वीर्यदान महादान-3

विक्की कुमार
जैसे ही कामना मेरी बाहों में आई तब मुझे आभास हुआ कि हम दोनों के मध्य दो विशाल पहाड़ टकरा रहे हों, अहा ! तो ये कामना के वक्ष थे जो शोले से दहक रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे उनमें से आग की लपटें निकल रही थी, जो मेरे बदन को जला कर भस्म कर देंगी।
हम दोनों एक दूसरे को पकड़कर लगभग दस मिनट चूमते रहे। फिर उसके मैंने उन्हें हौले से उठाया व पलंग पर अपनी गोदी में लेकर बैठ गया। अब आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपने दोनों हाथों से उनके बदन को टटोलना शुरु कर दिया।
वे भी कहाँ कम पड़ रहीं थी, अगर मैं उनके उन्न्त स्तनों को सहलाता तो वे भी मेरे शिश्न को सहलातीं। यदि मैं उनके कूल्हे मसलता तो बदले में वे भी मेरे चूतड़ों पर हाथ फ़ेर कर मुझे उकसा रही थीं।
फिर मैंने आहिस्ता से उनकी कुर्ती उतार दी। क्या दिलकश नजारा था, चौंतीस इन्ची कसी हुई छातियाँ, जिस पर बेहद सुन्दर अंगिया। तौबा-तौबा, मेरा लण्ड तो कुलांचें भर रहा था, मुझे डर था कि कहीं मेरा वीर्य विसर्जन ना हो जाये पर मैंने अपने लण्ड को समझाये रखा कि देर सवेर कामना की चूत तुझे मिलनी ही है, तो क्यों बावरे इतनी उछल कूद मचाता है।
जब मैंने उनकी कुर्ती उतारी तो उसके जवाब में कामना जी ने भी मेरी टी शर्ट उतार दी।
फिर थोड़ी देर उनके स्तनों को सहलाने के बाद मैंने उनकी सलवार उतार दी तो बदले में उन्होंने भी मेरी जीन्स खोल दी।
अब वे मेरे सामने गुलाबी रंग की खूबसूरत सी ब्रा-पेंटी पहनी मेरी बाहों में मचल रही थी और मैं भी बनियान व अंडरवियर में था।
हम दोनों एक दूसरे के शरीर को तेजी से सहला रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे वासना का तूफान उठ खड़ा हो गया हो।
मेरा मन तो कर रहा था कि मैं उनका अंगप्रत्यंग मसल दूँ क्योंकि मै तो बरसों का भूखा साण्ड था, दूसरी और कामना भी मुझे उत्तेजित करने की पूरी कोशिश कर रही थीं।
एक कहावत है कि सेक्स का मजा तभी है जब आपका साथी आपकी जोड़ का हो।
क्या खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो।
मुझे यह तो समझ में आ रही थी कि कामना भी एक मंजी हुई मगर भूखी खिलाड़ी हैं।
फिर मैंने आहिस्ता से उनकी ब्रा खोल दी। अब दो दूधिया बर्फ़ से ढके विशाल शिखर मेरी निगाहों के सामने थे।
उनके स्तन कसे हुए थे, लगता नहीं था कि ये दो बच्चों की माँ के स्तन हैं।
अब मैंने एक एक करके उनके स्तन चूसना शुरु किया। मुझे लगने लगा कि मैं जिन्दगी में पहली बार सेक्स कर रहा हूँ।
जब कामना का हाथ मेरे लण्ड पर फिरने लगा तो मेरा दिमाग बेकाबू हो गया। फिर मैंने उनकी पेंटी भी उनकी जाँघों से अलग कर दी, व अंततोगत्वा हम दोनों पूर्ण रूप से नग्न हो गये।
अब कामना ने मुझे बिस्तर पर लेटने को कहा, वे मेरी जंघाओं पर बैठ कर मेरे शिश्न को सहलाने लगी, बदले में मैं भी उनके वक्ष-उभारों को सहला रहा था, फिर उन्होंने तेजी से लण्ड को झटके देना शुरु कर दिये।
हे भगवान, मेरा दिमाग तो सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। फिर अचानक मेरे लण्ड से वीर्य का फव्वारा छुटा व कामना के दोनों स्तन व पेट भीग गये।
कुछ क्षणों बाद जैसे ही मैं सामान्य हुआ तो मैं कामना को अपनी बाहों में उठा कर बाथरुम में ले गया, जहाँ मैंने उनके स्तनों पर मेरे वीर्य को एक नेपकिन से साफ किया। फिर उन्होंने भी मेरे लिंग देवता के आसपास जो चिपचिपाहट हो गई थी, उसे साफ किया।
तब तक बाथ टब पानी से भर चुका था, इसी दौरान कामना ने अपने साथ लाई एक पोलीथीन बेग में से गुलाब व अन्य कई खूबसूरत फ़ूल निकाल कर टब में डाल दिये, व इसके साथ ही एक छोटी सी शीशी में से गुलाब जल निकाल कर उसे भी टब के पानी में मिला दिया।
यह देखकर मैं दंग रह गया कि साली कमीनी चुदासी कामना पूरी तैयारी के साथ मेरा एनकाऊंटर करने के लिये आई थी।
फिर उसने गुलाब के फ़ूलों की दो माला निकाली, एक मेरे गले में डाल दी व बदले में मैंने भी उसे एक माला पहना दी।
हम दोनों उस बाथरुम में दोनों पूर्णतया नग्न थे, पर कामना के गले में गुलाबी रंग की माला उसके सांवले रंग को बेहद खूबसूरत बना रही थी।
अब उसने टब में प्रवेश किया और लेट गई। वह एकदम जलपरी लग रही थी। फिर उसने अपनी दोनों बाहों को आगे बढ़ाकर मुझे भी पानी में आने का निमन्त्रण दिया। मैं तो तैयार ही बैठा था।
ऐसा लग रहा था जैसे मैं स्वर्ग में हूँ व किसी अप्सरा के साथ जलक्रीड़ा कर रहा हूँ।
हम दोनों बहुत देर तक पानी में एक दूसरे के बदन से खेलते रहे, फिर आहिस्ता से मौका देखकर उसकी चूत में लण्ड प्रवेश करा दिया। मैं यह देखकर दंग रह गया कि उसकी चूत तो बहुत कसी थी, शायद उसने बहुत दिनों से चुदवाया नहीं हो व उसके कारण उसकी चूत फिर से सिकुड़ कर टाइट हो गई हो।
अब कुछ समय तक मैंने अपना लण्ड उसकी चूत में बिना हिलाए डुलाए रखे रखा। व इस दौरान उसके कुच-मर्दन करता रहा, वह भी मेरे सीने व कूल्हों पर अपनी हाथ फिराकर मुझे उकसाती रही।
फिर जैसे ही मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत में ठुमका लगवाया तो वह तड़फ उठी, उसने इशारा किया कि लण्ड को अंदर बाहर करूँ। फिर शुरु हुआ आदमजात का हजारों वर्ष पुराना खेल जिसे आज कामना व मैं पानी के टब में खेल रहे थे।
बीच बीच में हम दोनों चुदाई रोककर फोरप्ले भी करने लगते ताकि आनम्द और बढ़ जाये।
आखिरकार वह समय भी आ ही गया, जब हम दोनों को लगने लगा कि अब हम चरम पर पहुँचने ही वाले हैं तो कामना ने मुझे गति बढ़ाने को कहा।
जैसे ही मैंने स्पीड बढ़ाई तो कामना सीत्कार उठी व मुझे समझ में आ गया कि अब अंत आने वाला है, फिर वह क्षण आ ही गया जब मेरा स्खलन हुआ तो साथ ही कामना भी ठण्डी पड़ गई।
अब हम दोनों एक दूसरे की बाहों में चिपक कर पानी में लेट गये, बीच बीच में एक दूसरे के शरीर को सहलाते भी जा रहे थे।
तब मेरा ध्यान गया कि बाहर अंधेरा होने लगा है तो हम दोनों उठे, शावर लिया व कपड़े पहन कर बाहर होटल के गार्डन रेस्टोरेंट में आ गये।
कामना ने गहरे रंग के गॉगल्ज़ पहन लिए थे व सिर पर दुपट्टा भी डाल दिया था।
अब हम गार्डन के एक कोने में बैठ गये कि किसी की हम पर नजर आसानी से ना पड़ सके।
आज मुझे लग रहा था कि मैं हनीमून मनाने के लिये निकला हूँ।
कहानी जारी रहेगी।

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