देसी गांड Xxx कहानी मेरी सगी मौसी की गांड चाटने की है. मैंने मौसी को नंगी कर लिया था और उसके चूतड़ चाट रहा था. तभी मैंने चूतड़ खोलकर गांड में जीभ लगा दी.
कहानी के पहले भाग
जवान मौसी को नंगी करके मजा दिया
में आपने पढ़ा कि जब मौसी घर में अकेली रह गयी तो उन्होंने मुझे अपने घर बुला लिया. मैं मौसी को पहले ही कई बार चोद चुका था तो मैं जाते ही शुरू हो गया.
मौसी को नंगी करके मैंने उनका पूरा बदन चाटा.
फिर मैंने उनकी पेंटी में बर्फ का टुकड़ा रख दिया.
अब आगे देसी गांड Xxx कहानी:
उसकी चूत इतनी ज्यादा ठण्ड सह नहीं पायी और खुद को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उसकी चूत ने पेशाब की गर्म मोटी धार छोड़ दी।
चूत से निकलती गर्म पेशाब की धार की वजह से अब बर्फ तेज़ी से पिघलने लगी थी। जिसकी वजह से बर्फ पानी बन कर उसकी पैंटी से रिस कर उसकी टांगों के बीच से होते हुए गर्म, मोटी और पीली धार से फर्श पर पड़े पेटीकोट को गीला करने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसकी चूत ने मूतना बंद कर दिया था।
मैंने हाथ आगे ले जा कर उसकी चूत का मुआयना किया जहाँ पहले एक बर्फ का टुकड़ा रखा हुआ था। जिसका अब नाम- ओ निशान मिट चुका था।
कुछ रह गया था तो बस चंद पेशाब की बूँद जो रह- रह कर उसकी पैंटी से टपक जाती।
मैं अपने दोनों हाथों के अंगूठों को उसकी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर धीरे- धीरे उसकी टांगों से निकालने लगा।
पैंटी को निकालने के बाद मैंने पैंटी के चूत के ऊपरी भाग वाले कपड़े को जीभ से छू कर देखा.
पेशाब की वजह से वो अभी भी गर्म था।
पैंटी से आती पेशाब की खुशबू और उससे चूती हुई बूंदों को देख कर मैं खुद को रोक न सका और पैंटी के तिकोने भाग को मुंह में भर कर जोर से दबा लिया.
जिससे मेरे मुंह में पैंटी से रिसने वाली पेशाब का एक बड़ा घूँट मेरे मुख में भर गया।
मुझे पेशाब के साथ रूपाली के प्री- कम और बर्फ वाले पानी का स्वाद मिल रहा था और खुशबू तो ऐसी जैसी कई वर्षो पुरानी शराब हो।
मैं जितनी देर उसे मुंह में रोक के रखता, उतना ही ज्यादा मुझे नशा चढ़ता जा रहा था.
ऐसा नशा जैसे कोई महंगी शराब पी ली हो।
तब मुझे समझ आया कि लोग आजकल क्यों सेक्स के साथ पेशाब भी पीया करते हैं।
मैंने मौसी के पेशाब को गले से नीचे उतार लिया।
तब मैंने उठ कर रूपाली की तरफ देखा.
वो स्लेब पर पेट के बल झुक कर सर टिका के खड़ी थी और उसकी साँस तो ऐसी तेज चल रही थी जैसे बहुत से दूर भाग कर आयी हो।
मैंने अपने सारे कपड़े लोवर, टी- शर्ट और अंडरवियर खुद उतार कर रसोई के बाहर फेंक दिए और आगे बढ़कर उसकी पीठ को सहलाने लगा.
थोड़ी देर में रूपाली सामान्य हो गयी थी।
मैंने उसकी आँखों में झांककर उससे आगे बढने की मूक सहमति मांगी तो उसने भी अपनी पलकें झुका के सहमति दे दी।
तब मैंने अपने हाथ में शहद लेकर उसके गोरे- गोरे, गोल और चिकने चूतड़ों पर लगा कर उनको भूरे रंग कर दिया और हाथ की बड़ी वाली उंगली में थोड़ा सा शहद लेकर गांड के छेद में लगाकर अंदर भर दिया।
फिर मैंने अपनी जीभ को निकाल कर उसके बायें वाले चूतड़ पर रख दी और उसपर लगे शहद को चाटने लगा।
एक चूतड़ पर लगे शहद को देर तक चाटने के बाद जब मैं दूसरे की तरफ जाने लगा तो मैंने दोनों चूतड़ को हाथ से फैला कर उसके गांड के छेद को जीभ से छेड़ दिया।
इससे वो फिर से वासना से गनगना गई।
फिर मैं उसके दायें वाले चूतड़ को चाटने लगा।
दोनों चूतड़ों पर लगे शहद को चाटने और हाथों से मसलने से दोनों चूतड़ गुलाबी हो गये थे।
रूपाली भी अब अपनी गांड को इधर उधर मटका कर अपने शरीर में बढ़ते कमावेश के संकेत देने लगी थी।
मैंने पुनः अपनी जीभ को गांड के छेद की ओर बढ़ा दिया। मैंने उसकी कमर को हाथों में पकड़ कर थोड़ा अपनी ओर झुका लिया और उसके दोनों चूतड़ों को हाथों से फैला कर अलग कर दिया।
तब मैंने उसके भूरे रंग के छेद यानि गांड के छेद पर अपनी जीभ रख दी और धीरे से उसे चाटने लगा।
कभी छेद के ऊपर जीभ घुमाता तो कभी जीभ को गांड के अंदर घुसाने की कोशिश करने लगता।
रूपाली भी अब बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी जिससे वो खुद अपने हाथों से चूतड़ों को फैला कर अपनी गांड खोलकर मेरी जीभ के लिय रास्ता बना रही थी।
कुछ देर तक मौसी की गांड के छेद से खेलने के बाद मैंने उसकी गांड के छेद और चूत के बीच में उभरी हुई बारीक सी मांस की लकीर पर मैंने अपनी जीभ रख दी।
धीरे- धीरे उस मांस की पगडंडी पर जीभ को चलाते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगा।
रूपाली ने भी वासना के कारण अपनी टांगों को फैला कर जीभ को चूत की तरफ आने का निमंत्रण दे दिया था।
रूपाली एक हाथ से चूत को सहलाते हुए मादक आवाजें करने लगी थी- आह्ह … ह्ह्ह … अह्ह … उम्मम हाय हाय।
उसकी चूत से रस रिसते हुए नीचे की ओर आ रहा था जिसे मैं बड़े चाव से चाट रहा था।
कुछ देर तक उसके गांड के छेद और छेद की तरफ बहते रस को चाटने के बाद मैंने उसको कमर से पकड़ के अपनी ओर घुमा लिया।
अब उसकी चिकनी बिना बालों वाली चूत मेरे सामने थी।
मैंने अंत में शहद के जार से बचा हुआ बाकी का सारा शहद हाथों में लेकर उसकी चूत पर मल दिया और कुछ शहद को चूत की गहराई में उतार दिया।
मैं अपनी जीभ से चूत के आस पास चाटने लगा।
कभी चूत के दाने को मुंह में भर कर दांत से दबा देता तो कभी चूत की पंखुड़ियों को होंठ में भर कर खींच लेता.
तो बस वो चहक उठती।
वो बार- बार मेरे बालों को खींचते हुए मेरे सर को चूत के ऊपर ले जाकर चूत को चटवाना चाहती थी।
लेकिन मेरा मन अभी उसे और तड़पाने का था।
आखिर रूपाली ने खीजते हुए कहा- चाटो न … क्यों सताते हो।
फिर मैंने उसके आग्रह पर जैसे ही चूत पर जीभ रख के चाटा तो स्वतः ही रूपाली के मुंह से आअह्ह निकल गई।
अब मैं चूत के दाने को होंठ में दबा कर खींचने लगा जिससे उसके मुंह से कामुक शब्द निकलने लगे- ऐसे ही चाटते रहो मेरी दुलारी को … कितना सुकून मिल रहा है मुझे भी और इसे भी … यस यस … सक इट!
मुझे रूपाली के बदन से खेलते हुए बहुत समय हो गया था जिससे रूपाली के पैरों में दर्द होने लगा था।
इसलिये मैंने उसे कमर से उठा कर रसोई की स्लैब पर बैठा दिया; मैंने रूपाली की कमर को अपने हाथों में उठा कर उसके चूतड़ों को रसोई की स्लैब पर रख दिया।
उसकी कमर को पकड़ कर थोड़ा आगे की तरफ खींचा जिससे उसकी चूत उभर कर बाहर की ओर आ गयी।
मैं अपनी जीभ से चूत को ऊपर से चाटने लगा।
फिर मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत की गहराई में उतार दिया और उसकी चूत की दीवारों को जीभ से चाटने लगा।
उसकी चूत से शहद में डूबे प्री- कम को लगातार मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली मेरे बालों को अपनी मुट्ठियों में पकड़ कर अपनी कमर को गोल- गोल चलाने लगी थी जैसे वो मेरी जीभ को अपनी चूत की और ज्यादा अंदर ले जाना चाहती हो।
उसके मुख से लगातार आह्ह … ह्ह्ह … ह्म्म्म … उफ्फ … हय्य्य … श्श्श्श्श … उम्म्म जैसी आवाजें आ रही थी।
अब उसकी चूत का दाना भी फड़कने लगा था।
उसने मेरी गर्दन को अपनी जाँघों में दबा लिया था; शायद अब वो कभी भी अपने अंत बिंदु को छूने वाली थी।
रूपाली ने काम्पते हुए शब्दों में मुझसे कहा- अब रुकना मत राहुल बिल्कुल भी … बस ऐसे ही चाटते रहो मेरी चूत को … मैं बस आने वाली हूँ!
अब रूपाली का बदन चिलखने लगा था और वासनावश से उसकी आँखें भी बंद हो गई थी।
“मैं आ रही हूँ आ रही हूँ … आह्ह्ह … माँ …” कहते हुए उसकी चूत से बाँध तोड़ कर कामरस बहने लगा।
जिसे मैं अपनी जीभ से चाट रहा था।
रूपाली का शरीर रह रह कर झटके खा रहा था और हर झटके के साथ उसकी चूत से लगातार रस बह रहा था जैसे कई दिनों से दबी उसकी कामाग्नि उसकी चूत के रास्ते निकल कर उसके शरीर को तृप्त कर रहा हो।
जितना मैं रस को चाटता, उतना ही रस उसके शरीर से एक और झटके के साथ चूत से बह जाता।
उसकी चूत से लगातार बहता हुआ रस स्लैब पर फैल कर नीचे रखे उसके कपड़ों पर चूने लगा था।
एक लम्बे स्खलन के बाद उसका शरीर अब धीरे- धीरे शिथिल होने लगा था और उसकी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी।
उसने अपने सिर को दीवाल के सहारे टिका लिया और खुद को शांत करने लगी।
उधर दूसरी तरफ मैं नीचे फर्श पर बैठ गया और रेलगाड़ी की तरह तेज़ चलती हुई सांस पर नियंत्रण बनाने की कोशिश करने लगा।
कुछ देर बाद मैंने एक नजर रूपाली को देखा उसकी आँखें अभी अवसाद जैसी अवस्था से बंद थी।
बिना कोई शोर किये मैं चुपचाप उठा और बाथरूम में घुस गया और अपने सीने पर लगे कामरस को साफ़ करके वापस बेडरूम में बिना कपड़ों के लेट गया।
कुछ देर बाद मेरी आँख रसोई से आते शोर से खुल गई।
मैंने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो रूपाली खाना बना रही थी।
रसोई को उसने वापस से व्यवस्थित कर दिया था और अपने कपड़ो को भी बाथरूम में डाल के एक लूज़ मैक्सी पहन ली थी।
मैं अभी भी नंगा ही था.
मैंने कमरे के बाहर रखे अपने कपड़े उठाये और उसमे से चड्ढी पहन कर वापस बेड पर लेट गया।
कुछ देर बाद रूपाली ने रसोई से आवाज़ लगा कर कहा- हाथ मुंह धो लीजिय खाना बन गया है!
मैंने भी प्रतिउत्तर में कहा- रूपाली, एक ही प्लेट में खाना लाना, साथ में खायेगें.
थोड़ी देर बाद रूपाली हाथों में प्लेट लिय बेडरूम में दाखिल हुई।
हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठे हुए थे और बीच में खाने की प्लेट रखी हुई थी।
सबसे पहले रूपाली ने अपने हाथों से एक निवाला तोड़ कर मेरे मुंह में डाल दिया।
उसके बाद मैंने भी उसे अपने हाथों से एक निवाला खिलाया।
इस तरह बारी- बारी से कभी मैं तो कभी वो मुझे खिलाती रही।
थोड़ी देर बाद रूपाली प्लेट को रसोई में रखने चली गई।
जब वो वापस कमरे में आयी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बैठने को कहा.
तो उसने भी हंसते हुए मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया।
फिर मैंने भी थोड़ा पीछे सरकते हुए अपनी जाँघों के बीच में जगह बना दी।
रूपाली भी बीच की खाली जगह में अपनी पीठ मेरी तरफ कर के बैठ गई जैसे उसे मेरे मन में उठी इच्छा का पूर्वाभास हो गया हो।
मैंने भी उसकी कमर को पकड़ के अपनी ओर खींचा और उसकी पीठ को अपने सीने से सटा लिया।
उसकी गर्दन को चूमते हुए उससे पूछा- एक बात पूछूँ रूपाली?
रूपाली- हाँ पूछिए!
मैं- क्या सच में तुम मुझसे प्यार करती हो।
रूपाली- सच में राहुल मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। जब से आपके घर से वापस आयी हूँ तब से दिन-रात आपको याद करती हूँ आपके बारे में ही सोचती रहती हूँ।
मैं- क्यों मौसा जी अब तुम्हारी चुदाई नहीं करते?
रूपाली ने खीजते हुए जवाब दिया- उस इंसान का नाम भी मत लो। उसको तो बस पैसे कमाने की पड़ी रहती है जहाँ बाकी सारे मर्द औरत की कामुक आवाज सुन कर खुश होते हैं, वहीं दूसरी तरफ वो है जो रूपयों की खनक से खुश होता है।
वो बोलती रही- कितनी रातें मैंने खुद को बिस्तर पर उसके साथ होते हुए भी अकेली महसूस किया है। रातों को अक्सर वासना की आग में जलते हुए जब भी उससे सम्भोग को कहा तो हर बार यही कह के टाल दिया कि आज नहीं आज बहुत थक गया हूँ। फिर मैं भी शरीर में उठी आग को शांत करने के लिय रातों को बाथरूम में ठन्डे पानी से बदन को शांत करती या फिर कभी-कभी आपके साथ बिताए हसीन पलों को याद कर के अपनी दुलारी को उँगलियों से सहलाने लगती. लेकिन निगोड़ी चूत की आग भी शांत होने की जगह और भड़क जाती। कभी-कभी जब महीने में एक या दो बार सेक्स भी होता तो बस वो खुद को शांत करके सो जाता।
इतना बोल कर रूपाली सुबकने लगी।
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देसी गांड Xxx कहानी का अगला भाग: जवान मौसी की चूत दोबारा मिली- 3