदवाने लगी।
मेरी चीखों को रोकने के लिए पीयूष जी ने अपने होंठ मेरे मेरे होंठों पर रख दिए और उन्हें चूसते हुए मेरी गांड को उठा उठाकर चोदने लगे।
लगभग 10-15 मिनट और चुदाई का मजे लेने के बाद मैंने अब दोबारा से अपना रस निकाल दिया।
वो लगातार चोदे जा रहे थे मुझे और मैं अब बस रुकना चाहती थी।
उनके धक्के अब मेरी सहन शक्ति से ज्यादा हो चुके थे।
पीयूष जी ने अपने लंड की गाड़ी का गियर बदला और मुझे तेजी से चोदने लगे।
काफी देर से मेरी गांड चुदाई हो रही थी।
कुछ देर और चोदने के बाद उनका बदन फिर से अकड़ा और वो अपने लंड से वीर्य की पिचकारी मारते हुए मेरी गांड में ही झड़ गए।
वो मुझे अपनी गोद में वैसे ही लेकर बेड पर लेट गए।
इस दमदार चुदाई से मेरा मन बहुत प्रसन्न था।
पीयूष जी का लंड अभी भी मेरी गांड में ही था।
हम दोनों जोरों से हांफ़ रहे थे और एक दूसरे को देख कर मुस्करा रहे थे।
कसम से इस चुदाई का अहसास हम दोनों के लिए बहुत यादगार होने जा रहा था।
हम दोनों बेड पर ऐसे ही लेटे रहे आधे घंटे तक … उसके बाद पीयूष जी और मैं वाशरूम में गए हम दोनों ने साथ में ही शावर लिया।
वो फिर नंगे ही बेड पर आकर लेट गए।
मैं भी नंगी ही थी।
मैंने अपने रूम से बाहर आकर एक बार नीचे झाँक कर देखा तो संजीव वहीं सोफे पर वैसे के वैसे ही बेहोश पड़े हुए थे।
मैंने हमारे बैडरूम की कुंडी अंदर से लगा ली और वापसी नंगी ही पीयूष जी के साथ आकर लेट गयी।
अब तक शेरू सो चुका था।
हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए थे।
पीयूष जी मेरी पीठ के पीछे थे और इस चुदाई की खुशबू से हम दोनों का बदन महक रहा था।
उनका लंड फिर से खड़ा होने को था जो कि मुझे कम्बल के अंदर मेरी चूत पर महसूस हो रहा था।
उन्होंने अपना लंड मेरी चूत में दोबारा डालना चाहा तो मैंने बोला- क्या कर रहे हो आप?
वो बोले- कुछ नहीं।
फिर उन्होंने दो मिनट रुक कर फिर से अपना लंड मेरी चूत में हल्का सा डाल ही दिया।
मेरी गांड मारी कहानी पर अपनी राय देना न भूलें।
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गांड मारी कहानी का अगला भाग: मेरे पति मुझे जुए में हार गए- 4