सारिका कंवल
इसी तरह 4 दिन बीत गए थे हम दोपहर को रोज मिलते और रोज सम्भोग करते। शाम को 5 से 7 मेरा बेटा पढ़ाई के लिए जाता, तो उस वक़्त भी हमें समय मिल जाता और एक-दो बार कर लेते थे। दिन भर मैं बस उसके बारे में ही सोचती रहती थी। मुझे नशा सा हो गया था, उसका और जब वो कहता कि उसको करना है, मैं तुरंत ‘हाँ’ कर देती।
अगले हफ्ते पति की शिफ्ट बदल गई और वो दोपहर को जाने लगे, अमर का भी समय शाम को वापस आने का था। दोपहर तक मुझे सामान्य लग रहा था, पर शाम होने लगी तो लगा कि अब मैं नहीं मिल पाऊँगी। शाम को मेरा बेटा पढ़ कर आ चुका था इसलिए अब कोई गुंजाईश नहीं बची थी।
मैं रसोई में खाना बनाने लगी मेरा काम लगभग पूरा हो चुका था। करीब 8 बज रहे थे, तभी मेरे बेटे ने मुझसे खाना माँगा और मैंने उसे खाना खिला दिया।
मैं खाना ढक कर अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने लगी, तब मैंने ध्यान दिया कि मेरा बड़ा बेटा किताब खोल कर ही सो गया है। मैंने उसे उठाकर दूसरे बिस्तर पर सुला दिया।
इधर छोटा बेटा भी सो गया, तो मैंने उसे भी झूले में सुला दिया। फिर मेरे दिल में ख्याल आया कि अमर को फोन करूँ। मैंने फोन लगाया तो उसने बताया कि वो अपने कमरे में ही है।
उसने मुझे छत पर आने को कहा।
मैंने कहा- पति कभी भी आ सकते हैं सो नहीं आ सकती हूँ।
पर उसने कहा- थोड़ी देर के लिए आ जाओ..!
मैं छत पर जाने लगी तो मैंने सोचा कि पति से पूछ लूँ कि कब तक आयेंगे, तो उन्हें फोन करके पूछा।
उसने कहा- लगभग 9 बजे निकलेंगे तो 10.30 से 11 बजे के बीच आ जायेंगे।
अमर का कमरा सबसे ऊपर ठीक हमारे घर के ऊपर था। हम छत पर कुछ देर बातें करने लगे।
फिर अमर ने कहा- चलो कमरे में चाय पीते हैं..!
हम कमरे में गए, उसने दो कप चाय बनाई और हम पीते हुए बातें करने लगे।
उसने बातें करते हुए कहा- ऐसा लग रहा है कि आज कुछ बाकी रह गया हो।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. शायद मेरा प्यार नहीं मिला इसलिए…!
उसने तब कहा- तो अभी दे दो…!
मैंने कहा- आज नहीं, मेरे पति आते ही होंगे।
तब उसने घड़ी की तरफ देखा 9.30 बज रहे थे।
उसने कहा- अभी बहुत समय है, हम जल्दी कर लेंगे..!
मैंने मना किया। पर उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना!
उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना…!
मेरी बात सुन कर उन्होंने अपना पजामे का नाड़ा खोल कर पाजामा नीचे कर दिया। मैंने उनके लिंग को हाथ से सहला कर टाइट कर दिया।
फिर झुक कर कुछ देर चूसा और फिर अपनी साड़ी उठा कर पैंटी निकाल कर बिस्तर पर लेट गई।
अमर मेरे ऊपर आ गए। मैंने अपनी टाँगें फैला कर ऊपर उठा दीं। फिर अमर ने एक हाथ से लिंग को पकड़ा और मेरी योनि में घुसाने लगे। मेरी योनि गीली नहीं होने की वजह से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी, पर मैं चाह रही थी कि वो जल्दी से सम्भोग कर के शांत हो जाए इसलिए चुप रही।
पर जब अमर ने 2-4 धक्के दिए तो मेरी परेशानी और बढ़ गई और शायद अमर को भी दिक्कत हो रही थी।
सो मैंने कहा- रुकिए बाहर निकालिए..!
उन्होंने लिंग को बाहर निकाल दिया, मैंने अपने हाथ में थूक लगा कर उनके लिंग तथा अपनी योनि के छेद पर मल दिया और लिंग को छेद पर टिका दिया।
फिर मैंने उनसे कहा- अब आराम से धीरे-धीरे करो।
उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए, कुछ देर में मेरी योनि गीली होने लगी तो काम आसान हो गया।
उन्होंने मुझे धक्के लगाते हुए पूछा- तुम ठीक हो न.. कोई परेशानी तो नहीं हो रही..!
मैंने कहा- नहीं.. कोई परेशानी नहीं हो रही और होगी भी तो आपके लिए सब सह लूँगी, पर फिलहाल जल्दी करो क्योंकि देर हो जाएगी तो मुसीबत होगी।
ये सुनते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चूमा और धक्के तेज़ी से लगाने लगे, मैंने भी अपनी योनि को सिकोड़ लिया कि दबाव से वो जल्दी झड़ जाए।
करीब 20 मिनट के सम्भोग के बाद वो झड़ गए। मैंने जल्दी से वीर्य को साफ़ किया और अपनी पैंटी पहन कर कपड़े ठीक किए और चली आई।
अगले दिन पति के जाने के बाद दोपहर में अमर ने मुझे फोन किया।
मुझसे उसने कहा- अब तुम्हारे साथ बिना सम्भोग किए एक भी दिन नहीं रहा जाता।
मैंने उनसे कहा- रोज-रोज करोगे तो कुछ दिन में ही मजा ख़त्म हो जाएगा, बीच में कभी कभी गैप भी होना चाहिए।
तब अमर ने कहा- ये भी सही है पर क्या करें दिल मानता नहीं है।
मैंने उसे कहा- दिल को मनाओ..!
फिर उसने मुझे शाम को मिलने को कहा, और हम फिर मिले और दो बार सम्भोग भी हुआ।
फिर इसी तरह 2-4 दिन गुजर गए। एक दिन मैंने अमर से कहा- मैं अकेली हूँ दोपहर में..!
तो उन्होंने कहा- उन्हें भी आज दफ्तर में काम नहीं है, सो बस आ ही रहा हूँ।
पर मुझे थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि मैं मध्यकाल में थी सो गर्भ ठहरने के डर से उन्हें पहले ही कह दिया कि आज कॉन्डोम साथ ले लें।
करीब 2 बजे वो मेरे घर पहुँच गए आते ही मुझे बाँहों में भर कर चूमने लगे फिर एक थैली मेरे हाथों में दी और कहा- आज तुम्हारे लिए तोहफा लेकर आया हूँ।
मैंने उत्सुकता से थैली को लिया और देखा मैं देख कर हैरान थी। थैली में कपड़े थे जो थोड़े अलग थे।
मैं हँसते हुए बोली- यह क्या है?
उन्होंने मुझसे कहा- पहन कर तो देखो पहले..!
मैंने मना किया क्योंकि थैली में जो कपड़े थे वो किसी स्कूल के बच्चे के जैसे थे, पर मेरी साइज़ के थे।
उन्होंने मुझे पहनने को जिद्द की, पर मैं मना कर रही थी। फिर मैंने उनकी खुशी के लिए वो पहनने को तैयार हो गई।
मैंने अन्दर जाकर अपने कपड़े उतार दिए फिर थैली में से कपड़े निकाले उसमे एक पैंटी थी पतली सी, एक ब्रा, उसी के रंग की जालीदार और एक शर्ट और एक छोटी सी स्कर्ट।
पहले तो मैं मन ही मन हँसी फिर सोचने लगी कि लोग कितने अजीब होते है प्यार में हमेशा औरतों को अलग तरह से देखना चाहते हैं।
मैंने वो पहन ली और खुद को आईने में देखा मुझे खुद पर इतनी हँसी आ रही थी कि क्या कहूँ, पर मैं सच में सेक्सी दिख रही थी।
स्कर्ट इतनी छोटी थी के मेरे चूतड़ थोड़े दिख रहे थे, मैंने सोच लिया कि अगर वो मुझे सेक्सी रूप में देखना चाहता है तो मैं उसके सामने वैसे ही जाऊँगी।
तब मैंने शर्ट के सारे बटन खोल दिए और नीचे से उसे बाँध दिया ताकि मेरे पेट और कमर साफ़ दिखे। अब मेरे स्तनों से लेकर कमर तक का हिस्सा खुला था और सामने से स्तन आधे ढके थे जिसमे ब्रा भी दिखाई दे रही थी।
जब मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखता ही रह गया। उसने मुझे घूरते हुए अपनी बाँहों में भर लिया और कहा- तुम आज क़यामत लग रही हो, बहुत सेक्सी लग रही हो। और फिर मुझे चूमने लगा।
फिर उसने कहा- आज तुम्हें मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ..!
और फिर एक सीडी निकाल कर टीवी चला दिया, पहले थोड़ी देर जो देखा तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि क्या ये सच है।
मेरे सामने ब्लू-फिल्म लगी थी। मैंने तब उनसे पूछा- क्या ये सच में हो रहा है..?
उन्होंने कहा- हाँ.. ऐसी पिक्चर तुमने कभी नहीं देखी थी क्या?
मैंने कहा- नहीं!
मैं उसके सभी सीन देख कर काफी गर्म हो गई।
मैंने अमर से कहा- चलो मुझे प्यार करो।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और फिर हम अन्दर चले गए, अन्दर जाते ही मैंने अपने कपड़े खुद ही उतार दिए और अमर ने भी खुद को नंगा कर दिया। एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया, मैंने उसके लिंग को चूस कर काफी गर्म कर दिया और उसने मेरी योनि को।
फिर अमर ने मुझे लिटा कर सम्भोग के लिए तैयार हो गया तो मैंने कहा- आज कॉन्डोम लगा लो.. मुझे डर है कहीं बच्चा न ठहर जाए।
उसने मुझसे पूछा- आज क्यों इससे पहले तो बिना कॉन्डोम के ही किया और तुमने कभी नहीं कहा?
तब मैंने कहा- मैं मध्यकाल में हूँ, इसमें बच्चा ठहरने का डर होता है।
तब उन्होंने कहा- मुझे कॉन्डोम के साथ अच्छा नहीं लगता, क्योंकि इसमें पूरा मजा नहीं आता।
मैंने उनसे कहा- 2-4 रोज कॉन्डोम लगाने में क्या परेशानी है… बाकी समय तो मैं कोई विरोध नहीं करती।
तब मेरी बातों का ख्याल करते हुए उन्होंने अपनी पैंट के जेब से कॉन्डोम की डिब्बी निकाली और मुझे देते हुए कहा- खुद ही लगा दो।
मैंने कॉन्डोम निकाल कर उनके लिंग पर लगा दिया। फिर उन्हें अपने ऊपर ले कर लेट गई और लिंग को अपनी योनि मुँह पर टिका दिया और कहा- अब अन्दर घुसा लो।
मेर कहते ही उन्होंने लिंग को अन्दर धकेल दिया और धक्के लगाने लगे। कुछ देर यूँ ही सम्भोग करते रहे। फिर 4-5 मिनट के बाद मुझे बोले- कॉन्डोम से मजा नहीं आ रहा, ऐसा लग ही नहीं रहा कि मैंने तुम्हारी योनि में लिंग घुसाया है।
मैंने उनकी भावनाओं को समझा और मैंने अपनी योनि को सिकोड़ लिया ताकि उनको कुछ अच्छा लगे।
फिर मैंने पूछा- क्या अब भी ऐसा लग रहा है?
तब उन्होंने कहा- प्लीज यह कॉन्डोम निकाल देता हूँ बिल्कुल मजा नहीं आ रहा है।
मैंने मना किया, पर कुछ देर के सम्भोग में लगने लगा कि वो पूरे मन से नहीं कर रहे हैं।
कहानी जारी रहेगी।
अपने विचार मुझे करने के लिए लिखिएगा जरूर।
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