वासना की धारा- 5 (Cuckold Wife Sex Kahani)

कॉकोल्ड वाइफ सेक्स कहानी में पढ़ें कि जब वो अपने दोस्त के घर में उसकी बीवी के साथ था तो दोस्त की बीवी ने उसे कैसे सेक्स का शानदार अनुभव दिया.

दोस्तो, मैं समीर हूं धारा और शेखर की कहानी के अंतिम भाग के साथ हाजिर हूं.

कॉकोल्ड वाइफ सेक्स कहानी के चौथे भाग
आधी रात में दोस्त की बीवी के साथ
में आपने देखा कि धारा ने शेखर को अपने घर बुलाया मगर उसकी आंखों पर पट्टी बंधवा दी।

बंद आंखों से ही उन दोनों का मिलाप शुरू हो गया। धारा के बदन की खुशबू और उसका अंदाज शेखर को पागल कर गया।
धीरे धीरे उसकी उंगलियां उसकी चूत तक पहुंच गयीं।

अब आगे कॉकोल्ड वाइफ सेक्स कहानी:

शेखर ने अपने दूसरे हाथ से जो कि अब तक धारा की चूचियों से खेल रहे थे, धीरे से नीचे सरका कर धारा की साड़ी की गाँठ खोलने में लगा दिए.
देखते ही देखते धारा की साड़ी उसके बदन से अलग हो चुकी थी.

इस सबके बीच एक बार फिर से शेखर और धारा के होंठ आपस में मिल चुके थे और दोनों एक दूसरे की जीभ आपस में लड़ा कर इस पल का भरपूर आनंद ले रहे थे.

साड़ी निकालने के बाद शेखर ने धारा की कमर से बंधे साये को भी अलग करने में अपना ध्यान लगा दिया.

यहाँ एक गड़बड़ ये हो गयी थी कि साड़ी और साये की डोरी के ऊपर से हथेली डालने की वजह से साये की गाँठ और भी कस गयी थी.

गाँठ की डोरी मिल तो गयी थी लेकिन एक हाथ से शेखर उसे खोल नहीं पा रहा था.

धारा ने फिर से उसकी परेशानी भाँप ली और खुद ही अपने दोनों हाथों को शेखर के गले से आज़ाद करके अपने साये की गाँठ खोल दी.

गाँठ खुलने के बाद भी साया धारा की कमर से चिपका ही हुआ था क्यूँकि शेखर धारा की चूत के साथ जो मसलने वाली हरकत कर रहा था उसकी वजह से धारा ने अपनी दोनों जाँघों को थोड़ा कस लिया था. यही वजह थी कि साया खुल कर भी नीचे नहीं गिर रहा था.

शायद शेखर को इसका आभास हुआ, उसने खुद को धारा से थोड़ा अलग करते हुए थोड़ा पीछे होकर साये को धारा की कमर से नीचे उतारने की कोशिश की.

इसी बीच धारा ने भी अपनी जाँघों में फँसे हुए साये को निकालने के लिए अपने पैरों को थोड़ा सा फैलाया।
पैर फैलाते ही साया झट से नीचे गिर गया.

मगर इसका एक फ़ायदा शेखर को और हुआ, अब तक शेखर की हथेली में धारा की चूत का आधा हिस्सा था लेकिन धारा के पैर फ़िलाने की वजह से अब उसकी हथेली पूरी तरह से उसकी चूत को अपनी गिरफ़्त में ले चुकी थी.

शेखर ने अपनी हथेलियों में धारा की चूत को थामे हुए ही अपनी एक उंगली को चूत की दरार में ऊपर से नीचे चलाना शुरू किया.
धारा की चूत पहले ही पूरी तरह से गीली हो चुकी थी।

अब शेखर की उंगलियाँ उस गीली चूत की दरार में थोड़ा अंदर तक पहुँच गयीं और ऊपर की तरफ़ सीधे चूत के दाने तक पहुँच गयीं.
शेखर को समझ में आ चुका था कि ये वही बटन है जिसके दबने या फिर सहलाये जाने के बाद बड़ी से बड़ी ज़िद्दी औरत भी अपनी चूत खोलकर विशाल से विशाल लंड अंदर ले लेती है.

शेखर ने धारा की चूत के दाने को अपनी उंगली से कुरेदना शुरू कर दिया.

धारा की हालत ऐसी थी कि वो उन्माद में अपनी गर्दन को दाएँ-बायें इधर-उधर करके अपनी बेचैनी का परिचय देने लगी.

अब धारा के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था.
उसने अपने हाथों को पीछे ले जाकर शेखर की जींस के ऊपर से ही लंड को तलाशना शुरू किया.

जींस के मोटे कपड़े की वजह से लंड को पूरी तरह से मुट्ठी में भर पाना आसान नहीं था.

फिर भी उसने पूरी कोशिश करते हुए शेखर के लंड को किसी तरह से पकड़ लिया.

लंड के कड़ेपन का अहसास होते ही धारा ने अपनी गांड को पीछे धकेलते हुए एक हाथ से लंड पकड़ कर अपनी गांड की दरार में रगड़ना शुरू कर दिया.

इधर एक बार फिर शेखर ने अपने एक हाथ से चूत के दाने को कुरेदते हुए दूसरे हाथ से धारा की चूचियों को मसलना शुरू कर दिया.

कमरे में बस धारा की सिसकारियां ही सिसकारियां सुनायी दे रही थीं।
साथ में शेखर के मुँह से निकल रही गर्म साँसों की आवाज़ भी उन सिसकारियों के साथ मिलकर वासना का गीत गा रही थीं.

शेखर ने अब कुछ ऐसा किया कि धारा के पैर काँपने लगे.
हुआ ये कि शेखर ने चूत पर रखे अपने हाथ के अंगूठे को दाने पर केंद्रित कर दिया और अपनी बीच वाली उंगली को धीरे से नीचे ले जा कर धारा की चूत के दरवाज़े के अंदर डाल दिया.

इतना काफ़ी था धारा के चरमोत्कर्ष के लिए.
एक तरफ़ चूत के दाने का मर्दन और दूसरी तरफ़ एक उंगली का चूत के अंदर बाहर होना!
धारा अपने आप को रोक नहीं पायी और उसने अपना ढेर सारा कामरस शेखर की हथेलियों पर छोड़ दिया.

धारा लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी और शेखर के बालों को मज़बूती से अपनी उंगलियों में फँसा कर खींचने लगी.
शेखर समझ चुका था कि धारा झड़ चुकी थी लेकिन उसने ना तो उसकी चूत को छोड़ा और ना ही उसकी चूचियों को मसलना बंद किया.

धारा इस लगातार हो रहे खेल से 2 मिनट के अंदर ही फिर से गर्म होने लगी लेकिन इस बार वो यूँ उंगलियों से झड़ना नहीं चाहती थी.

उसने एक झटके से शेखर के हाथों से अपनी चूत और चूचियों को छुड़ाया और शेखर की तरफ़ घूम गयी.
शेखर की आँखें बंद थीं, उसे समझ नहीं आया कि हुआ क्या!

मगर तभी धारा के हाथ उसकी टी-शर्ट को खींच कर निकालने लगे तो शेखर समझ गया कि अब धारा असली चुदाई का खेल खेलना चाहती है.

उसने भी धारा की मदद करते हुए खुद ही अपनी टी-शर्ट निकाल दी.

अब तक धारा अपने घुटने पर बैठ कर शेखर के जींस के बटन खोलने में व्यस्त हो चुकी थी. उसका बस चलता तो वो आज शेखर के सारे कपड़े फाड़ ही डालती.

खैर उसने शेखर की जींस के बटन खोल दिए और शेखर ने जींस को अपने पैरों से बाहर निकाल दिया.

अब शेखर सिर्फ़ अपनी वी-शेप फ़्रेंची में अपने हाथ अपनी कमर पर रख कर खड़ा था.

शेखर अब धारा के हमले के लिए पूरी तरह से तैयार था. मगर लगभग आधे मिनट तक शेखर को ना तो धारा ने छुआ था और ना ही उसके लंड की तरफ़ हाथ बढ़ाए थे.

धारा थी तो वहीं, ये अहसास उसके बदन से आ रही ख़ुशबू से हो रहा था.
फिर धारा क्या कर रही थी?

शेखर इसी उधेड़बुन में खड़ा था कि तभी धारा की गर्म साँसें उसे अपनी जाँघों पर महसूस हुईं.
अब धारा ने अपने दोनों हाथों से शेखर के घुटने को थोड़ा ऊपर से थामा और फिर अपनी नाक से गर्म साँसें छोड़ते हुए उसकी जाँघों को चूमते हुए ऊपर की तरफ़ बढ़ी.

धारा की गर्म साँसों ने शेखर के बदन में एक झुरझुरी सी भर दी. शेखर धारा के इस अन्दाज़ से बहुत रोमांचित हो रहा था.

आख़िरकार धारा ने अपने तपते होंठों को उस वी-शेप फ़्रेंची में क़ैद लोहे के सामान कठोर हो चुके लंड पर रख ही दिया.

“आह्ह … धारा !!” शेखर के मुँह से बस इतना ही निकल सका।
धारा ने धीरे-धीरे करके शेखर के लंड के उन सभी हिस्सों को जो कि उसके फ़्रेंची के होते हुए छुए या चूमे जा सकते थे, चूमा और अचानक से लंड को अपने दाँतों से पकड़ लिया.

“आह..” शेखर की चीख निकल गयी.
अगर उसका लंड फ़्रेंची में क़ैद ना होता तो पक्का उसके ऊपर धारा के दांतों के निशान उभर गए होते. खैर, धारा ने थोड़ी देर तक शेखर के लंड से उसी हालत में खिलवाड़ किया।

फिर धीरे से उसकी फ़्रेंची में अपनी उंगलियाँ फँसा कर उसे नीचे सरकाना शुरू किया.

अब फ़्रेंची तो फ़्रेंची है, पहले से ही टाइट होती है ऊपर से शेखर का लंड जो पिछले आधे पौने घंटे से वासना के सागर में डूब कर अकड़ू हो गया था, वो लगभग फ़्रेंची में फँस ही गया था.

काफ़ी मशक़्क़त के बाद धारा ने किसी तरह से शेखर के लंड को आज़ाद करवाया.

शेखर का लंड पूरी तरह से टाइट था और हर एक पल ठुनक रहा था.
धारा के हाथ अब शेखर की जाँघों को थामे हुए थे और बड़े गौर से वो शेखर के लंड को निहार रही थी.

ये कहने की ज़रूरत नहीं कि शेखर का लंड कितना बड़ा या कितना मोटा था लेकिन इतना तो तय था कि धारा उस लंड को देख कर स्तब्ध थी और एकटक उसे निहार रही थी.

शायद धारा को अपने मन के मुताबिक़ ही लंड के दर्शन हो गए थे.
धारा अपना मुँह शेखर के लंड के थोड़ा क़रीब ले आयी, इसका अहसास शेखर को इस बात से हुआ कि धारा की गर्म साँसें अब शेखर को अपने लंड पर महसूस हो रही थीं.

शेखर बस अब इस इंतज़ार में था कि कब धारा उसके लंड को अपने मुँह में भरे और उसे जन्नत का मज़ा दे.

काफ़ी देर तक धारा बस उसके लंड के ऊपर गर्म साँसें ही छोड़ती रही और बीच-बीच में उसकी जाँघों को चूमती रही।

मगर अभी भी उसने ना तो लंड को हाथों से पकड़ा था और ना ही अपने होंठों को लंड पर रखा था.
शेखर के सब्र का बांध टूट रहा था. उसके लंड की चमड़ी यूँ तो बंद ही थी लेकिन चमड़ी के अंदर से झांक रहे सुपारे पर प्री-कम की बूँदे साफ़ झलक रही थीं.

शेखर ने अपनी कमर से हाथ हटाकर अपने हाथ सामने हवा में लहरा कर धारा के सर को पकड़ने की कोशिश की ताकि उसके मुँह में अपना लंड ठूँस सके लेकिन उसकी कोशिश बेकार गयी.

वजह थी कि शेखर की आँखों पर पट्टी बंधी थी लेकिन धारा की आँखें तो खुली ही थीं। उसने शेखर के हाथों से अपना सर बचा लिया और धीरे से हंसने लगी.

“क्यूँ तड़पा रही हो धारा … आ जाओ ना !!” शेखर ने लगभग अनुरोध करते हुए धारा से लंड मुँह में लेने की गुज़ारिश की.

शेखर की मनोदशा समझ कर धारा को उस पर तरस आ गया और उसने बिना देर किए बिना हाथों से लंड को पकड़े अपनी जीभ की नोक से लंड की चमड़ी से झांक रहे सुपारे को सहला दिया.

“आह्ह … धारा .. .मार ही डालोगी क्या !!” शेखर ने एक ज़ोरदार आह्ह भरी और एक बार फिर धारा का सर पकड़ने की कोशिश की लेकिन इस बार भी धारा ने अपना सर बचा लिया.

शेखर समझ गया कि धारा अपने तरीक़े से मज़े लेना चाहती है, और उसने कहा भी था कि उसकी इच्छाओं का सम्मान होना ज़रूरी है.
यही सोच कर शेखर ने अपने हाथों को एक बार फिर अपनी कमर पर रख लिया और अपने लंड को स्वतंत्र छोड़ दिया धारा के लिए।

धारा ने भी शेखर को ज़्यादा नहीं तड़पाया और इस बार उसने शेखर के लंड को अपनी नर्म मुलायम हथेलियों से थाम लिया.
शेखर के लंड की अकड़ ने धारा को बहुत प्रभावित किया था।

उसकी अकड़ देख कर धारा ने अपनी हथेलियों में लंड को लगभग मरोड़ दिया लेकिन लंड टस से मस न हुआ.

धारा ने लंड की चमड़ी को खोलते बंद करते हुए मुठ मारने के जैसे दो चार बार हिलाया।
फिर सुपारे को चमड़ी से पूरी तरह बाहर निकाल कर अपनी जीभ से पूरे सुपारे को चाटना शुरू किया.

सुपारे पर जमी कामरस की सारी बूँदें धारा ने चट कर दीं और फिर पूरे सुपारे को अपने होंठों के बीच लेकर क़ुल्फ़ी की तरह चूसने लगी.

शेखर चाहता था कि धारा उसका लंड पूरा मुँह में जड़ तक भर ले फिर चूसे … मगर धारा तो धारा ठहरी … वो अपने तरीक़े से लंड के मज़े ले रही थी.

लगभग 5 मिनट तक सुपारे को चूसने के बाद आख़िरकार धारा ने लंड को मुँह में अंदर लेना शुरू किया.
पहले आधा लंड लेकर चूसती रही फिर धीरे-धीरे पूरे लंड को अंदर लेना चाहा।

मगर उसके कंठ तक ठोकर मार रहे लंड का कुछ हिस्सा अभी भी बाहर ही था जो शायद अंदर नहीं जा पा रहा था।
या यूँ कहें कि धारा उससे ज़्यादा अंदर नहीं ले पा रही थी.

एक बार को शेखर ने अपनी कमर को झटका भी दिया ताकि पूरा लंड अंदर जा सके.
लेकिन शेखर की इस हरकत से धारा के गले में लंड का धक्का ज़ोर से लगा और वो गूँ-गूँ करती हुई पीछे हट गयी.

पक्क की आवाज़ के साथ शेखर का लंड बाहर निकल गया.

“शैतान कहीं के … जान ही ले लो!” धारा ने शिकायत की.

शेखर को हंसी आ गयी.
उसे हँसता देख कर धारा ने ज़ोर से उसका लंड पकड़ कर मरोड़ दिया.
इस बार शेखर की चीख निकल गयी.

एक बार फिर धारा ने शेखर का लंड हाथों में थामा और फिर मुँह में डाल कर चूसने लगी।

मगर इस बार उसने हाथों से लंड का पिछला हिस्सा पकड़ रखा था ताकि शेखर चाहे भी तो दुबारा पूरा लंड अंदर डालने की कोशिश ना करे.

लगभग अगले 10 मिनट तक धारा मज़े से शेखर का लंड चाटती रही.

शेखर का लंड अब जवाब देने वाला था. इतनी देर का रोमांच अब उसके लंड से लावे के रूप में बाहर आने वाला था. उसकी टाँगें थरथराने लगी थीं.

लेकिन धारा एक मंझी हुई खिलाड़ी थी.
उसे समझ में आ गया था कि शेखर का लंड सलामी देने वाला है, उसने झट से लंड को मुंह से निकाला और खड़ी हो गयी.

शेखर अचानक से लंड के धारा के मुँह से बाहर हो जाने से बेचैन हो गया.
उसे लगा था कि धारा शायद उसका लावा पी जाएगी.

ये सुख उसे कभी उसकी बीवी ने भी नहीं दिया था लेकिन अभी थोड़ी देर पहले हो रही लंड चुसाई ने उसे ये अहसास दिलाया था कि शायद मुँह में झड़ने का सुख उसे आज मिल ही जाएगा. मगर ऐसा हुआ नहीं.

धारा ने खड़े होकर एक बार फिर से शेखर के होंठों को अपने होंठों में क़ैद किया और अपने एक हाथ से उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत के दाने पर सेट करके रगड़ने लगी.

धारा की हाइट शेखर से थोड़ी कम थी इसलिए उसे उचक कर अपनी चूत में शेखर का लंड रगड़ना पड़ रहा था.

थोड़ी देर यूँ ही होंठों को चूसने और लंड को चूत पर रगड़े के बाद धारा ने शेखर को थोड़ा आगे खींचा और फिर दाहिनी ओर मोड़ कर उसे धक्का दे दिया.
पीछे शायद बिस्तर था लेकिन अचानक के धक्के से शेखर भी हड़बड़ा गया.

फिर इससे पहले कि वो सम्भालता, वो सीधा एक गद्देदार बिस्तर पर पीठ के बल लेट चुका था. उसकी आधी टाँगें अब भी बिस्तर के नीचे ही थीं और उसका लंड पूरी तरह से तनकर छत की ओर देख रहा था.

धारा ने उसे सम्भालने का बिल्कुल मौक़ा नहीं दिया और उसकी जाँघों पर चढ़ बैठी.
जाँघों पर बैठ कर उसने शेखर का लंड हाथों में लेकर दो-चार हिलाया और झुक कर सुपारे को मुँह में लेकर थोड़ा सा चूसकर गीला कर दिया.

अब बारी थी असली चुदाई की! धारा ने शेखर के लंड को हाथों में पकड़ कर आगे सरकाते हुए अपनी चूत के ठीक नीचे सेट किया और एक बार फिर से लंड के सुपारे को चूत की पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक रगड़ा.

चूत महारानी पहले ही इतनी गीली हो चुकी थी कि उसे किसी तरह की चिकनाई की ज़रूरत ही नहीं थी। लंड का सुपारा चूत की दरार को खोलता हुआ चूत के गुलाबी होंठों को रगड़ रहा था.

धारा ने अब बिना देर किए सुपारे को पूरी ताक़त से थामा और अपनी चूत के छेद में अटका कर उस पर अपने बदन का भार देने लगी.
“आह्ह … ह्म्म्म … ओह्ह!!” सिसकारियाँ भरते हुए धारा ने शेखर का लंड लगभग अपनी चूत में आधा अंदर डाल लिया।

इधर शेखर के मुँह से भी मज़े की किलकारी निकलनी शुरू हो गयी.

शेखर अपनी कमर को उचका कर लंड को और अंदर डालने की कोशिश करने लगा।

मगर फ़िलहाल कमान धारा के हाथों में थी इसलिए वो अपने हिसाब से लंड को अपनी मर्ज़ी मुताबिक ही चूत में ले रही थी.

इसी अवस्था में धारा ने 5 मिनट तक शेखर के आधे लंड से अपनी चूत की गहराई नापी, फिर धीरे-धीरे बदन का पूरा भार लंड पर डाल दिया.

अब लंड का लगभग तीन चौथाई भाग धारा की चूत ने गटक लिया था। अब वो धीरे-धीरे अपनी कमर हिला कर लंड और चूत का मिलन करवाने लगी.

धारा ने अपने हाथ शेखर के सीने पर रख लिए और सिर्फ़ अपनी गांड उठा-उठा कर लंड को निगलने लगी.
फ़च … फ़च … फ़च … करके कमरे में चुदाई का मधुर संगीत गूंजने लगा.

धारा के मुँह से सिसकारियाँ और शेखर के मुँह से आहें. बस यही आवाज़ें सुनाई दे रही थीं.

अगले 10 मिनट तक धारा इसी हालत में शेखर को चोदती रही.

अब शेखर ने धारा की कमर को थाम लिया और नीचे से अपने लंड को झटके पर झटके देकर उसकी चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी.
इससे धारा का मजा और बढ़ गया और चुदासी होकर सिसकारने लगी- आह्ह … शेखर … आईई … आह्ह … मेरी चूत … आह्ह … स्स्स … आह्ह … आ रही हूं मैं … आह्ह … आह्ह।

धारा की कमर का हिलना तेज हो गया, वो अपने चरम पर थी. शेखर ने भी उसकी कमर को अपनी तरफ़ खींच-खींच कर लंड के झटके देने शुरू किए.

इतने में ही धारा ने ढेर सारा कामरस शेखर की जाँघों पर छोड़ दिया और उसके सीने पर निढाल होकर गिर पड़ी.

शेखर अब भी नहीं झड़ा था; उसका लंड अब भी धारा की चूत में वैसे ही फँसा हुआ था.

थोड़ी देर तक तो शेखर ने धारा की पीठ सहला कर उसे सम्भाला लेकिन फिर अगले ही पल उसने धारा की कमर पकड़ कर एक झटके में से बिस्तर पर पलट दिया.

ये इतनी जल्दी में हुआ था कि धारा को कुछ समझने का मौक़ा ही नहीं मिला.
धारा की चूत में शेखर का लंड अब भी वैसे ही था, अटका हुआ … उसने अपना आधा शरीर उठाया और टटोल कर धारा की चूचियों को थाम लिया।

फिर शुरू हुआ धारा कि चूत का कचूमर बनाने वाला खेल.

शेखर ने अपना लंड धारा की चूत की जड़ तक बाहर निकाला और एक ही झटके में पूरा अंदर डाल दिया.
वो चीखी- “आईईइ … शेखर … आह्ह … आराम से !!”

शेखर को धारा के दर्द का अहसास होते ही उसने झुक कर उसकी एक चूची को अपने मुँह में लिया और दूसरी को अपने दूसरे हाथ से मसलते हुए धीरे-धीरे अपने लंड को चूत में धकेलने लगा.

अब धारा को भी मज़ा आने लगा था, वो भी शेखर का सर अपनी चूचियों पर दबा कर अपनी कमर हिलाती हुई लंड को अपनी चूत में निगलने लगी.

शेखर अब ज़्यादा देर रुक नहीं सकता था, उसने धारा की चूचियों को छोड़ा और उठा कर धारा के दोनों पैरों को अपने कंधे पर टिकाया और लगा बमपिलाट धक्के मारने.

धारा की चूत एक बार फिर से अपना लावा उगलने के लिए तैयार थी, उसने भी सिसकारियाँ लेते हुए शेखर को और चोदने के लिए ललकारना शुरू किया.

धारा- आह्ह … हाँ मेरी जान … और तेज चोदो … और तेज चोदो … हय मेरी चूत … लंड है या खम्भा … आज फाड़ ही डालेगा … फाड़ दो…!!” उन्माद में अब धारा के मुँह से गंदे शब्द निकलने शुरू हो गए.

शेखर- हाँ धारा … कब से तड़प रहा था इस पल के लिए. आज तो इस चूत का बैंड बजा दूँगा.
उसने भी मौक़े की नज़ाकत और धारा के उन्माद को देख कर उसकी भाषा में अपनी भाषा मिलाते हुए उसकी ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी.

पूरा बिस्तर उनकी चुदाई से हिल रहा था और धारा की चूत से बह रहे काम रस से मिलकर शेखर के लंड ने ज़ोर-ज़ोर से फ़च फ़च की आवाज़ें निकालनी शुरू कर दी थीं.

शेखर अपने चरम पर था और अगले कुछ ही पलों में उसका लावा बाहर आने वाला था.
वो चीखा- आह्ह … धारा … आह्ह मैं आने वाला हूं।

धारा- हाँ शेखर … मैं भी आ रही हूँ … शे… शेखर … आ जाओ … अंदर ही झाड़ लो अपना लंड … आह्ह!
उसने उन्माद में अपनी गर्दन इधर-उधर फेंकते हुए शेखर को अपनी चूत में ही झड़ने के लिए कहा और अपनी कमर को झटके देते हुए खुद झड़ गयी.

बस दो तीन झटकों के बाद शेखर ने पूरी ताक़त से अपना लंड धारा की चूत में जड़ तक गाड़ दिया और एक-एक करके पता नहीं कितनी फुहारें अपने कामरस की धारा की चूत में छोड़ दीं।

दोनों लम्बी-लम्बी साँसें ले रहे थे मानो कोई मैराथन दौड़ कर आए हों।

शेखर वैसे ही थोड़ी देर तक धारा के ऊपर पड़ा रहा और धारा उसे अपनी बांहों में समेटे उसकी पीठ सहलाती रही.

पता नहीं वो कितनी देर तक वैसे ही रहे।
फिर शेखर नींद की आग़ोश में खो गया.

ऐसा अक्सर होता था शेखर के साथ … अपनी बीवी की भरपूर चुदाई के बाद भी वो अक्सर थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन सो जाता था।

आज भी वैसा ही कुछ हुआ … आज तो शेखर को वो रोमांच मिला था जिसकी बस कल्पना ही करता रहता था वो!

खैर थोड़ी देर बाद शेखर को होश आया तो उसे महसूस हुआ जैसे उसकी आँखों की पट्टी खुली हुई है और वो एक ख़ूबसूरत से कमरे में मद्धम सी लाल रोशनी में एक बिस्तर पर लेटा हुआ है.

दोस्तो, आपको शेखर और धारा की कॉकोल्ड वाइफ सेक्स कहानी कैसी लगी इस बारे में अपने सुझाव जरूर लिखें।
मेरा ईमेल आईडी है- [email protected] भेजें.

इससे आगे की कहानी: वासना की धारा- 6

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