मकान मालिक कुंवारी बेटियां- 1 (Hot Erotic Romance Kahani)

हॉट इरोटिक रोमांस कहानी मेरे मकान मालिक की जवान बेटी के साथ नैन मटक्के की है. वो बहुत सेक्सी थी. मैंने उसे सेट भी कर लिया था. चुम्बन अभी शुरू ही हुआ था कि …

दोस्तो, मेरा नाम संदीप है. मेरी उम्र 28 साल है और हाईट 5 फुट 10 इंच है. रंग सांवला है और लंड की बात करूँ तो ये बिल्कुल काला मोटा लंड है. इसकी लंबाई 7 इंच की है.

मैं आप सबको एक सेक्स कहानी सुनाना चाहता हूँ जो मेरी जिंदगी का एक खूबसूरत हिस्सा है.

यह हॉट इरोटिक रोमांस कहानी तब की है, जब मैं कॉलेज खत्म करके कोचिंग के लिए रायपुर गया था.
वहां रहने के लिए मैंने एक मकान किराये पर लिया था.

यह सेक्स कहानी मेरी और इसी परिवार के की लड़कियों के बीच घटी कामुक घटना है.

शुरुआत कुछ यूं हुई कि मैंने बी.टेक. की पढ़ाई भिलाई से की थी.
उसके बाद मैं कोचिंग के लिए रायपुर आ गया था.

मैं मकान ढूंढता हुआ एक घर में पहुंचा जहां गेट पर लिखा था कि मकान किराए पर उपलब्ध है.

यह देखकर मैंने बेल बजाई.
अन्दर से 50-55 साल की एक आंटी निकलीं.

उन्होंने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- मकान किराये पर चाहिए.

उन्होंने मेरा परिचय पूछा.
मैंने अपने बारे में सब कुछ बताया.

फिर उन्होंने नियम व शर्तें बताईं.
वह सब बताते हुए उन्होंने ये भी कहा कि रूम में शराब आदि नहीं पीना है, रूम में साफ-सफाई रखना है और लड़की का कोई चक्कर नहीं होना चाहिए.
मैंने कहा- जी ठीक है.

फिर आंटी रूम दिखाने लगीं.
मुझे रूम अच्छा लगा पर आंटी का स्वभाव कुछ ज्यादा ही कठोर लगा.

अब मैं करता भी क्या, मुझे जल्द से जल्द रूम लेना था.
मैंने भी हामी भर दी और एडवांस में पैसे देकर चला गया.

करीब एक सप्ताह बाद मैं अपना पूरा सामान लेकर रूम में आ गया.
अगले ही दिन कोचिंग जॉइन कर ली.

मैं रोज सुबह कोचिंग क्लास के लिए निकल जाता और दोपहर को लौट आता.
ऐसा ही चलता रहा.

पढ़ाई बड़ी अच्छी चल रही थी.
इस बीच मकान मालिक से भी परिचय हो गया था.

कोचिंग में कई खूबसूरत लड़कियां आती थीं. कोई जींस, तो कोई स्कर्ट, तो कोई कुछ. ऐसा लगता था जैसे ये हुस्न की परियां पढ़ने नहीं, लड़कों पर बिजली गिराने आती हैं.
उनको देख कर लगता था, जैसे वे आपस में ही कोई कम्पीटिशन करके बता रही हों कि मैं सबसे हॉट एन्ड सेक्सी हूं.

कोचिंग की शुरूआत से ही वो लड़कों के दिल, दिमाग और लंड में बसना चहती थीं.
किसी के छोटे-छोटे नींबू जैसे बिना ब्रा के स्तन, जिसमें स्तन के बीच में पहाड़ की चोटी जैसे निप्पल दिखते थे.
मानो वे कह रहे हों कि आओ और मुझे दबा-दबा कर बड़ा कर दो. मैं कब तक इतना छोटा रहूंगा.

किसी के स्तन तो भरे पूरे बिल्कुल गदराए से बड़े-बड़े स्तन, उनकी गोलाई मानो कह रही हों कि निकालो मुझे इस ब्रा की कैद से … मैं आजाद होना चाहती हूँ. नहीं रहना मुझे ऐसी कैद में, निकालो और निचोड़ दो मुझे.

उन चूचियों को देखकर ऐसा लगता था मानो चीख-चीख कर कह रही हों कि लगा लो इनमें अपने होंठ … और पी लो पूरा का पूरा दूध!

टी-शर्ट के ऊपर से दिखते गोल-गोल स्तन इतने आकर्षक लगते थे कि जब भी उन चूचों की मालकिन सामने से चल कर आती, तो मेरी नजर तो बस उन्हीं चूचों पर जा कर टिक जाती.

मैं तुरंत ही उन स्तनों का नाप लेना शुरू कर देता कि किसका कितना साइज है.

जब भी कोचिंग स्टार्ट या खत्म होती, मैं सीढ़ी के पास जाकर खड़ा हो जाता ताकि मटकते चूतड़ जो लड़कियों की हिलती कमर के कारण दाएं-बाएं होते रहते, साथ ही स्तनों के लटके झटके तो मुझे पागल ही बना देते.

आह … क्या कहूं, देख कर मेरी चड्डी के ही अन्दर हलचल शुरू हो जाती. ऐसा लगता जैसे वहीं लंड निकाल कर मुठ मार लूं. पर कर भी नहीं सकता था.
पूरी कोचिंग के समय मुझे बस उसी सोच का ख्याल बना रहता.

रूम में आने के बाद मेरा पहला काम लंड हिलाने का ही रहता था.
एक बार पानी टपक जाता, तब जाकर जी को चैन मिलता.

इसी तरह से कई दिन बीत गए थे.

अंकल आंटी को देख कर मन में ख्याल आता कि इनके कोई बच्चे हैं भी कि नहीं. अगर नहीं तो क्यों नहीं है … और अगर हां तो वो कहां हैं.

मेरा रूम मकान के पहले तल्ले में था. उधर मेरे कमरे के साने छत थी.
मैं उधर हर शाम को टहलता था.

एक रोज यूं ही टहलते हुए मेरी नजर कैम्पस के गेट पर गई.
वहां एक कार आकर रूकी.

उसमें से एक हैंडसम सा लड़का निकल कर बाहर आया और उसने वहां खड़े अंकल आंटी के पैर छुए.
उसके बाद वो घर के अन्दर आ गया.

मुझे लगा कि कोई रिश्तेदार होगा.
बाद में पता चला कि वो उनका बेटा था.

अगले दिन जब उससे बात हुई, तो पता चला कि उसका नाम मयूर है और वह नागपुर की एक कम्पनी में जॉब करता है.
वह अपनी दो दिन की छुटटी में घर आया है.

उसने भी मेरे बारे में पूछा और फिर इधर-उधर की बातें शुरू हो गईं.
दो दिन बाद वो भी चला गया.

फिर कुछ महीनों बाद यूं ही सुबह-सुबह जैसे ही मेरी आंखें खुली तो छत में किसी की पायल खनकने की आवाज आई.

जैसे ही मैं बाहर गया, एक लड़की छत से उतर रही थी.
उसके खुले-खुले बाल, बालों से टपकती पानी की बूंदें ऐसे लग रही थीं मानो अभी-अभी नहा कर निकली हो.

उसकी मटकती गांड में से उसकी पैंटी की लकीर दिखती हुई कलेजे को चीर रही थी.
बलखाती कमर पर अटका कर नेकर पहना हुआ था.

मेरी नजर ऊपर से नीचे की तरफ गई जिसमें उसके मॉडल जैसे खूबसूरत पैर मुझे एकदम से तरंगित कर गए.
उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे कोई फूल की कली पूरी तरह खिल कर चारों तरफ अपनी खुशबू बिखेर रही हो और भौंरों को अपनी ओर अकर्षित कर रही हो.

वह अगले ही पल घूमी और तुरंत ही मेरे सामने से ओझल हो गई.

पर मेरे लंड ने उसकी जवानी के अवयवों को पहचान लिया था और वो अपनी पूरी औकात में आकर तन गया था.
साला मेरी चड्डी को फाड़ कर बाहर आने को आतुर सा हो रहा था.

मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था.
बस एक ही मलाल रह गया था कि उसका चेहरा नहीं देख पाया था.

पीछे मुड़ कर तो देखा था, मगर तब उसने एक चुनरी से मुखमण्डल को ढका हुआ था.

उसके जाने के बाद मैंने देखा कि वो कुछ सूखने डाल गई थी और उसके ऊपर अपनी वही चुनरी ढक कर गई थी.

करीब जाकर देखा तो उसने अपनी पैंटी और ब्रा को सूखने डाला हुआ था.
मैंने ब्रा को डोर से उतार लिया और उसमें कैद होनी वाली उसकी चूचियों के बारे में सोचने लगा कि कैसा होगा उनका आकार … कितना रस भरा होगा उनमें … क्या कभी अपने हाथ में लेने का मौका मिल पाएगा.
ब्रा के बाद पैंटी को निकाल कर उसको सूंघने से अपने अपको रोक ही नहीं पाया.

वाह … क्या जवानी की मादक खुशबू थी यार … क्या कभी उस छेद को भोगने का अवसर मिलेगा.
यही सब सोचते हुए कमरे में आ गया.

कमरे में आकर लंड के साथ इकसठ बासट किया और खुद को जरा शांत किया.

फिर जब क्लास में गया, तो आज किसी तितली को देखने में मन ही न लगा, बस अपनी उस परी के बारे में ही सोचता रहा.

कोचिंग से वापस आने के बाद मैं बार-बार छत से आंगन की तरफ देखता, पर वह दिखी ही नहीं.

मेरे मन में उस बला को देखने की बड़ी लालसा सी जागी हुई थी, पर बहुत देर तक इंतजार करने पर भी वो नहीं दिखी.

उसी शाम को शक्कर लेने पास की ही एक दुकान गया … और जब रहा नहीं गया, तो मैंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि भईया इनके घर में कितने लोग रहते हैं?

आप लोग तो जानते ही हैं कि मोहल्ला के दुकानदारों को क्या कुछ पता नहीं होता.

वही हुआ … उसने दुकान वाले ने अंकल आंटी के खानदान का पूरा चिट्ठा खोलते हुए बताया कि अंकल-आंटी, उनका एक बेटा, जिससे मेरी मुलकात पहले ही हो चुकी थी, उनकी मंझली बेटी पूजा है. जो किसी दूसरे शहर में कॉलेज की पढ़ाई कर रही है और एक बेटी, जिसका नाम भावना है. वह अभी 12 वीं कक्षा पास करने के बाद यू.पी. में कहीं अपनी नाना-नानी के घर गर्मी की छुट्टी मनाने गयी है.

मैंने दुकानदार को थैंक्स कहा और अपने मकान की तरफ चल दिया.

दुकान से वापस आते समय मैंने देखा कि कोई लड़की आंगन में झाड़ू लगा रही है.
शायद यह वही लड़की थी, जिसको देखने के लिए मेरे नैना सुबह से तरस रहे थे.

जब देखा भी तो क्या खूब देखा … आह क्या सीन था.
वह थोड़ी झुक कर झाड़ू लगा रही थी, इस कारण उसके स्तन टी-शर्ट से ही बाहर झांकने का प्रयास कर रहे थे.
उसके स्तन लगभग 32 नाप के रहे होंगे.

मेरे लंड में फिर से सनसनाहट पैदा हो गई.

उसी समय ने उसने अपनी आंखें उठाईं और मेरी तरफ देखा.
मेरी निगाहों को उसने पकड़ लिया और सीधी खड़ी हो गई.

वह अपने बालों से चूचियों को ढकने का प्रयास करने लगी.
न जाने क्यों उसने शर्माते हुए अपनी नजरें झुका लीं.

उसकी 5 फुट 4 इंच की हाईट, सफेद टी-शर्ट, नीली नेकर और ऊपर से कितना प्यारा चेहरा.
कितनी प्यारी निगाहें थीं आह … दिल खुश हो गया.

उसकी पतली कमर, चौड़े कूल्हे, कूल्हे से जुड़े उसके सुन्दर पैर और उन दोनों पैरों के बीच का त्रिभुज का आकार देख कर उसकी चूत को मैंने अपने मन की निगाहों से देख लिया था.

अब पूजा ने अपनी निगाहें थोड़ी ऊपर उठाईं और वहां से शर्माती हुई अन्दर की तरफ भाग गई.

मैंने सोचा कि अरे ये क्या हुआ?
ये अचानक से क्यों भाग गई.

मैंने अपनी निगाहें नीचे कीं तो पता चला कि मेरा तो लंड खड़ा हो रखा था.

मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आया.
मैं मन में सोचने लगा कि लो हो गया पहला इंप्रेशन खराब,

यह लंड भी ना … लड़की को देखा कि नहीं … बस खड़ा हो जाता है.
मैंने मन में लंड को गरियाते हुए कहा- भोसड़ी वाले ने करा दी न बेइज्जती.

मैं अन्दर गया और बार-बार उसके गोल-गोल स्तनों के बारे में सोचता रहा.
किसी तरह तो इस लड़की को अपने काबू में लेना ही पड़ेगा.

मैं उसको चोदने का प्लान बनाता रहा.
उसी सब में रात में नींद ही नहीं आ रही थी.
तीन बार मुठ मारी तब जाकर देर रात नींद लगी.

अगले दिन मैं उससे मिलकर माफी मांगना चाहता था, पर वह मिली ही नहीं.
दो दिन गुजर गए.

मुझे डर लगा कि कहीं वह यह बात आंटी को न बता दे.

फिर तीसरे दिन वो छत में कपड़े सुखाने डालने आई.
मैंने मौका देख कर उसके पास गया और उस दिन के लिए माफी मांगी.

उसने नजरें झुकाईं और बिना कुछ कहे वहां से चली गई.

मैं सोच में पड़ गया कि कहीं रूम से तो हाथ नहीं धोना पड़ेगा.
मेरी दुविधा बढ़ती ही जा रही थी.
शाम हो चली थी.

तभी वह सूखे कपड़े लेने छत पर आई.

मैंने फिर से हिम्मत करके पूछा कि क्या तुमने मुझे माफ किया?
उसने कहा- मैंने तो किसी भी चीज का बुरा ही नहीं माना था … तो माफी किस बात की?

यह कह कर वो मुस्कुरा कर वहां से चली गई.
अब कहीं जाकर मेरी जान में जान आई.

कुछ दिन बीत गए, कई बार हमारा आमना-सामना हुआ पर कभी बात करने की हिम्मत नहीं हुई.

एक रात अचानक 9 बजे करीब बिजली चली गई.
एक घंटा हो गया, बिजली नहीं आई.

गर्मी का मौसम था तो मैं छत में ही लेटा हुआ चांदनी रात का मजा ले रहा था कि अचानक से पायल खनकने की आवाज आई.

मैंने देखा कि पूजा चलकर आ रही है.
वह छत की दूसरे तरफ जाकर खड़ी हो गई.
उसकी खूबसूरती चाँदनी रात में और भी आकर्षक लग रही थी.

मैं थोड़ी देर मोबाइल चलाते-चलाते चोरी-चोरी उसको देखता रहा और सोचा भी बात करूँ.
पर कैसे … उस घटना के बाद तो किसी की तरह से हिम्मत नहीं हो रही थी.

लेकिन कहीं से तो शुरूआत करना था.
तो मैंने हिम्मत दिखाई.

मैं पूजा के पास गया और उसके बगल में जाकर खड़ा हो गया और हाल-चाल पूछा.
उसने अच्छे से जवाब दिया.

इससे मेरी थोड़ी हिम्मत बढ़ी.

फिर मैंने पूछा- क्या करती हो?
तो उसने अपने कॉलेज के बारे में सब कुछ बताया.
उसने भी मेरे बारे में पूछा.

इस तरह हमारे बीच बातें चालू हो गईं.
अब सब सामान्य हो गया था.

हम दोनों को बातें करते-करते कब 11 बज गए, पता भी नहीं चला.

मैंने मौका देख कर फिर से उस घटना के बारे में बात शुरू की … पर इस बार थोड़े अलग ढंग से.

मैंने तारीफ करते हुए कहा- आप बहुत सुन्दर हैं.
‘नहीं तो …’ वो कहकर रूकी.

मैंने कुछ भी नाम नहीं लेते हुए कहा- यूं ही किसी को देखकर ऐसे उसमें हलचल होती नहीं है.
ये सुनकर उसने भी मजाकिया अंदाज में कहा- वो सुन्दरता भी किस काम की, जो वहां हलचल न मचा सके.

बस फिर क्या था … हम दोनों ही इस बात पर हंसने लगे.
हंसते-हंसते मैंने अपना एक हाथ उसके हाथ से हल्का सा टच किया.
उसने कुछ नहीं कहा.

फिर मैंने हिम्मत करके उसका वो हाथ पूरा पकड़ लिया.
इससे उसकी हंसी रूक गई.
उसने अपना हाथ खींच लिया.

दो मिनट के लिए तो जैसे सन्नाटा पसर गया.
मैं सोच रहा था कि कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई.

मैं मन ही मन सोचने लगा, तभी मेरे हाथों में उसके हाथ का स्पर्श महसूस हुआ.
मेरा मन खुशी से झूम उठा और मेरी हिम्मत बढ़ गई.

मैं पूजा के सामने आ गया और दोनों हाथों को पकड़ कर उसकी कमर के पीछे लेकर एक हाथ से पकड़ लिया, दूसरे हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठा लिया.
उसकी आंखें बन्द हो गई थीं.

उसे पता था कि क्या होने वाला है.
उसकी सांसें तेज हो चली थीं जो मुझे महसूस हो रही थीं.

उसके होंठ खुल गए, मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
ऐसा लगा जैसे बिजली सी पूरे शरीर में दौड़ पड़ी हो.

ऐसा लगा जैसे लम्बे सूखे के बाद बरसात हो गई हो.
मेरे पूरे होंठ गीले हो गए. लंड तुरंत ही फनफना उठा.

कभी ऊपर के होंठों को, कभी नीचे के होंठों को … बारी बारी से मैं मधु का रसपान सा कर रहा था.

इसी बात का तो न जाने कब से इन्तजार कर रहा था.
मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि ये घड़ी इतनी जल्दी आ जाएगी.

हम दोनों वासना में समाते जा रहे थे.

तभी बिजली आ गई और अंधकार का बियाबान रोशनी के चमन में खिल उठा.

रोशनी की भकभकाहट से पूजा ने मुझे तेज धक्का दिया और वह मुझसे अलग होकर नीचे भाग गई.

दोस्तो, मेरी हॉट इरोटिक रोमांस कहानी में आपको मजा आ रहा है या नहीं?
प्लीज मुझे कमेंट्स से जरूर बताएं.
लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दिया जा रहा है.

हॉट इरोटिक रोमांस कहानी का अगला भाग: मकान मालिक कुंवारी बेटियां- 2

About Abhilasha Bakshi

Check Also

सम्भोग : एक अद्भुत अनुभूति-1 (Sambhog- Ek Adbhut Anubhuti-1)

This story is part of a series: keyboard_arrow_right सम्भोग : एक अद्भुत अनुभूति-2 View all …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *