देसी गांड चुदाई कहानी में पढ़ें कि ओरल सेक्स के बाद मैं मौसी की जेठानी की गांड मारना चाहता था. मैंने उसकी गांड में उंगली घुसाकर तेल लगाया.
कहानी के पिछले भाग
मौसी की जेठानी की मालिश करके चोदा
में आपने पढ़ा कि मैंने मौसी की जेठानी की मालिश करके ओरल सेक्स किया फिर उसकी चूत चोदी.
अब आगे देसी गांड चुदाई कहानी:
थोड़ी देर मैं उसी तरह पड़ा लेकिन उसकी उठी हुई गांड को देख कर मैं खुद पर काबू न रख सका और उसकी गांड के छेद को अपनी उंगली से कुरेदने लगा।
मैं कभी उसकी गांड के छेद के पास अपनी उंगली से सहलाता तो कभी धीरे से अपनी उंगली उसकी गांड में डालता। सच में उसकी गांड बहुत ज्यादा संकरी थी।
जहाँ मेरी उंगली ही बड़ी मुश्किल से अंदर जा रही थी वहां लंड डालने की जगह बनाना आसान नहीं था लेकिन मैं भी नई नवेली गांड मारने के ख्वाब से रोमांचित हो रहा था।
इसलिय मैं उसी तरह मेहनत करता था।
थोड़ी देर में मेरी उंगली ने उसकी गांड में अपने आकार के हिसाब से जगह बना थी। नीतू भी अब गर्म होने लगी और एक बार फिर से मुझे उसकी सिसकी सुनाई दे रही थी।
अब मुझसे और रुका नहीं जा रहा था तो मैंने नीतू से लंड चूसने को बोला.
वो तुरंत बेड से उठी और लपक कर मेरे लंड को मुख में भर लिया।
नीतू ऐसे लंड चूस रही थी जैसे वो इस कला में पारंगत हो। इस समय उसके लंड चूसने में अजीब सी कशिश थी।
नीतू कभी पूरे लंड को अपने गले में फंसा लेती कभी मेरे लंड पर थूकती और वापस से चूसने लगती; कभी लंड की खाल पीछे करके सुपारे पर जीभ घुमाते हुए मूत्रद्वार को सहला देती तो ऐसा लगता की शरीर की जान लंड के रास्ते ही निकल जाएगी।
मुझसे अब और सहन नहीं हो रहा था तो मैंने नीतू को तेल से लंड चिकना करने को कहा.
नीतू ने तेल लेकर लंड को मुट्ठी में भरकर तेल से चिकना कर दिया।
मैंने नीतू को बेड पर पेट के बल लिटाया और उसकी कमर के नीचे दो तकिये एक के ऊपर एक करके रख दिए।
ऐसा करने से उसकी गांड उभर कर बाहर की ओर आ गई थी।
मैंने अपना सुपारा उसकी गांड के छेद के पास रखा और हल्का सा दबाव बना कर अंदर घुसाने लगा।
इस समय मेरा सुपारा फूल कर बड़े आँवले जितना हो गया था।
मेरे कई बार प्रयास करने पर भी जब सुपारा अंदर नहीं गया तो मैंने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ा और एक जोर का धक्का लगा दिया।
इस धक्के से सुपारा अंदर तो चला गया लेकिन साथ ही नीतू इतनी जोर से चीखी कि जिससे पूरा घर गूँज उठा।
मैं अपनी कमर को बिना हिलाए उसी तरह रुका रहा. नीतू अभी भी सुबक रही थी।
जब उसने अपनी गर्दन मेरी तरफ की तो मैंने देखा उसका काजल उसके आंसुओं से पूरे चेहरे पर पर फ़ैल गया था, गर्दन की नसें तन गई थी और पूरा चेहरा दर्द की वजह से लाल हो गया था।
नीतू ने रूंधे हुए शब्दों में कहा- राहुल, प्लीज मुझे छोड़ दो. मुझे नहीं लगता कि मैं पीछे तुम्हारा लंड झेल पाऊँगी, तुम चाहो तो आगे से कर लो लेकिन पीछे से नहीं! वरना सच में मेरी जान चली जाएगी।
मैंने नीतू को समझाया- देखो, यह भी एक तरह की सम्भोग क्रिया है जैसे तुमने पहली बार जब अपनी चूत में लंड लिया था तब भी तुम्हें दर्द हुआ था. फिर बाद में तुम्हें दर्द की आदत पड़ गई और थोड़े समय बाद तुम्हारी चूत को लंड खाने की आदत पड़ गई। यह भी ठीक उसी तरह है, बस एक बार दर्द होगा फिर सब आराम से हो जायेगा.
मैंने नीतू को आश्वासन दिया कि इस बार आराम से करूंगा और तुमको कम से कम दर्द होगा तो नीतू मान गई।
तब मैंने थोड़ा सा अपनी कमर को धक्का लगाया तो मेरा लंड थोड़ा अंदर जा कर रुक गया.
मैं उतने से ही धीमे-धीमे धक्के लगाने लगा.
लेकिन मेरा लंड आगे नहीं जा पा रहा था; ऐसा लग रहा था कि उसे कोई चीज रोक रही थी।
मैंने नीतू से अपनी गांड ढीली करने को कहा तो उसने कहा कि उसे नहीं पता कैसे ढीली की जाती है, जो भी करना है, खुद करो।
मैं उसके दोनों चूतड़ों पर जोर-जोर से झापड़ लगाने लगा। मेरा हर झापड़ उसके चूतड़ों पर मेरी उँगलियों की छाप छोड़ देता।
मैं झापड़ लगता तो वो दर्द से कलप जाती लेकिन साथ ही साथ और जोर से मारने को कहती.
शायद उसे भी इसमें मजा आने लगा था।
मैं जब भी उसकी गांड पर एक झापड़ लगता तो उसकी गांड कुछ ढीली हो जाती तो मैं अपना लंड थोड़ा सा और उसकी गांड में उतार देता।
अब मेरा आधा से ज्यादा लंड उसकी गांड में दाखिल हो चुका था।
मैं उतने लंड से ही बड़े प्यार से उसकी गांड मारने लगा।
थोड़ी देर नीतू भी गर्म हो गई थी, उसके मुख से आह्ह … उम्म्म … श्ह्ह्ह्ह … य्ह्म्म्म्म जैसी मंद मंद सिसकारियाँ आने थी.
वो भी अब इस चुदाई को एन्जॉय करने लगी थी।
तभी मुझे लगा कि यही सही समय है किला फतह करने का … या यूँ कहें उसके दो गुम्बद फतह करने का।
मैंने अपना लंड उसकी गांड से बाहर निकाला।
लंड पर लगा सारा तेल सूख गया था तो मैंने तेल का कटोरा उठाया और अपने लंड तेल से अच्छे से गीला किया।
जब मैंने अपना लंड उसकी गांड से बाहर निकाला तो उसकी गांड का छेद ऐसे खुला हुआ था जैसे वहां मोटा पाइप घुसा दिया हो।
मैंने तेल से उसकी गांड का छेद लबालब कर दिया, अपना लंड उसकी गांड के छेद पर रखा और कमर को पकड़कर एक जोर का धक्का लगाया।
इस बार मेरा पहले से ज्यादा उसकी गांड में उतर चुका था।
धक्का लगते ही नीतू जोर से बुक्का मार कर रोने लगी- आईईई … मम्मीईईई … मर गई..बचा … लो प्लीज़ राहुल प्लीज एक बार बाहर निकाल लो।
मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
जब मैंने अपना लंड बाहर निकाला तो उसकी गांड से तेल निकल कर बाहर छलक गया और मेरे लंड पर कुछ खून की बूंदें आ गई थी।
शायद नीतू की गांड अंदर कहीं से छिल गई थी।
मैंने फिर से अपना लंड उसकी गांड पर रखा और ऐसा धक्का लगाया की पूरा लंड उसकी गांड की गर्त में समा गया।
नीतू ने अपने दांत आपस में इस तरह भी भींच रखे थे कि उसकी चीख न निकल सकी.
लेकिन उसका पूरा बदन ऐसे काँप रहा था जैसे उसने बिजली की नंगी तार पकड़ ली हो।
थोड़ी देर मैं उसी तरह रुका रहा फिर मैंने उसकी कमर को हाथों से थाम लिया।
मैंने और देर करना उचित नहीं समझा और अपनी कमर को चलाते हुए धक्के लगाने लगा।
नीतू सुबक-सुबक कर रोने में लगी थी।
जब भी मैं धक्का लगाता तो नीतू के मुख से आह्ह्ह … आह्ह जैसी आवाज आती लेकिन मैं उसी तरह बेरहमी से उसकी गांड को अपने लंड से फाड़ने में लगा हुआ था।
थोड़ी देर में मेरा लंड आसानी से अन्दर बाहर होने लगा था जिससे नीतू की कराहने की आवाज आना भी बंद हो गई थी। शायद नीतू की गांड भी अब मेरा लंड झेलने में अभ्यस्त होने लगी थी।
यानि अब समय आ गया था की बार फिर से जोरदार चुदाई का शंखनाद किया जाए।
मैंने उसकी पतली और नाजुक कमर को अपने हाथों से पकड़ लिया। मैंने अपनी स्पीड थोड़ी बढाई और उसकी गांड पर अपने लंड से वार करने लगा। नीतू के भी मुख से उम्म्म … ह्स्स्स्स जैसी सिसकारी निकलने लगी।
मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और उसकी खुली हुई गांड में एक बार में पूरा घुसा दिया जिससे नीतू का मुंह खुला रह गया।
मैं बार-बार अपना लंड उसकी गांड से निकालता और एक तेज धक्के से उसकी गांड में पेल देता।
तभी नीतू ने मिन्नतें करते हुए कहा- राहुल आराम से करो, बहुत दर्द हो रहा है.
तो मुझे नीतू पर दया आ गई और आगे हाथ ले जा कर उसके दूध पकड़ लिय और प्यार से उसकी गांड चोदने लगा।
कुछ देर बाद देसी गांड चुदाई करते हुए हम दोनों को थकान होने लगी थी इसलिय मैंने पोजीशन बदलने की सोची।
मैंने नीतू को बेड पर लिटाया और खुद उसके पीछे चला गया। मैंने उसकी एक टांग उठा ली और फिर लंड उसकी गांड में घुसाकर चोदना शुरू कर दिया।
इस बार मैं पहले से कहीं ज्यादा ताकत से उसकी गांड मार रहा था।
कमरे में पंखा धीमा चल रहा था और हमारे बदन उत्तेजना से गर्म हो कर पसीने तरबतर हो गये थे।
उसके बदन पर जहाँ पसीने की बूंदें उभर आती, उन्हें मैं तुरंत चाट लेता। कभी उसकी गर्दन को चाटता तो कभी उसकी बगल को चाट लेता सच में नीतू काम देवी लग रही थी। उसके पसीने में भी किसी शराब जैसा नशा था।
मैंने उसकी गर्दन को अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठ चूसने लगा। नीतू भी मेरा बराबर साथ दे रही थी।
मेरे हाथ उसके उभारों और कमर को सहला रहे थे।
नीतू ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी चूत पर रखवाते हुए मुझसे बोली- इसे भी सहलाओ न … देखो कितनी फड़क रही है.
तो मैं उसकी चूत सहलाने लगा।
जितनी तेजी से मेरे हाथ उसकी चूत सहला रहे थे उससे ज्यादा तेजी से मेरा लंड उसकी गांड में चोट कर रहा।
हम दोनों अपने अंत बिंदु के बहुत करीब आ गये थे और कभी भी झड़ सकते थे।
तभी नीतू ने चीखते हुए कहा- यस्सस … यस..फ़क मी हार्ड … फ़क मी … उम्म्म … आह्ह्ह्ह ऐसे ही करो मैं झड़ने वाली हूँ।
उसकी चूत से रस की नदी बहने लगी।
मैंने उसकी चूत के दोनों होंठ अपनी उँगलियों से खोल दिए। उसकी चूत से एक के बाद एक रस की कई धार निकलने लगी जो फर्श और बेड पर गिर रही थी।
उसके बदन की लगातार बढ़ती गर्मी से मैं खुद को काबू नहीं रख सका और मैं भी झड़ने वाला था तो मैंने अपना लंड उसकी गांड में अंदर तक घुसा दिया और झड़ने लगा।
इधर मेरा लंड उसकी गांड में अपना रस भर रहा था उधर उसकी चूत रस उगलने में लगी हुई थी।
हम दोनों पूर्ण रूप से संतुष्ट होने के बाद बेड पर पड़े रहे।
फिर मैंने नीतू की कमर पकड़ के उसे अपनी तरफ घुमा लिया।
उसके होंठ चूम कर मैंने पूछा- कैसा लगा?
तो नीतू बोली- सच में मज़ा आ गया. ऐसा मज़ा शादी से अब तक कभी नहीं आया था. कभी सोचा नहीं था कि सेक्स भी इतना रोचक, रोमांचक और कामुक हो सकता है. तुमने सच में आज मुझे एक औरत होने का मतलब समझाया है. अब समझ आया कि रूपाली तुम्हारी हर बात क्यों मानती है.
इसी तरह मैं नीतू से बात करता रहा।
मैं नीतू को अभी एक बार और चोदना चाहता था क्योंकि अभी मेरी वासना पूर्ण रूप से शांत नहीं हुई थी।
परन्तु थकान और नींद से हमारी आँखें आलस से भारी होने लगी थी इसलिये मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया और फिर पता नहीं कब हमारी आँख लग गई और हम सो गये।
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देसी गांड चुदाई कहानी का अगला भाग: मौसी की जेठानी की प्यास बुझाई- 8