वासना की धारा- 1 (Shadishuda Mard Ki Erotic Story Hindi Me)

यह इरोटिक स्टोरी शादीशुदा मर्द की है. जब उसे लम्बे समय के लिए अपनी पत्नी से दूर रहना पड़ा तो उसे अपनी तनहा रातें काटना दुश्वार हो गया. तो उसने क्या किया?

धारा … यह नाम ज़हन में आते ही आज भी शेखर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
लगभग 4 साल बीत चुके हैं जब शेखर और धारा सारी-सारी रात फ़ोन पर एक दूसरे के साथ बातें करते रहते थे.

वक़्त तो मानो ठहर सा जाता … कब भोर हुई और कब सूरज की किरणें खिड़की से झाँकती हुईं शेखर के कमरे को रौशन कर जातीं पता ही नहीं चलता था.

जाने क्या बात थी धारा में, उसकी आवाज़ कानों में पड़ते ही शेखर सारी दुनिया से बेख़बर हो जाता था और यह भी भूल जाता था कि शेखर और धारा दोनों शादी-शुदा थे और दोनों का एक हँसता खेलता परिवार था.

शेखर का एक प्यारा सा बेटा जो उस वक़्त क़रीब 4 साल का था और धारा की एक प्यारी सी बिटिया थी जो 6 साल की थी.

नमस्ते दोस्तो, मैं समीर, इस कहानी का सूत्रधार हूं। यह कहानी बस मेरी कल्पनाओं का रूप है, इसमें कोई हक़ीक़त ढूँढने की कोशिश ना करें.
बस इस कहानी को पढ़ कर आनंद लें और वासना के सागर में गोते लगाएँ.

एक बात और, ये कहानी थोड़ी लम्बी है. तो जिन लोगों को 20-20 वाला खेल पसंद हो वो इस कहानी को ना ही पढ़ें तो बेहतर होगा।
यह टेस्ट मैच वाली दास्तान है.

आइए इस इरोटिक स्टोरी के किरदारों से आपका परिचय करवा दूँ.

शेखर एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मा होनहार लड़का है जो अपनी पत्नी, एक बेटे और अपने माता-पिता के साथ राँची में रहता है. शेखर की शादी को 6 साल पूरे हो चुके थे.

रेणु, शेखर की पत्नी एक बहुत ही ख़ूबसूरत और गदराए हुए जिस्म की मालकिन है। आज भी मौहल्ले के मर्द उसे देख कर आहें भरते हैं और शायद अपने नवाब को अपने हाथों में लेकर उसके ख्यालों में अपना काम-रस निकालते होंगे.

शेखर बहुत खुले विचारों का था, वास्तविकता को हर हाल में अपना कर जीता था और ख़ुद भी सुंदरता का पुजारी था.
उसका मानना था कि ईश्वर ने जो नायाब तोहफ़ा हम मानवों को दिया है उसमें नारी के सौन्दर्य के समान कुछ भी नहीं, तो फिर इस सौन्दर्य को क्यूँ ना निहारें हम!

ख़ैर, शादी के 6 सालों के बाद शेखर और रेणु अपने बेटे के साथ बहुत ख़ुश थे.
उनके घर में माँ और पिता जी के अलावा एक फ़ुल टाइम काम वाली आया थी.

तीन कमरे के फ़्लैट में शेखर और रेणु का प्यार शादी से लेकर उस वक़्त तक बिलकुल वैसा ही था जैसा कि अभी-अभी शादी हुई हो. शादी के दो सालों के बाद उनके बेटे ने उनकी दुनिया को और भी रंगीन बना दिया था.

दिन भर ऑफ़िस में थक हार कर शेखर जब घर लौटता तो रेणु और हर्ष (शेखर का बेटा) की मुस्कराहट उसकी थकान मिटा देती थे.
हर्ष के उनके जीवन में आने के बाद भी रेणु और शेखर की प्रेम लीलाएँ चलती रहती थीं, हाँ उनमें थोड़ी कमी ज़रूर आ गयी थी.

शादी के बाद हनीमून से लौट कर दोनों अपने घर में एक दूसरे के साथ एडजस्ट हो चुके थे और एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे.
नीमून पर ही रेणु को पता चल गया था कि शेखर कितना कामुक और सेक्स के मामले में बेशर्म मर्द है.

रेणु बहुत शर्मीली थी लेकिन शेखर के नवाब ने उसकी ऐसी सेवा की थी कि उसकी शर्म धीरे-धीरे दूर होती चली गयी और वो खुल कर सम्भोग का आनंद लेने लगी थी.

एक ही फ़्लैट में माँ-पिता जी के साथ रहते हुए भी वो दोनों एक दूसरे के पास आने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते थे.
शर्मीली सी रेणु को शेखर ने अपने प्रेम से इतना सराबोर कर रखा था कि अब वो खुलकर उसे उकसाने लगी थी.

किचन में खाना बनाते वक़्त अपनी साड़ी का पल्लू गिराकर या खिसका कर अपने उन्नत 34 साइज़ के उभारों को दिखाना और पीछे मुड़ कर अपने नितम्बों के दर्शन करवाना रेणु की आदत सी बन गयी थी.

शेखर को अपने अंगों को दिखा-दिखा कर रेणु पागल बनाए रखती थी.
वो बेचारा अपने हॉल में बैठा किचन की तरफ़ उसे ललचायी नज़रों से देखता रहता और अपने पैंट के उभार को अपने हाथों से छिपाता रहता.

रेणु चिढ़ाने के लिए कभी-कभी सबकी नज़रें बचा कर शेखर के क़रीब से गुज़रती और धीरे से उसके नवाब को सहला देती.

वैसे ये सब उसे शेखर ने ही सिखाया था.
उसे पता था कि शेखर को किस तरह का सेक्स पसंद है.
सेक्स में जब तक रोमांच ना हो तब तक सेक्स का मज़ा ही नहीं आता.

ये रोमांच किसी भी तरह का हो सकता है लेकिन लोगों के बीच में रहते हुए छिप-छिप कर इशारे करना और अंगों का प्रदर्शन और फिर सबके आस-पास होते हुए भी छिपकर सम्भोग करना शेखर को बहुत रोमांचित करता था और रेणु को ये बात अच्छे से पता थी।

तभी रेणु हर पल उसका रोमांच बढ़ाती रहती और उसके जोश को दोगुना कर दिया करती.

रात को जब दोनों अपने कमरे में जाते तो उसकी सारी मस्ती और चिढ़ाने का बदला उसे मसल कर लिया करता था.
रेणु भी कभी-कभी शेखर पर हावी होकर उसका कस-बल निकाल दिया करती थी.

हर्ष के आने के बाद रेणु का ज़्यादा वक़्त उसी के लालन-पालन में चला जाता था लेकिन फिर भी वो हमेशा कोशिश करती कि शेखर के क़रीब रहे.
शेखर भी रेणु की हर तरह से मदद करता और जब भी मौक़ा मिलता उसे ख़ुद से चिपकाए रहता.

पहले जहाँ शेखर और रेणु के बीच हर रोज़ कम से कम दो बार प्रेम की बाज़ी खेली जाती थी वहीं अब ये बाज़ी सप्ताह में एक या दो बार की रह गयी थी और शेखर को अपने हाथों से ही काम चलाना पड़ता था.

मगर इसमें कोई परेशानी नहीं थी।
शेखर को अन्तर्वासना की अश्लील कहानियाँ पढ़ कर लंड को हाथों से मसलना और फिर मुठ मार कर अपना पानी निकालने का शौक़ बहुत पहले से लग गया था.

बच्चा आ जाने की वजह से जब-जब रेणु थक कर सो जाया करती तो शेखर अंतर्वासना सेक्स कहानियाँ पढ़ कर अपना लंड हिला लेता और मज़े कर लिया करता.

कहानियाँ पढ़ते वक़्त कभी-कभी उसके हाथ बग़ल में सोयी रेणु के जिस्म पर रेंगते रहते और कभी उसकी गोल-गोल दूध से भरी चूचियों को सहला लेते।

या तो कभी उसकी साड़ी और साये के अंदर हाथ डाल कर उसकी नर्म मख़मली चूत को सहला दिया करता और फिर अपने लंड को झटके दे-दे कर अपना पानी निकाल लिया करता.

बस ऐसे ही हँसी-ख़ुशी दोनों अपने जीवन में मस्त थे.

अचानक से एक दिन शेखर की कम्पनी ने एक स्पेशल प्रोग्राम के लिए उसे नॉएडा भेजने का निश्चय किया. प्रोग्राम पूरे एक साल का था और वहीं रहकर इसे पूरा करना था.

घर पर जब यह बात पता चली तो रेणु का चेहरा उतर सा गया और उसने अपना मुँह बना लिया.

शादी के बाद शायद ही दोनों कभी एक दूसरे से अलग रहें हों.
इस वजह से पूरे एक साल तक एक दूसरे से दूर रहने की बात दोनों को ही खल रही थी.

मगर बढ़ती ज़िम्मेदारियों और आने वाले सुनहरे कल की उम्मीद में दोनों ने अपने दिल पर पत्थर रख कर इस बात को स्वीकार कर लिया.

अपनी भीगी हुई पलकों से रेणु ने शेखर को जाने दिया और वह नोएडा चला आया.

कम्पनी ने एक फ़्लैट में उसके रहने का इंतेजाम कर रखा था जहाँ सेवा के लिए एक 20-22 साल का लड़का था जो खाने-पीने से लेकर कपड़े धोने और घर की साफ़ सफ़ाई का पूरा ध्यान रखता था.
कुल मिलाकर सबकुछ ठीक ही था।

बस रात को फ़्लैट पर अकेले-अकेले दीवारों से बातें करना और अपनी रेणु को याद करके अपनी काम वासना को शांत करना शेखर का काम अब यही हो गया था.

एक-दो महीनों तक रोज रात को रेणु का फ़ोन आ जाता और दोनों फ़ोन पर बात करते-करते या स्काइप के ज़रिए एक दूसरे के साथ सेक्स चैट और डर्टी वीडियो चैट करके अपना दिल बहला लिया करते थे.

गुजरते वक्त के साथ फिर धीरे-धीरे ये सिलसिला कम होता गया और रेणु हर्ष को पालने में पूरी तरह से व्यस्त हो गयी.
अब सप्ताह में एक या दो बार ही ऐसा कुछ कर पाते थे.

रेणु के पास तो हर्ष था जिसकी वजह से वो व्यस्त रहती लेकिन शेखर नोएडा में अकेला था और अपनी आदत से मजबूर रात भर सेक्स की आग में तड़पता रहता था.

2008-09 में भारत में इंटरनेट पर सेक्स सम्बंधी कई सारी साईटें उपलब्ध थीं जो कामुक प्रवृति के इंसानों के लिए अपनी अंतर्वासना को शांत करने का अहम ज़रिया हुआ करती थीं.

सेक्सी कहानियों की कई साइट थीं और इस साइट के माध्यम से ही कई दूसरी साईटों पर भी शेखर विजिट कर लिया करता था. इस दौरान एक फ़्री सेक्सी इंडीयन सेक्स साइट का पता चला जहाँ याहू की तरह ही एक चैट रूम होता था।

यहां हर तरह के लोग सेक्सी-सेक्सी चैट किया करते थे. बहरहाल, रेणु से दूर शेखर देर रात तक ऐसी ही साईटों पर घूमता रहता और कभी-कभार किसी से चैट कर लिया करता.

मज़े की बात ये थी कि उस चैट रूम में भी लौंडे लड़कियों के नाम से प्रोफ़ाइल बना कर मस्ती किया करते थे. अगर आपकी क़िस्मत अच्छी रही तो कोई लड़की या औरत मिल जाती.

सेक्स चैट फिर चाहे वो फ़ोन पर हो या फिर वीडियो पर, शेखर को बहुत पसंद था और आज भी है. अपनी पसंद की वजह से शेखर अक्सर उस रूम में लोगों से बातें करता रहता।

शनिवार की रात तो जैसे उस चैट रूम में लोगों की बाढ़ सी आ जाती थी.

ऐसे ही एक शनिवार को शेखर की आई.डी. पर एक लड़की का मैसेज आया जो कि ‘धारा’ नाम की किसी आई.डी. से था.

शेखर जानता था कि लड़के अक्सर लड़कियों के नाम से मस्ती किया करते हैं इसलिए ज़्यादा सीरीयस ना होकर हल्के-फुल्के लहजे में बात शुरू की.
उसकी बातों से यह समझने में परेशानी होने लगी कि वो आख़िर में कोई लड़का है या लड़की!

उसने काफ़ी देर तक इधर-उधर की बातें कीं.
फिर टॉपिक सेक्स पर चला आया.
दो घंटे से बातें करते-करते शेख़र और धारा एक दूसरे से काफ़ी हद तक खुल चुके थे.

दोनों ने सेक्स को लेकर अपनी-अपनी पसंद और अपनी ख़्वाहिशों के बारे में बताया.
उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा जैसे वो भी शेखर की तरह ही सेक्स में काफ़ी रुचि रखती है और रोमांच भरे सेक्स को एंजॉय करती है.

उस रात दोनों सुबह 4 बजे तक एक दूसरे से बातें करते रहे; फिर अगले दिन उसी चैट रूम में मिलने का वादा किया और थक कर सो गए.

शेखर के मन में मिले-जुले ख़्याल उमड़ रहे थे, उसकी सेक्सी बातें उसे उत्तेजित कर चुकी थीं लेकिन उसकी वास्तविकता पर संदेह का ख़्याल उसे असमंजस में डाल रहा था.

ख़ैर दूसरे दिन यानि रविवार की रात क़रीब 10 बजे दोनों फिर से चैट रूम में मिले और इस बार शेखर ने अपनी असमंजसता को दूर करने के लिए उससे फ़ोन पर या फिर वीडियो चैट पर आने को कहा.

धारा ने मना कर दिया और ऑफ़-लाइन हो गयी.
अब तो शेखर को पूरा यक़ीन हो चला था कि वो कोई लड़का ही था.
लेकिन कहीं ना कहीं मन में ये ख़्याल भी आ रहा था कि शायद नारी सुलभ लज्जा की वजह से वो फ़ोन पर या वीडियो चैट पर आने से मना कर रही हो.

रात को क़रीब 11 बजे उसने मैसेज किया और अपना याहू आइ.डी. भेजा. याहू पर जाकर शेखर ने उसे वीडियो कॉल किया.
पहली बार पूरी रिंग होने के बावजूद उसने रिसीव नहीं किया।

फिर दोबारा से कॉल किया तो इस बार ऐक्सेप्ट कर लिया लेकिन सामने कैमरे पर कुछ काली और धुँधली सी तस्वीर नज़र आ रही थी. धीरे-धीरे सामने अंधेरा छटने लगा और एक बिस्तर नज़र आया जिसपर कोई औरत सुर्ख़ लाल रंग की साड़ी में लेटी हुई थी.

सामने की ये तस्वीर देख कर दिल को ये तसल्ली हुई कि जिस शख़्स से शेखर इतनी सारी बातें कर रहा था वो कोई लड़का नहीं था.
लेकिन फिर भी एक बात समझ में नहीं आ रही थी कि सामने अगर कोई औरत लेटी हुई थी तो यहाँ मैसेज कौन टाइप कर रहा था.

शेखर का माथा ठनका…!! उसने मैसेज करके सामने से ये पूछा कि आख़िर ये माजरा क्या है?
सामने से जो जवाब आया उसे सुनकर शेखर चौंक गया!

जवाब में पता चला कि वो कल से जिस शख़्स से बातें कर रहा था वो असल में एक मर्द ही था.
एक शादी-शुदा मर्द!!

शेखर ने कई कहानियां पढ़ी थीं जिसमें शादी-शुदा शौक़ीन मर्द अपनी बीवियों को किसी और से चुदवाने की ख़्वाहिश रखते हैं और उनकी बीवियाँ भी बड़े मज़े से नए-नए लंडों का स्वाद चखती हैं.

मगर कहानियाँ तो कहानियाँ ही होती हैं. कितनी सच्ची कितनी झूठी ये किसे पता?

ख़ैर जो भी हो, सामने से बात कर रहा इंसान ललित था जो नोएडा में ही अपनी बीवी के साथ रहता था और वहीं एक बड़ी कम्पनी में अच्छे ओहदे पर काम करता था.

बातों बातों में ललित ने बताया कि वो और धारा 8 सालों से शादीशुदा हैं और उनकी एक बेटी है. वो दोनो इंदौर के रहने वाले हैं और पिछले 7 सालों से नोएडा में रह रहे हैं.

दोनों बड़े ही खुले विचारों के हैं और तरह-तरह के जोखिम लेकर चुदाई का मज़ा लेते रहते हैं.
इन्ही जोखिमों में से एक जोखिम अनजाने लोगों को अपने घर बुलाकर चुदाई में शामिल करना भी था.

मगर इन सब के बीच ललित ने एक और बात बतायी जो शेखर के लिए भी रोमांच से भरपूर था और वो बात यह थी कि ललित और धारा जब भी किसी को अपने घर पर बुलाकर उसके साथ चुदाई का खेल खेलते तो धारा की आँखों पर पट्टी बंधी होती और उस अनजाने आदमी की आँखों पर भी वैसी ही पट्टी होती.

यानि सामूहिक चुदाई तो होती थी लेकिन ना तो चोदने वाला ये जान पाता था कि किसे चोद रहा है और ना ही चुदने वाली को पता होता था कि उसे कौन चोद रहा है.

शायद इसीलिए जब ललित ने वीडियो कॉल पर शेखर को धारा का शरीर दिखाया था तो सिर्फ़ उसके बदन का आधा हिस्सा ही दिखाया था और शेखर की तरफ़ से भी उसकी स्क्रीन पर सिर्फ़ गले से नीचे का हिस्सा ही दिखाई दिया था, यानि ना तो शेखर ने धारा की शक्ल देखी थी और ना ही उसने शेखर की!

अब तक तो शेखर को यही लगता था कि सिर्फ़ उसे ही रोमांच पसंद है चुदाई के खेल में लेकिन ललित और धारा की कहानियाँ सुनकर पता चला कि लोग उससे भी दस क़दम आगे हैं.

सच कहा जाए तो उनका ये तरीक़ा कहीं ज़्यादा रोमांचकारी था. शेखर सोच कर ही रोमांचित हो चुका था.
मतलब अपने हाथों से एक गदराई हुई महिला के शरीर के हर हिस्से को छूना और मसलना, अपनी ज़ुबान से चूमना और चाटना।

फिर अपने लंड से उसकी मख़मली चूत को चोदना लेकिन आँखों पर पट्टी … उफ़्फ़, बस अपनी मन की आँखों से उसे महसूस करना!
ललित की बातों और उसके तरीक़े ने शेखर के लंड का बुरा हाल कर दिया था.

उसका लंड अकड़ कर बहुत तकलीफ़ दे रहा था.
बार-बार की-बोर्ड से अपना एक हाथ हटा कर लंड को मसलना शेखर की मजबूरी बन गयी थी.

रात के क़रीब 2 बज गए थे और दोनों अपनी फैंटेसी और नए-नए तरीक़ों से चुदाई का मज़ा लेने की बातें किए जा रहे थे.
बातें इतनी मज़ेदार हो चली थीं कि ना तो ललित रुक रहा था और ना ही शेखर!

तभी बातों-बातों में पता चला कि धारा भी कभी-कभी दिल खोल कर चैटिंग पर अनजाने मर्दों से बातें करती थी और अपनी ख़्वाहिशों बयान कर देती थी.
ऐसा अमूमन दोपहर के वक़्त होता था जब वो अकेली हुआ करती थी और ललित अपने काम पर!

शेखर ने भी ललित से ये इच्छा ज़ाहिर की कि धारा से बात कर सके.
ललित ने कहा कि वो धारा से कहेगा कि वो बात कर ले.

सुबह क़रीब 3 बजे तक दोनों ने बातें कीं और फिर एक दूसरे से दोबारा बातें करने के वादे के साथ विदाई ले ली.

अपना लैपटॉप बंद करते ही शेखर बिस्तर पर लेटकर बिलकुल नंगा हो गया और अपनी हथेली में ज़ैतून का तेल लेकर अपने लंड की मालिश करनी शुरू कर दी.

मालिश क्या … यूँ कहें कि अपने लंड को तेल से चिकना कर मुठ मारना शुरू कर दिया.
उसकी आँखें ख़ुद-ब-ख़ुद बंद हो गयीं और ज़हन में ये ख़्याल कौंधने लगा कि वो धारा की टाँगें उठा कर उसकी मख़मली चूत को फाड़ रहा है.

मुँह से अपने आप धारा-धारा-धारा की आवाज़ें निकलने लगीं और 5-6 घंटे से जमा हुआ लावा लंड की नसों को चीरता हुआ छत की ऊंचाईयों तक फैल गया.

लंड का पानी निकलते ही कुछ देर के लिए शेखर बिल्कुल शिथिल पड़ गया और पूरे शरीर को ढीला छोड़ कर अपनी साँसों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगा.
इसी अवस्था में कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला.

सुबह क़रीब 7 बजे रघु ने दरवाज़ा खटखटा कर शेखर को नींद से जगाया.
रघु शेखर की देख-रेख के लिए उसके ऑफ़िस की तरफ़ से दिया हुआ बंदा था.

सुबह 3-4 बजे सोने की वजह से शेखर की आँखें चाहकर भी नहीं खुल पा रही थीं लेकिन रघु के बार-बार दरवाज़ा खटखटाने से उसे बेमन से बिस्तर से उठना पड़ा.

आँखें खुलीं तो शेखर ने ख़ुद को बिल्कुल नंगा पाया और अपनी जाँघों पर अपने ख़ुद के वीर्य की सूखी हुई बूँदे नज़र आयीं.
एक पल में शेखर को रात की सारी बातें याद आने लगीं और उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर गयी.

झट से अपना लोवर ढूँढ कर उसने पहना और दरवाज़ा खोला।
“क्या बात है शेखर भैया, आज बड़ी देर तक सोते रहे आ ?”
रघु ने अपने हाथों में पकड़ा हुआ चाय का कप शेखर की तरफ़ बढ़ाते हुए सवालिया निगाहों से देखा.

नींद से भारी आंखों को खोलने की कोशिश करते हुए शेखर ने चाय का कप पकड़ा और रघु की तरफ़ देख कर मुस्कराने लगा.
“बस थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है रघु, ठीक से सो नहीं पाया.” शेखर ने रघु को जवाब दिया और उसे अपने कमरे से विदा करते हुए दरवाज़ा फिर से बंद कर लिया.

चाय की चुस्की लेते हुए शेखर ने एक बार फिर से रात की सारी बातों को याद किया और चाय ख़त्म करके बाथरूम में घुस गया.

घंटे डेढ़ घंटे में ऑफ़िस के लिए तैयार होकर शेखर क़रीब 9 बजे ऑफ़िस के लिए निकल पड़ा.

ऑफ़िस पहुँच कर हर रोज़ की तरह शेखर अपने काम में लगा रहा और देखते-देखते ही लंच का समय हो गया.

ऑफ़िस की कैंटीन में बैठ कर लंच करते-करते शेखर फिर से धारा और ललित के बारे में सोचने लगा.

अचानक से शेखर के दिमाग़ में ललित की वो बात घूमने लगी जो कि उसने धारा के बारे में बतायी थी, धारा से बात करने वाली बात!

पता नहीं क्या हुआ, शेखर ने अचानक से लंच छोड़ दिया और अपने डेस्क की तरफ़ दौड़ा.
अपना लैप्टॉप खोल कर शेखर ने अग़ल-बग़ल से छुप-छुपा कर फिर से वही साइट खोल ली और चैट रूम में ऑनलाइन हो गया.

पता नहीं क्यूँ लेकिन उसे ये विश्वास था कि आज उसे धारा से बात करने का मौक़ा मिल सकता है.
ललित ने बताया था कि धारा अक्सर दोपहर में चैट रूम में बातें करने आ जाती है.

ललित के हिसाब से बतायी गयी बातों को मानें तो इस समय धारा के चैट रूम में होने की सम्भावना थी.
इसी उम्मीद में शेखर चैट रूम पर निगाहें बिछाए बैठ गया.

15 मिनट हो चुके थे लेकिन धारा की आइ.डी. अभी भी ऑफ़लाइन दिख रही थी.
इस बीच कई और लड़कियों के नाम की आइ. डी. से शेखर की आइ. डी. पर बात करने की रिक्वेस्ट आई लेकिन शेखर की नज़रें बस धारा का रास्ता देख रही थीं.

शायद क़िस्मत भी शेखर के साथ थी, धारा की आइ.डी. आनलाइन हो गई.
शेखर तो मानो ख़ुशी से पागल ही हुए जा रहा था.

अभी तो सिर्फ़ आइ.डी. ही ऑनलाइन हुई थी और शेखर को ऐसा लग रहा था जैसे उसे पूरी दुनिया मिल गयी हो.

तभी एक पल के लिए शेखर ठिठक सा गया, उसके मन में ये ख़्याल आया कि कहीं दूसरी तरफ़ ललित ही ना हो और वो बेकार में ही अपने मन में धारा के ख्याली पुलाव पका रहा हो?

आपको यह इरोटिक स्टोरी कैसी लग रही है, इस बारे में अपनी राय जरूर दीजिएगा।
मेरा ईमेल आईडी है [email protected]

इरोटिक स्टोरी का अगला भाग: वासना की धारा- 2

About Abhilasha Bakshi

Check Also

शालिनी और उसकी सहेलियाँ

हेलो दोस्तो, मैं मोहित, आपको तहे दिल से और सभी कन्याओं और लड़कियों को लंड …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *