गाँव में सेक्स की कहानी में मैंने और मेरी सहेली ने मिल कर हमारे एक दोस्त चोदू यार के साथ पूरी रात चुदाई का मजा लिया. उसने भी दो गर्म चूतों को शांत कर दिया.
मैं आपकी सारिका कंवल एक बार पुन: सेक्स कहानी के अगले भाग के साथ उपस्थित हूँ.
कहानी के पिछले भाग
गर्म सहेली को यार से चुदवाया
में आपने अब तक पढ़ा था कि मेरी भरपूर चुदाई के बाद मैं हांफ रही थी तभी बाजू से सुषमा की आवाज आई.
अब आगे गाँव में सेक्स की कहानी:
सुषमा- वो ठंडी हो गयी है तो आ जा मेरे ऊपर … मैं गर्म हो गयी हूँ.
हमने बगल में देखा सुषमा अपनी योनि को हाथ से सहला रही थी.
हम तो इतने गर्म होकर लीन हो गए थे संभोग में के बगल में लेटी सुषमा को भूल गए थे.
सुरेश मेरी ओर देख कर बोला- जाऊं सुषमा के पास?
मैं- हां जाओ, तब तक मैं थोड़ा सुस्ता लेती हूं, अच्छे से चोदो उसको भी … और ये सोच दिमाग में रखो कि तुम्हें दो गदरायी घोड़ियों को ठंडा करना है. मूड में जोश लाओ … औरत को अपनी मर्दानगी देखने दो.
सुषमा- हां आ जाओ सुरेश … अब अपनी मर्दानगी मुझे दिखाओ. मेरी मुनिया पनिया रही … देख!
सुरेश- आज तो मेरा लौड़ा तुम दोनों को मेरी मर्दानगी दिखाएगा.
वो मेरी योनि से अपना लिंग बाहर निकाल कर सुषमा की तरफ दिखाता हुआ कहने लगा- देख रही हो कैसा फनफना रहा है!
ये सब कहते हुए सुरेश बिजली की रफ्तार से मेरे ऊपर से उठ कर सुषमा के ऊपर चढ़ गया.
उसने झट से सुषमा की टांगों के बीच आकर तुरंत लिंग उसकी योनि में प्रवेश करा दिया और धकाधक धक्के मारने लगा.
हमारी बातें उसके लिए उत्तेजना का काम कर गयी थीं.
सुषमा भी गर्मजोशी से उसका साथ देने लगी और उसका उत्साह बढ़ाने के लिए बारी-बारी से अपने स्तनों का पान कराने लगी.
बस कुछ ही पलों में सुषमा की सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं.
सुरेश पूरी ताकत से सुषमा की योनि में गहराई तक वार करने लगा.
अब तो सुषमा भी चीखने लगी- आई माई … अहह मार डाला रे … ओह ओह्ह … ओह्ह फाड़ दिया रे, नाभि तक जा रहा!
सुरेश- और क्या … तुझे ही तो मेरी मर्दानगी देखनी थी न, अब ये घोड़ा रूकेगा नहीं, इस घोड़े का लौड़ा फाड़ कर ही दम लेगा.
कुछ 5-7 मिनट के धक्कमपेल संभोग के बाद आखिरकार वो पल आ ही गया जब सुषमा भी किसी बकरी की तरह ममियाती हुई सुरेश से लिपट गयी और झड़ती हुई अपनी योनि से चिपचिपा पानी छोड़ने लगी.
पर सुरेश रूका नहीं बल्कि लगातार धक्के मारता रहा.
सुषमा ढीली पड़ गयी.
उसके बाद भी सुरेश किसी भूखे कुत्ते की तरह हांफता हुआ धक्के मारे जा रहा था.
कुछ देर बर्दाश्त करने के बाद आखिर वो बोल ही पड़ी- बस करो सुरेश, मैं मर जाऊंगी. कितनी बेरहमी से चोद रहे हो मुझे, थक गयी हूँ. थोड़ा रहम करो!
इतना सुनते ही सुरेश बोला.
सुरेश- सारिका जल्दी से कुतिया बनो.
उसके शब्द सुनते ही मैं पलट कर कुतिया की तरह झुक गयी और अपने चूतड़ उठा दिए.
अगले ही पल वो सुषमा से अलग होकर मेरे पीछे आ गया और टांगों पर खड़े होकर झुक कर अपना लिंग मेरी योनि में प्रवेश कराके मेरे कंधों को पकड़ जोर से तेज़ी में 2-3 धक्का मारे.
एक तो पीछे से लिंग योनि के भीतर बहुत आसानी से और बहुत अन्दर जाता है. ऊपर से पूरी ताकत से वो लगा था.
मैं तो कसमसा के रह गयी, मेरी चीख मेरे मुँह के अन्दर ही दबी रह गयी.
मुझे इतना तेज दर्द हुआ कि तकिए को पकड़ कर रखने जैसी हालत हो गयी थी.
ऐसा लगा कि मानो लिंग मेरी बच्चेदानी के मुँह को चीर कर अन्दर घुस गया.
इसी बात से मुझे समझ आ गया था कि सुरेश अब पूरे जोश में है और किसी भी पल झड़ सकता है.
मैंने जरा भी किसी तरह का विरोध करना सही नहीं समझा क्योंकि ये उसका अधिकार था.
उसने हमें भी मजा दिया तो हमारा भी कर्तव्य बनता था कि उसे भी मजा मिले.
इसलिए मैं उसके धक्कों को बर्दाश्त करती हुई सिर तकिए में गड़ा सिसकारियां लेती हुई उसके धक्कों को बर्दाश्त करती रही.
अब उसके धक्के तेज़ तो थे पर थोड़ा जोर कम था इसलिए मुझे सहज लगने लगा और अब तो मजा भी आने लगा.
कुछ पलों के धक्कों के बाद उसकी गति भी धीमी पड़ने लगी.
मैं समझ गयी कि सुरेश थकने लगा है.
मैंने सोचा कि अगर वो थक गया तो उसकी लय टूट जाएगी और फिर उसे और हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.
दूसरी तरफ मैं भी गर्म हो चुकी थी और मुझे झड़ते हुए जैसे धक्कों की जरूरत होगी, वो नहीं मिल पाएगी.
इसलिए मैंने उससे कहा- सुरेश अब मैं ऊपर आकर चुदूँगी.
इतना सुनते ही सुरेश झट से लिंग बाहर निकाल लेट गया और मैं उठ कर तुरंत उसके चढ़ कर लिंग अपनी योनि में प्रवेश करा धक्के मारने लगी.
इस अवस्था में मैं संतुलित तरीके से धक्के लगा रही थी जिससे सुरेश और मुझे बहुत मजा आने लगा था.
सुरेश पसीने से लथपथ था और अभी भी हांफ रहा था.
इधर मैं भी पसीने से भीगती जा रही थी और योनि से निरंतर चिपचिपा पानी निकल रहा था.
हम दोनों ही मस्ती में हांफ़ और कराह रहे थे.
उसका सुपारा मुझे बहुत कठोर महसूस हो रहा था और मेरे बच्चेदानी के मुँह पर बार बार रगड़ खा रहा था, जिससे मुझे पेट के भीतर गुदगुदी सी महसूस हो रही थी.
मैं चरमसीमा के और नजदीक जा रही थी. मैं जितनी नजदीक जा रही थी, मेरी सिसकारियां और कराहने की आवाजें तेज़ होती जा रही थीं, साथ ही मेरे धक्के मारने की गति भी.
सुरेश भी पूरे जोश में बीच बीच में नीचे से अपना चूतड़ उठा मेरा साथ दे रहा था. साथ ही कभी मेरी कमर, तो कभी मेरी मोटी गांड तो कभी मेरे बड़े झूलते स्तनों को जोरों से मसलता हुआ ‘आह … अहह … अहह …’ किए जा रहा था.
मैं भी उसके सीने पर उंगलियां गड़ा कर धक्के मारती हुई ‘आईई … यययय … अहह … ईई.’ किए जा रही थी.
तभी सुरेश नीचे से चूतड़ उठा उठा झटके मारता हुआ बोला- और जोर सारिका आह … आह … मजा आ गया … जोर जोर से चोदो … आह मेरा निकलने वाला है!
मैं धक्के रूक रूक कर मारती हुई मजा ले रही थी- उई मां आह … आई … थोड़ा देर रूको प्लीज … रोक लो खुद को साथ में झड़ेंगे.
मेरी बात सुन उसने झटके मारना बन्द कर दिया और मेरे स्तनों को बेरहमी से दबाते हुए बोला- जल्दी करो सारिका … मैं ज्यादा देर नहीं रूक सकता, जल्दी से पानी छोड़ो अपना. भिगा दो मेरे लंड को अपने गर्म पानी से … आह नहला दो इसको.
उसकी ऐसी उत्तेजक बातें सुन मेरे बदन में बिजली के झटके जैसा असर कर गईं और मैं झटके के साथ सुरेश के ऊपर गिर पड़ी.
मैं अपनी योनि के सुरेश के लिंग पर जोरों से और तेज़ी से पटकती हुई कराह रही थी- आईई सुरेश मैं तो गयी … आआईई … हम्म … हम्म.
सुरेश मेरी गांड को दबोचते हुए नीचे से झटके मारता हुआ चिल्ला रहा था- आह आह … बहुत मजा आ रहा सारिका और जोर से चोदो … और जोर से चोदो. मेरा भी माल निकलने वाला है.
मैं- ह्म्म्म … ह्म्म्म … ये लो … आह ये लो!
सुरेश कमर उठा उठा गुर्राते हुए झड़ने जैसी आवाजें निकालने लगा- गुर्र … गुर्र … हम्फ … हम्फ आह.
मैं सुरेश को पूरी ताकत से पकड़े हुए थी- आंह गई … आह.
सुरेश- आह … मजा आ रहा बहुत … मेरा भी माल निकल ही गया समझो … आह.
मैं सिसकती हुई सुरेश को पकड़ थरथराने लगी और सुरेश मेरे चूतड़ों को पकड़ नीचे से झटके मारता हुआ गुर्राता रहा.
मेरी योनि से रस छूटता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल सुरेश के लिंग से पिचकारी महसूस होने लगी.
हम दोनों एक दूसरे को पकड़ थरथराने लगे और ‘ह्म्म्म आंह हम्म.’ का सुर पूरे कमरे में गूंजने लगा.
आधे मिनट के आस पास हम ऐसे ही पूरी ताकत से पकड़े हुए झड़ते रहे.
हम काफी तीव्र तरीके झड़े, दोनों पसीने में भीग चुके थे.
हमारे लिंग और योनि का मिलन तो मलाई जैसा पदार्थ पैदा कर चुका था.
मैं उसी अवस्था में सुरेश के ऊपर लेटी हुई धीरे धीरे सिसकती हुई सुरेश को पकड़ कर थरथराने लगी.
सुरेश मेरे चूतड़ों को पकड़ नीचे से झटके मारता हुआ गुर्राता रहा.
फिर सुरेश भी हांफता हुआ धीरे-धीरे अपनी पकड़ ढीली करने लगा.
मैं भी कुछ देर बाद ढीली पड़ने लगी और अन्त में उसके ऊपर ही सो गई.
कब नींद लगी, कुछ पता ही नहीं चला.
कुछ मिनट के बाद जब सुरेश का लिंग ढीला होकर फिसलता हुआ मेरी योनि से बाहर निकला, तो हल्का चमड़ी में खिंचाव महसूस हुआ.
उससे मेरी नींद खुल गयी.
पर अब भी नींद मुझ पर भारी थी इसलिए हल्के से कीं की आवाज करके मैं लेटी रही.
काफी देर बाद मेरा वजन जब सुरेश को भारी पड़ने लगा तो उसने मुझे धकेल कर बगल में गिरा दिया.
उधर सुषमा भी सो चुकी थी.
सुरेश बीच में और मैं और सुषमा उसके अगल बगल सो गए.
न हमने अपना बदन साफ किया न ही कुछ और बात की … बस सो गए.
सुबह करीब 4 बजे उठकर मैं पेशाब करने चली गयी.
पेशाब निकलते ही योनि में हल्की जलन सी महसूस हुई.
वापस आकर देखी तो सुरेश कपड़े पहन चुका था और सुषमा अभी भी नंगी थी.
दोनों के चेहरे पर नींद और थकान साफ दिख रही थी, वैसे मैं भी बहुत थकान महसूस कर रही थी और सोना चाहती थी.
तभी सुरेश बोला- तो आज रात फिर से प्रोग्राम फिक्स है ना?
सुषमा- अभी तो भागो यहां से, बाद में सोचेंगे रात की, सुबह होने वाली है. कहीं कोई देख न ले.
सुरेश- ठीक है, मजा आया कि नहीं?
सुषमा- हां मजा आया. अब जाओ जल्दी, सारिका इसके जाने के बाद बाहर का दरवाजा बंद कर देना.
सुरेश- क्या बोलती हो सारिका, रात का प्रोग्राम फिक्स है ना, दो दिन और हैं. दोनों को पूरा मजा दूँगा.
मैं- देखती हूँ, कहीं मजा देने के चक्कर में अस्पताल न पहुंच जाना. चुदाई इस उम्र में कोई हंसी खेल है क्या?
सुरेश- अरे इसी उम्र में तो इतना मजा आ रहा. तुम दोनों जैसी मस्त औरतों को कौन नहीं बार बार चोदना चाहेगा. चाहे अस्पताल जाना पड़े, पर मुझे तुम दोनों को जी भर के चोदना है.
सुषमा- ठीक है अब जाओ.
इतना कह कर सुरेश निकल गया और मैं दरवाजा बंद कर वापस आ गयी.
मैंने सुषमा से कहा- कपड़े तो पहन ले, सुबह भइया भाभी आ जाएंगे.
सुषमा- अरे रहने दे … दरवाजे खटखटाएंगे तो पहन लूँगी. वैसे भी बहुत गर्मी है. चूचियों और जांघों के बीच बहुत पसीना आता है.
मैं- हां होगा ही इतने बड़े बड़े जो पाल रखें है तूने … ही ही ही ही!
सुषमा- कमीनी तो तेरा कौन सा मुझसे कम है साली!
मैं- बेशर्म है कपड़े पहन ले.
सुषमा- हां अब शर्म दिख रहा तुझे … जब साथ में नंगी होकर एक ही मर्द से चुद रही थी, तब कहां थी शर्म तेरी!
मैं- अच्छा बाबा, जैसे मर्जी वैसे रह, पर सुबह जल्दी उठ कर चादर धोने के लिए डाल देना.
सुषमा चादर को देखती हुई कहने लगी- ये सुरेश कुछ खाता है क्या … कितना माल निकलता है इसका! दोपहर में भी मेरी चूत को भर दिया, अभी भी देखो, जहां तहां दाग लग कर सूख गया है.
मैं- पता नहीं, पर अभी दोनों बार तो मेरी चूत में निकाला उसने, पहली बार तो गाढ़ा था, पर दूसरी बार गाढ़ा नहीं था पर अच्छा खासा माल भर दिया उसने. अभी पेशाब करने गयी तो थोड़ा सा टपक भी गया.
सुषमा- वैसे उसकी मलाई नहीं टपकी होगी. हम लोगों का पानी भी है. एक बात तो है, अच्छे से चोदा उसने वरना हम औरतों का इतनी बार पानी छुड़ाना आसान नहीं है.
मैं- तेरे बारे में नहीं जानती मैं … पर मैं भले गर्म होती देर से हूँ … पर एक बार झड़ गयी तो फिर जल्दी जल्दी झड़ने लगती हूँ. अगर ज्यादा देर कोई चोदे मुझे तो मेरे साथ ऐसा होता है.
सुषमा- हां, मेरे साथ भी ऐसा ही है.
मैं- हां, लगभग सभी औरतों के साथ ऐसा ही है शायद, बस चोदने वाला दमदार होना चाहिए … ही ही ही ही.
सुषमा- ही ही ही ही!
मैं- वैसे जीजाजी जब चोदते हैं तुझे, तो कितनी बार झड़ती है तू?
सुषमा- क्या बात है सुबह से मेरे पति का पूछ रही … चुदना है क्या तुझे उनसे?
मैं- अगर मौका मिले तो मुझे क्या दिक्कत है, बस तुझे बुरा न लगे और जीजाजी भी तैयार हों तो. वैसे भी मैं आधी घरवाली हूँ उनकी … ही ही ही.
सुषमा- कमीनी तेरा पति कैसा चोदता है तुझे?
मैं- मेरा पति तो कुछ जानता ही नहीं और न जानना चाहता है. तुझे पता है, बस मेरी टांग उठा कर घुसाया, धक्का मारा और माल निकाल कर सोने चल दिया.
सुषमा- मेरा पति थोड़ा अच्छा है. बस मूड हो तो मेरा पानी निकाल देता है बाकी तेरे पति जैसा ही है.
मैं- मेरे पति से चुदना चाहोगी?
सुषमा- न रे … तेरे पति से अच्छा है अपना ही पति … कोई खास फर्क तो नहीं. वैसे सुरेश ही बढ़िया और पूरा मजा तो देता ही है.
हम इसी तरह हंसी मजाक करते सो गए.
नींद तब खुली जब उसके भईया भाभी आए.
सुबह के 6 बज चुके थे. हमने चालाकी से सारे सबूत मिटा दिया.
वैसे डर की कोई बात ही नहीं थी, जब तक कि रंगे हाथों न पकड़े जाते और पकड़े जाने का भी खतरा लगभग न के बराबर ही था.
मैं चाय पीकर अपने घर चली आयी.
शाम तक अपने रिश्तेदारों के साथ समय बिताया.
दिन भर न मैंने सुषमा को फ़ोन किया न उसने मुझे!
पूरी दिन में सुरेश का भी फोन नहीं आया न ही मुझे उसका ख्याल आया.
दिन ऐसे बीता मानो रात हमने कोई चोरी की ही नहीं.
यहां चोरी इसलिए कह रही क्योंकि अपने अपने पतियों के होते हमने पराये मर्द के साथ संभोग किया जो सामाजिक नजर से गलत है.
खैर … चोरी वही कहलाती है जो पकड़ी जाती है.
शाम को मैं सुषमा से मेले में जाने के लिए मिली.
तब पता चला कि सुरेश वापस चला गया है, उसके बेटे की हॉस्टल में तबियत बहुत खराब हो गयी थी.
बाद में हमने उसे फ़ोन किया तो पता चला के पेट में थोड़ी गड़बड़ी थी, पर अब ठीक है.
जान कर अच्छा लगा कि सब ठीक ठाक है.
पर सुरेश की बातों में थोड़ा दुख झलक रहा था कि हमारे साथ ऐसा मौका हाथ से चला गया.
हमें भी नहीं पता था कि दोबारा कभी हम ऐसे काम के लिए मिल पाएंगे या नहीं.
क्योंकि हम सबके अपने अपने परिवार थे और उम्र भी तो ढलती जा रही थी.
खैर … मैं और सुषमा इस बात से संतुष्ट थे कि उसका बेटा ठीक है और हम काम भावना से संतुष्ट थे.
मर्दों की बात और होती है, उन्हें जितना मिलता है उतना ही कम लगता है खासकर जब दूसरों की पत्नियां लंड के नीचे हों.
दो दिन के बाद मैं भी जाने ही वाली थी तो पूरा मेले का लुत्फ़ लेना चाहती थी.
इसी बीच कविता मुझे कई बार फ़ोन कर चुकी थी तो उस दिन मैंने उसके साथ वीडियो कॉल पर बात की और उसे सुषमा के साथ मिलवाया.
वीडियो में उसे गांव का मेला दिखाया.
कविता ने शायद ऐसा कुछ पहले नहीं देखा होगा.
काफ़ी देर तक वीडियो में बातें करके उसकी सुषमा से अच्छा परिचय हो गया.
तभी उसका पति आ गया और उससे भी परिचय कराया.
इस दौरान मैंने ये महसूस किया कि कविता का पति सुषमा की तरफ काफी आकर्षित हुआ था.
काफी देर तक उसने सुषमा के साथ उसके, उसके परिवार, पसंद नापसंद गांव के बारे में जानकारी ली.
एक दिन और मेला देख कर मैं वापस चली आयी.
इस बीच बस एक या दो बार हमने रात सोते समय सुरेश की बातें की होंगी, बाकी सब आम जीवन की तरह रहा.
आप सबको मेरी गाँव में सेक्स की कहानी कैसी लगी अवश्य बताएं और आपके सुझावों का भी मैं बेसब्री से इंतजार करूँगी.
अब एक नए अनुभव के साथ दोबारा आपके पास आऊंगी.
धन्यवाद
सारिका कंवल
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