मेरे लण्ड का अनोखा शोषण-1

नमस्कार दोस्तो, मैं दीपक श्रेष्ठ, आप सब सुधि पाठकों के लिए मेरे जीवन में.. मेरे साथ घटित सबसे पहली और अनोखी घटना लेकर आया हूँ, जिसे पढ़ कर आप भी सोच में पड़ जायेंगे कि क्या सचमुच में ऐसा हो सकता है।

अब तक आप लोगों ने यही सुना होगा कि देह शोषण सिर्फ लड़कियों का ही होता है, मगर क्या आपने कभी किसी लड़के का देह शोषण होते सुना है.. नहीं ना..

जी हाँ.. ऐसा हुआ है और वो भी मेरे साथ…

यह एक बिल्कुल ही सच्ची घटना है.. जिसे मैं नहीं चाहते हुऐ भी आप लोगों के समक्ष विवशता पूर्वक लिखने को मजबूर हूँ क्योंकि मैं अन्तर्वासना का नियमित तो नहीं.. मगर अक्सर फुर्सत के क्षणों में पढ़ने वाला पाठक हूँ और मैं जब भी पढ़ने बैठता हूँ तो 5-6 कहानियाँ एक बार में पढ़ जाता हूँ।

अब तक मै सैकड़ों कहानियाँ पढ़ चुका हूँ। हालाँकि मुझे सिर्फ कहानियों को पढ़ कर मजे लेने का ही शौक है और नित्य नई-नई लड़कियों को चोदने का पुराना शौकीन हूँ। मगर इतना समय नहीं मिलता है कि मैं अपनी चुदाई की कहानियों को लिख कर आप तक पहुँचा सकूँ।

वैसे मैंने अब तक जितनी भी कहानियाँ पढ़ी हैं.. उनमें से 25% को छोड़ कर बाकी सभी मनगढ़त कहानियाँ लगी हैं।
मगर उनमें से कुछेक कहानियों ने मुझे इतना प्रभावित किया है कि मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और मैं भी अपने उन तमाम चुदाई के यादगार पलों में से एक अनमोल और जीवन की पहली आपबीती आपके सामने लाने को विवश हो गया हूँ।

खैर अब मैं आपको ज्यादा नहीं पकाते हुए मुद्दे की बात पर आता हूँ…

तो आप अब तक मेरा नाम जान ही चुके हैं, मेरे बारे में थोड़ा और जान लीजिए तो कहानी पढ़ने में काफी मजा आएगा।

मैं देश के चार स्तम्भों में से एक स्तम्भ के साथ कार्यरत हूँ। इससे आपने अंदाजा लगा ही लिया होगा कि मैं क्या कार्य करता हूँ।
मैं 28 साल का गोरा 5’7″ लम्बा, एक स्मार्ट युवक हूँ और मेरा लण्ड अन्य फेंकूबाजों की तरह 9 इंच व 10 इंच लम्बा तो नहीं औसतन 6 इंच लम्बा व 3 इंच मोटा है और लोहे के रॉड समान एकदम कड़कदार है।
साथ ही शारीरिक क्षमता इतनी कि किसी भी लड़की या औरत को घड़ी में समय देख कर डे़ढ़ से दो घंटे तक रगड़ कर चोद सकता हूँ और उसकी चूत का भुर्ता बना सकता हूँ।

मैंने अब तक जिन लड़कियों को चोदा है.. वो आज तक मेरी चुदाई की कायल हैं। अगर विश्वास न हो तो कोई भी लड़की मुझे आजमा सकती है और मुझे ईमेल कर अपनी चुदाई करा सकती है.. वो भी बिल्कुल मुफ्त…

चलिए अब कहानी पर आते हैं।
इस कहानी में सभी नाम, स्थान और घटनाएँ वास्तविक हैं।

यह घटना तब की है जब मैं 12वीं में था और झारखण्ड में विनोबा भावे यूनिवर्सिटी के ही एक अच्छे कालेज से साइंस (बायो सब्जेक्ट) से पढ़ाई कर रहा था।
उन दिनों हमारे कालेज में गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं और मैं अपने घर, जो बिहार के एक गाँव में है, आया हुआ था।

उन्हीं दिनों मेरे छोटे मामाजी की शादी भी होने वाली थी।
घर पर मैं और मम्मी ही थे तो इसी कारण मुझे ही मम्मी को लेकर मामा जी के घर शादी में जाना पड़ा।

वहाँ पहले से ही काफी रिश्तेदारों और पड़ोसियों कि भीड़ लगी थी जिनमें कई लड़के-लड़कियाँ भी शामिल थे, मगर मेरी आँखें तो किसी और को ही ढूंढ रहीं थीं और जैसे ही मेरी तलाश खत्म हुई तो मेरी बांछें खिल उठीं..
पर मेरी नजरें जहाँ की तहाँ ठहर कर जड़वत रह गईं।
मैंने उसे देखा तो अपलक देखता ही रह गया.. क्योंकि मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या यह वहीं रानी है जिसे मैंने छः साल पहले देखा था..

जी हाँ.. उसका नाम रानी ही था… अब मैं आप लोगों को यहाँ रानी से परिचित कराना चाहूँगा..

वो उम्र में मुझसे 2 साल छोटी.. रंग गोरा, संगमरमरी बदन.. 32-28-34 का फिगर.. क्रिकेट के बॉल के समान कठोर चूचे.. भरी हुई पिछाड़ी.. मोटी-मोटी जाँघें.. रसीले होंठ..
नशीली आँखें… उफ्फ क्या बताऊँ.. साक्षात काम की देवी जैसी.. वह एक कयामत लग रही थी।

वो इस कमसिन उम्र में खड़े-खड़े बड़े बुजुर्गों के लंड से भी रस टपका देने के लिए काफी थी। वैसे गवंई नातों से वो रिश्ते में मेरी मौसी लगती थी।
मगर जब मैं 12 साल की उम्र का था.. तब से लेकर आज तक उसे प्यासी निगाहों से ही देखता आया था और इस घटना के वक्त मैं 18 का था।

लगभग हम उम्र होने के कारण जब भी मैं मामा के घर जाता था.. तो मेरा ज्यादातर समय रानी के घर ही गुजरता था।

दिन भर उसी के साथ खेलता.. शाम को साथ बैठ एक ही रजाई में घुस कर टीवी देखता और जानबूझ कर कभी अपनी कुहनी उसकी चूचियों में रगड़ता तो कभी हथेलियों को उसकी जाँघों पर रख कर सहलाने लगता।

तब वो मुझे तिरछी निगाहों से देख कर रह जाती और जब कॉमेडी सीन आता तो हँसने के बहाने मैं उसे बाँहों में भर लेता.. साथ ही उसकी चूत और गांड पर ऊँगली से सहला कर रगड़ देता।
शायद मेरी इन हरकतों से उसे भी अच्छा लगता था क्योंकि मैं महसूस करता कि मेरे ऐसा करते ही उसके अन्दर सिहरन पैदा हो जाती थी और उसके शरीर के रोयें खड़े हो जाते थे।
इसी कारण वो भी मुझे कुछ नहीं कहती और ऐसा भाव करती जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
फिल्म देखने का बहाना करते-करते मैं उसी के घर सो भी जाता।

मेरे मामा के घर के लोग जानते थे कि मैं टीवी देख कर वहीं सो गया होऊँगा.. इसलिए मुझे कोई बुलाने भी नहीं आता था और ना ही किसी को मेरे ऊपर शक या ऐतराज ही था..
क्योंकि वो तो रिश्ते में मेरी मौसी लगती थी और रात में जब सब सो जाते तो मैं धीरे से उठ कर उसकी खटिया में घुस जाता था। क्योंकि उसके मम्मी-पापा दूसरे कमरे में सोते थे।
सबसे बाहर के कमरे में उसकी दादी तथा गेस्ट-रूम में 2 बिस्तर लगे थे जिसमें एक पर मैं और उसका छोटा भाई व दूसरे पर रानी और उसकी 2 छोटी बहनें सोती थीं।

वो किनारे ही सोया करती थी।

मैं पहले उसकी बगल में खड़ा होकर ही उसे धीरे से चुम्बन करता..
पर जब वो कोई हरकत नहीं करती तो मेरा मनोबल और बढ़ जाता।

तब मैं धीरे से उसे पकड़ कर उसके साथ चिपक कर सो जाता और फिर प्यार से उसकी चूचियों को सहलाता..
गालों और होंठों को आहिस्ता-आहिस्ता चूमता.. चाटता..
और उसके रसीले गुलाबी होंठों को लॉलीपॉप की तरह चूसता और फिर उसके स्कर्ट को धीरे-धीरे ऊपर सरका कर दोनों ही मम्मों को बड़े ही प्यार से हौले-हौले सहलाता और बड़े ही आनन्द के साथ दूधों को पीता।

फिर धीरे-धीरे उसकी पेट और नाभि को सहलाता हुआ अपनी जीभ को उसकी नाभि में लगा कर थिरकाता..
साथ ही पैन्टी में हाथ घुसाते हुए उसकी बिना रोयें सी मखमली चूत को सहलाता हुआ अपनी ऊँगलियों से उसकी छोटी सी झील की गहराईयों को नापता..

उफ्फ.. ऐसे लगता कि अभी अपने प्यारे से फड़फड़ाते बेकाबू लंड को उस गहराई में ‘गच्च’ से उतार दूँ।

मेरे सहलाने से उसकी कुँआरी अनछुई चूत से अविरल कामरस की धारा फूट पड़ती थी..
जिसकी प्रतीक्षा में मैं घंटों से मेहनत करता था। अपनी सफलता और रानी की चुप्पी से मेरी हिम्मत और बढ़ जाती और मैं उसकी पैन्टी को धीरे से उसकी पैरों के बीच से सरका देता।

मेरे ऐसा करते ही वो सोने का नाटक करते हुए ही अपने घुटनों को मोड़ कर टाँगों को और फैला लेती और मैं उस बहते हुए अमृत-रस को बिना क्षण गँवाए ही अपनी जीभ को झरने से बहती चूत पर रख कर पीना शुरू कर देता।

उस कुँआरी चूत से बहते रस की धारा का स्वाद मैं आज तक नहीं भूला हूँ..
गजब का स्वाद…
गजब की नमकीन मिठास..
उसे अपनी जीभ से चूमता.. चाटता.. सहलाता…

उफ्फ… यूँ लगता कि मैं जन्नत की सैर कर रहा हूँ.. मेरा शरीर थर-थर काँपता.. मुझे असीम आनन्द की प्राप्ति होती थी।

दरअसल मैं बचपन से ही जब भी किसी की चूत को सहलाता था और उसकी चूत से अमृत धारा निकलती थी तो अनायास ही मेरा मन उसे पीने को मचलने लगता था और मेरा मुँह अपने आप ही नीचे झुकता चला जाता था।

इस कारण मैं शुरू से ही चूत पीने वाला एक नम्बर का बुरचटा और चुदाई का माहिर खिलाड़ी बन गया हूँ।

इस प्रकार मैं उसकी चूत को चाटता हुआ एक हाथ से अपने कीला समान खड़े लंड को पकड़ कर प्यार से सहलाते हुए मुठियाता और जब चरम की अनुभूति होती तो अपने लण्ड को पकड़ कर रानी की चूत पर टिका देता और मेरे अन्दर का सारा ज्वालामुखी उसकी बुर के ऊपर ही फूट पड़ता।

मैं तृप्ति के सागर में गोते लगाने लगता और फिर सारा वीर्य उसकी चूत पर ही मल कर वापस जाकर अपनी जगह पर सो जाता।

मगर इतना सब होने के बावजूद भी ना वो आँखें खोलती और ना ही उसके मुँह से ‘उँह्ह.. आह्हा’ तक ही निकलता था।

वैसे तो वो सोने में अव्वल थी.. मगर मेरे ख्याल से वो उस वक्त सोने का बहाना करके उस प्राप्त होते असीम मस्ती के अनुभवों को समझने का प्रयत्न करती थी और बेचारा मैं..
रानी की चुदाई के हसीन लम्हों का इंतजार करते-करते मुठ मार-मार कर अपने बीजामृत को यूँ ही बरबाद कर..
अपने बेकाबू लण्ड को दिलासा देता रहता।

इस तरह से मेरा और रानी का यह खेल करीब 2 साल तक चला।

मगर इस बीच कभी उसने मुझे खुल कर अपनी चुदाई कराने का निमंत्रण भी नहीं दिया और ना ही कभी वह मेरे द्वारा किए गई इन हरकतों को जाहिर होने देती थी।
वो हमेशा अन्जान बनी रहती थी.. जैसे कुछ हुआ ही न हो।

इस दौरान मैं काफी बिगड़ गया था और मेरा मन पढ़ाई में भी नहीं लगता था..
जिस कारण मेरे पापा जो कि उस वक्त झारखण्ड के हजारीबाग जिला में एक सरकारी सेवा में कार्यरत थे.. मुझे पढ़ाने के लिए अपने साथ लेकर हजारीबाग चले आए।

फिर आज 6 साल बाद मुझे अपने मामा जी की शादी में शामिल होने के कारण यहाँ आने का मौका मिला।

कहानी के इस भाग को यहाँ रोक रहा हूँ।

अब आगे के भाग में मैं बताऊँगा कि कैसे इसमें मेरा शोषण हुआ.. कब हुआ और शादी में 6 साल बाद रानी से मिलने के उपरान्त क्या घटना घटी और यह अनोखा देह शोषण कैसे कहलाया…? तब तक आप सभी मुझे ढेर सारे मेल कर के बताएँ कि आप लोगों को मेरी यह आपबीती कैसी लग रही है और इसे पढ़ने में आपको कितना मजा आ रहा है?

कहानी आगे जारी रहेगी।

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